सोमवार, 15 अगस्त 2022

कादम्बरी कथामुख 'सूक्तियां'

 1. अहोविधातुरस्थाने रूपनिष्पादनप्रयत्न: ।

अर्थ - चांडाल कन्या के अनुपम सौंदर्य को देखकर राजा शूद्रक ठगा सा रह गया।  वह सोचने लगता है कि - विधाता का अनुचित स्थान में रूपनिष्पादन का प्रयत्न बड़े आश्चर्य का विषय है।

2. न हि करतलस्पर्शक्लेशितानामवयवानामीदृशी भवति कान्तिः।

अर्थ - चांडाल कन्या के अनुपम सौंदर्य को देखकर राजा शूद्रक ठगा सा रह गया। वह सोचने लगता है कि - क्योंकि हथेली के स्पर्श से दबाए गए अवयवों में ऐसी कान्ति नहीं आ सकती ।

3. सर्वथा धिग् विधातारम् असदृशसंयोगकारिणम् ।

अर्थ - कादम्बरी-कथामुख में बागभट्ट ने चांडाल कन्या की अत्यद्भुत सृष्टि की है। राजा शूद्रक आस्थान मंडप में बैठा हुआ है। उसके पास चांडाल कन्या आती है, जिसे देखकर वह ठगा-सा रह जाता है। उसे देखकर वह सोचने लगता है कि - वाकई में, अनुकूल संयोग न बैठाने वाले विधाता को धिक्कार है।

4. स्तनयुगमश्रुस्नातं समीपतरवर्ति हृदयशोकाग्नेः ।

     चरति विमुक्ताहारं व्रतमिव भवतो रिपुस्त्रीणाम् ।।

अर्थ - वैशम्पायन शुक अपना दायां पैर उठाकर अत्यन्त स्पष्ट अक्षरों से युक्त वाणी से जय शब्द का उच्चारण करके महाराज शूद्रक को लक्ष्य कर यह आर्या पढ़ता है - महाराज !  आपके शत्रुओं की वनिताओं का स्तनयुगल नेत्रविगलित अश्रुजल से स्नान करके, स्वभर्तृवियोगजनित हृदयस्थ शोकाग्नि के अन्यन्त समीप रहकर एवं आहार को तिलाञ्जलि देकर मानो व्रत का आचरण कर रहे हैं ।

5. प्रायेण हि पक्षिणः पशवश्च भयाहरमैथुननिद्रासंज्ञामात्रवेदिनो भवन्ति ।

अर्थ-   वैशम्पायन नामक तोता जो कि चाण्डाल कन्या राजा शूद्रक के पास लेकर आई है। वह तोता अपना दाहिना पैर उठाकर राजा का अभिवादन करता है और उसके समान में "स्तनयुगमस्नातम् आदि आर्या पढ़ता है, जिसे सुनकर उसे बड़ा भारी आश्चर्य होता है। तोते की ऐसी प्रवृत्ति पर राजा अपने प्रधानमन्त्री कुमारपालित से कहता है - बेशक, पक्षी और पशु प्रायः भय, आहार, मैथुन निद्रा तथा संकेतों का ही ज्ञान रखते हैं।

6. अग्निशापवशात्त्वस्फुटालापता शुकानमुपजाता करिणाञ्च जिह्वापरिवृत्तिः ।

अर्थ - यह सब देखकर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने वहीं बैठे अपने प्रधान अमात्य से शुक की इन बार्तो पर चर्चा की। प्रधान अमात्य कुमारपालित ने उत्तर दिया— इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं । उसने कहा कि तोते-मैना आदि कुछ ऐसे पक्षी हैं जो जैसा सुनते हैं वैसा ही बोलने लगते हैं। सुनते हैं पूर्वकाल में इनकी भी बोली मनुष्य की बोली की तरह ही थी। तोतों और हाथियों को अग्नि का शाप लग गया था किन्तु अग्नि के शाप से सुग्गों में अस्फुटालापता आ गयी और हाथियों की जबान उलट गयी। अर्थात् तोतों की वचन की स्पष्टता जाती रही और हाथियों का बोलना बन्द हो गया।

इस विषय में यह कथा प्रसिद्ध है—अग्नि विश्राम करना चाहता था अतः वह क्रमशः पाताल, अश्वत्थ और शमी वृक्ष में छिप गया। ब्रह्माजी ने देवताओं से बताया था कि तारकासुर का वध अग्नि का पुत्र ही कर सकता है। अतः वे अग्नि को ढूँढ़ते घूम रहे थे। तब मेंढ़क, हाथी और तोते ने क्रमशः बता दिया कि अग्नि पाताल, अश्वत्थ और शमी वृक्ष में छिपा है। अग्नि ने इन्हें शाप दे दिया। फलतः मेढ़कों को रसास्वाद होना बन्द हो गया, हाथी की जीभ पलट गयी और तोते वाग्विहीन हो गए। ये तभी से अभिशप्त हैं। यह कथा महाभारत, अनुशासन पर्व में आयी है।

7. प्रेताधिपनगरीव सदासन्निहितमृत्युभीषणा महिषाधिष्ठिता च ।

अर्थ - विन्ध्याटवी वर्णन के प्रसंग में बताया गया है कि भयंकर यमराज और उनके वाहन भैसों से युक्त यमपुरी के समान प्रतीत होती है विन्ध्याटवी नगरी । यहाँ पर श्लेष के माध्यम से दो अर्थ करते हैं, प्रथम यमपुरी के पक्ष में कि मृत्यु से भीषण और भैंसे से अधिष्ठित नगरी है यमपुरी तथा दूसरा अर्थ विन्ध्याटवी के पक्ष में कि व्याघ्रादि हिंसक जन्तुओं से युक्त है विन्ध्याटवी नगरी ।


बुधवार, 3 अगस्त 2022

प्रमुख ग्रन्थ, ग्रन्थकार, विभाजन

 

क्र.सं.ग्रन्थ नाम ग्रन्थकार नाम   विभाजन प्रकार   विभाजन सं. 
1. नलचम्पू त्रिविक्रमभट्ट  उच्छवास  7
2. काव्यप्रकाश  मम्मट  उल्लास  10
3. साहित्य दर्पण  विश्वनाथ  परिच्छेद  10
4. राजतरङ्गिणी कल्हण  तरङ्ग  8
5. दशरूपक धनञ्जय  प्रकाश          4
6. काव्यालङ्कारसूत्र  वामन  अधिकरण      5
7. काव्यालङ्कार भामह  परिच्छेद  6
8. रसगङ्गाधर पं.राजजगन्नाथ   आनन   4
9. वाल्मीकीयरामायण वाल्मीकि  काण्ड  7
10. हितोपदेश नारायणपण्डित   परिच्छेद      4
11. चन्द्रालोक जयदेव  मयूख  10
12. हर्षचरितम् बाणभट्ट  उच्छवास  8
13. दशकुमारचरितम् दण्डी     उच्छवास     8
14. शिशुपालवधम् माघ     सर्ग  20
15. किरातार्जुनीयम् भारवि  सर्ग  18
16.अभिज्ञानशाकुन्तलम्   कालिदास      अङ्क  7
17. अनर्घरावघ  मुरारि  अङ्क  7
18. राघवपाण्डवीयम् श्रीकविराज सर्ग  13
19. कर्पूरमञ्जरी  राजशेखर  जवनिका  4


शिव मंदिर में कछुआ और नन्दी की पूजा क्यों ?

     श्रावण मास आते ही शिव मन्दिर में शिव के भक्तगणों की भीड़ थामे नहीं थमती है। हर तरफ शिवमय वातावरण रहता है। बच्चे हों या बूढ़े सभी महादेव...