शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

यूजीसी नेट (संस्कृत कोड-25) इकाई-X

गुप्तकालीन एवं गुप्तोत्तर कालीन अभिलेख -
समुद्रगुप्त का इलाहाबाद स्तंभ लेख
स्थान - इलाहाबाद उत्तर प्रदेश (यह मूलत: कौशांबी में था, जहां से इलाहाबाद किले में लाया गया)।
भाषा - संस्कृत
लिपि - ब्राह्मी
काल - समुद्रगुप्त (लगभग 335 से 376 ई.)
विषय - समुद्रगुप्त का जीवन चरित्र तथा उपलब्धियों का विवरण ।
इस स्तंभ में समुद्रगुप्त की प्रशस्ति का उल्लेख है तथा यह प्रयाग में है, इससे इसको प्रयाग प्रशस्ति कहा जाता है। क्योंकि इसका लेखक हरिषेण है इसलिए इसको हरिषेण का प्रयाग प्रशस्ति नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे Allahabad Pillar Inscription कहते हैं। यह तिथि विहीन लेख है। इसमें समुद्रगुप्त के  विजयों का आद्योपान्त उल्लेख है।

हर्ष का बांसखेड़ ताम्रपत्र अभिलेख -
संवत - 22
स्थान - बांसखेड़ा
जिला - शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)
भाषा - संस्कृत
लिपि - उत्तर ब्राह्मी
काल - अनिर्दिष्ट संवत 22 (लगभग 628 ई.)
विषय - हर्षवर्धन के पूर्वजोंं तथा उसकी उपलब्धियों का वर्णन है।
यह ताम्रपत्र महाराजाधिराज श्री हर्षवर्धन द्वारा लिखवाया गया है। यह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के शाहजहांपुर जिले के बांसखेड़ा नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। इसमें मौखरी राजाओं की वंशावली दी गई है। इस वंश में एक महाराजा नरवर्धन थे। उनके पुत्र राज्यवर्धन की स्त्री अप्सरा देवी से आदित्य वर्धन उत्पन्न हुआ था। इनकी रानी महासेनगुप्ता देवी से प्रभाकरवर्धन पैदा हुआ था।  यह परम प्रतापी राजा था। इसकी कीर्ति शीघ्र ही फैल गई। इसकी रानी यशोमती देवी से राज्यवर्धन पैदा हुआ। इसने देवगुप्त आदि राजाओं को एक ही साथ युद्ध भूमि में पराजित किया था। शत्रु गृह में इसकी शीघ्र ही मृत्यु हो गई। इसके बाद इसका छोटा भाई हर्षवर्धन जो इस ताम्रपत्र का नायक है, सिंहासनासीन हुआ।

पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल शिलालेख-
स्थान - यह शिलालेख ऐहोल नामक स्थान पर है।
जिला - बीजापुर
भाषा - संस्कृत
लिपि - दक्षिण ब्राह्मी लिपि
विषय - पुलकेशिन द्वितीय तथा चालुक्य शासकों का वर्णन है। पुलकेशिन द्वितीय की कीर्ति का उल्लेख है।
इस शिलालेख की शुरुआत निम्न पंक्तियों से होती है-
जयति भगवाञ्जिनेन्द्रो वीतजरामरणजन्मनो यस्य ।
ज्ञानसमुद्रान्तकर्गतमखिलञ्जगन्तर्रपमिव ।।

इस शिलालेख में रविकीर्ति के साथ-साथ कालिदास और भारवि का भी नाम आता है-
येनायोजि नवेश्मस्थिरमर्त्थविधौ विवेकिना जिनवेश्म।
स विजयतां रविकीर्ति: कविताश्रित-कालिदासभारविकीर्ति: ।।
  • पुलकेशिन द्वितीय का दूसरा नाम सत्याश्रय है।
  • पुलकेशिन द्वितीय की उपाधि पृथ्वी वल्लभ है।
  • पुलकेशिन द्वितीय के त्रिवर्ग को समझने में राज मंडल समर्थ नहीं हुआ, उसने अश्वमेध यज्ञ किया था तथा यज्ञ की समाप्ति के समय स्नान द्वारा उसने पृथ्वी को चमत्कृत कर दिया था।
  • पुलकेशिन द्वितीय का पुत्र कीर्तिवर्मा नल मौर्य और कदंब राजाओं के लिए कालरात्रि था।
  • कदंब वंश का उल्लेख इसी शिलालेख में प्राप्त होता है।
  • पुलकेशिन द्वितीय ने पल्लव राजा महेंद्र वर्मन की सशक्त सेना को परास्त किया था।
  • ऐसा भी इस शिलालेख में उल्लेख है कि महाभारत युद्ध के 3735 वर्ष बाद ऐहोल का शिलालेख लिखा गया।
  • जैन मंदिर अपने गौरव का प्रतीक स्वरूप रवि कीर्ति ने बनवाया था तथा तीनों भुवन के स्वामी भगवान जिन की इस प्रशस्ति को बनवाया था।
  • दक्षिणी भारत के बादामी जिले में ऐहोल नामक गांव है। उस गांव में रवि कीर्ति ने एक जैन मंदिर का निर्माण कराया तथा इस मंदिर की दीवार पर एक लेख भी उत्कीर्ण कराया। यह मंदिर ऐहोल ग्राम के मेंगुटी नामक क्षेत्र में बना है। यही वह स्थान है जहां जैन भिक्षु जैनेंद्र रहता था। इस अभिलेख में पुलकेशिन द्वितीय के व्यक्तित्व तथा कृतित्व के संबंध में विस्तृत विवरण मिलता है। इसीलिए इसे पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल शिलालेख कहते हैं।
  • पुलकेशिन द्वितीय चालुक्य वंशीय शासक था।
  • इसका पुरातन नाम वाटपीपुर (वातापी) था।
  • यह अभिलेख पश्चिमी शाखा के चालुक्य वंश से संबंधित है।
  • इस शिलालेख की शैली काव्यगत है तथा शब्दावली एवं रचना साहित्यिक है।
  • इसने कालिदास के रघुवंश तथा भारवि के कीरातार्जुनीयम् से भाव और शैली को ग्रहण किया है।
  • यहां अभिलेख जैन भिक्षु जैनेंद्र की प्रार्थना के साथ प्रारंभ होता है।
  • इस अभिलेख के 23वें श्लोक से हर्षवर्धन तथा पुलकेशिन द्वितीय के बीच युद्ध का भी विवरण दिया गया है। यह युद्ध लगभग 630 ईसवी में हुआ था।
  • पुलकेशिन द्वितीय ने वातापी को अपनी राजधानी बनाया था।
  • रवि कीर्ति पुलकेशिन द्वितीय के दरबारी कवि है।
  • इस अभिलेख में रवि कीर्ति की तुलना कालिदास और भारवि से की गई है।
  • ह्वेनसांग पुलकेशिन को बुलेकिशे नाम से संबोधित करता है।

मौर्योत्तर कालीन अभिलेख -
रुद्रदामन का गिरनार (जूनागढ़) शिलालेख-
स्थान- यह शिलालेख काठियावाड़़ के जूनागढ़ जिले में, गिरनार पर्वत के कंट प्रदेश में घाटी की ओर जाने वाले भाग में स्थित है।
भाषा - यह शुद्ध संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है।
लिपि - ब्राह्मी
समय - रुद्रदामन के राजत्व काल के अंतर्गत एक अनिर्दिष्ट संवत् का 72वां वर्ष।  राय चौधरी के अनुसार यह नया पदाधिकारी है, जो राष्ट्रपाल ही था तथा कुमार की तरह वेतन प्राप्त करता था।
विषय - रुद्रदामन के प्रांतीय शासक सुविशाख द्वारा सुदर्शन बांध का पुनर्निर्माण और बांध का पूर्व इतिहास एवं रुद्रदामन की राजनैतिक उपलब्धियों का विवरण।
  • रुद्रदामन की उपाधि महाक्षत्रप है। किस अभिलेख में रुद्रदामन के वंश, कृतित्व, व्यक्तित्व और सुदर्शन झील के बारे में वर्णन मिलता है।
  • इस गिरनार पर्वत पर जितने भी शासकों के अभिलेख प्राप्त हुए हैं, सभी में सुदर्शन झील का वर्णन है।
  • सुदर्शन झील अशोक के पितामह चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा बनवाई गई थी। इसके संरक्षण का भार उसने अपने मंत्री पुष्यगुप्त को सौंपा था।
  • सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार रुद्रदामन ने मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष अर्थात् 72वें वर्ष में कराया था।
खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख -
स्थान - हाथीगुम्फा। यह स्थान भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि पहाड़ी के पास है।
जिला - पुरी (उड़ीसा)
काल - लगभग प्रथम शती ईसा पूर्व का उत्तरार्ध
लिपि - ब्राह्मी
विषय - चेदीवंशी राजा       कलिंगाधिपति खारवेल के जीवन की घटनाओं का क्रमिक विवरण एवं उसकी राजनैतिक उपलब्धियों तथा लोकमंगल के कार्योंं का उल्लेख है।
इस अभिलेख का आरंभ होता इन पंक्तियों से होता है- 
नमो अरहन्तानां। ऐरेण महाराजेन महावेधवाहनेन चेति-राज....
संस्कृत भाषा पर ब्राह्मीलिपि का यह अभिलेख कलिंगाधिपति खारवेल के जीवन के प्रारंभिक 13 वर्षों का क्रमिक एवं विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है। इस अभिलेख में खारवेल को चेतिवंशीय शासक कहां गया है। खारवेल चेति या चेदि या महामेधवाहन वंश से संबंधित है। इसी अभिलेख में खारवेल को राजर्षि कहा गया है।

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शुकनासोपदेश प्रश्नोत्तरी

नोटः- यह सभी प्रश्न किसी न किसी प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये हैं । प्रश्न 1 - बाणभट्टस्य गद्ये रीतिरस्ति - पञ्चाली प्रश्न 2- शुकनासोपदेश...