शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

यूजीसी नेट पाठ्यक्रम (संस्कृत कोड-25) इकाई- IX



 पुराणेतिहास, धर्मशास्त्र एवं अभिलेखशास्त्र
(क)    निम्नलिखित का सामान्य परिचयः
  • रामायण -विषयवस्तु, काल, रामायणकालीन समाज, परवर्ती ग्रन्थों के लिए प्रेरणास्रोत, साहित्यिक महत्त्व, रामायण में आख्यान।
        रामायण महर्षि वाल्मीकि की कृति है। वाल्मीकीय रामायण संस्कृत साहित्य का एक आरम्भिक महाकाव्य है, जो संस्कृत भाषा में अनुष्टुप छन्दों में रचित है। इसमें श्री राम के चरित्र विवरण काव्य रूप में उपस्थापित हुआ है। वर्तमान में राम के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध हैं उन सभी का मूल  'वाल्मीकीय रामायण' ही है। 'वाल्मीकीय रामायण' के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' माना जाता है और इसीलिए यह महाकाव्य 'आदिकाव्य' माना गया है। संस्कृत साहित्य में छन्दोबद्ध कविता का प्रादुर्भाव महर्षि वाल्मीकि से हुआ । महर्षि वाल्मीकि ने किसकी प्रेरणा से रामायण लिखी, इस विषय में एक प्रसिद्ध घटना है - जब महर्षि वाल्मीकि स्नान के लिए तमसा नदी जा रहे थे तब वहां नदी के किनारे पेड़ पर क्रौंच पक्षी का एक जोड़ा अपने में मग्न था, तभी व्याध ने इस जोड़े में से नर क्रौंच को अपने बाण से मार गिराया। रोती हुई मादा क्रौंच विलाप करने लगी। इस हृदयविदारक घटना को देखकर वाल्मीकि का हृदय इतना द्रवित हुआ कि उनके मुख से अचानक श्लोक फूट पड़ा:-
                मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वतीः समाः ।
                यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्  ।।
अर्थात- निषाद! तुझे कभी भी शांति न मिले, क्योंकि तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की, जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के ही हत्या कर डाली।
रामायण की विषयवस्तु -
1. बालकाण्ड - बालकाण्ड के आरम्भ में रामायण की रचना की पूर्व पीठिका दी गया है कि नारद ने महर्षि वाल्मीकि को राम कथा सुनायी । इस काण्ड में निम्न घटनाओं का वर्णन प्राप्त होता है-
  •  क्रौञ्चवध की घटना, ऋषि श्रृंङ्ग तथा शान्ता के विवाह का वर्णन, अयोध्यापुरी का वर्णन एवं दशरथ द्वारा अश्वमेध यज्ञ का वर्णन है ।
  • ऋषि श्रृंङ्ग द्वारा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ का भी वर्णन ।
  •  श्री राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न का जन्म । 
  • ताटका वध तथा विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा ।
  • गङ्गा से कार्तिकेय की उत्पत्ति की रक्षा।
  • सगर के पुत्रों की उत्पत्ति तथा यज्ञ की तैयारी।
  • भगीरथी की तपस्या, गङ्गावतरण।
  • अहल्या का उद्धार।
  • श्रीराम द्वारा धनुर्भङ्ग तथा रामादि भाईयों का विवाह।
  • वामनावतार, सागरमंथन वर्णन।
2. अयोध्या काण्ड - इसमें निम्न वर्णन हैं-
  • श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव ।
  • मन्थरा एवं कैकेयी प्रसङ्ग तथा दशरथ विलाप वर्णन ।
  • राम का वनगमन, निषादराज गुह वर्णन।
  • चित्रकूट की महत्ता एवं शोभा का वर्णन।
  • राजा दशरथ की मृत्यु तथा अन्त्येष्टि संस्कार।
  • जाबालि का नास्तिक मत एवं राम द्वारा खण्डन।
  • अनुसूया द्वारा सीता का सत्कार एवं पातिव्रत्य धर्म का उपदेश ।
3. अरण्यकाण्ड - दण्डकारण्य में प्रवेश के बाद ही अरण्यकाण्ड शुरु होता है । इसमें निम्न वर्णन आता है-
  • पञ्चवटी निवास तथा विराध आदि राक्षसों का वध।
  • सुतीक्ष्ण एवं अगस्त्य आश्रम में राम आदि का जाने का वर्णन।
  • पम्पासरोवर, पञ्चाप्सरतीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा ।
  • पञ्चवटी में लक्ष्मण द्वारा सुन्दर पर्णकुटी निर्माण।
  • हेमन्त ऋतु का वर्णन।
  • शूर्पणखा का वर्णन एवं लक्ष्मण का उसके नाक-कान काटना।
  • खरदूषण सहित चौदह सहस्र राक्षसों का वध, त्रिशिरा वध।
  • रावण द्वारा छल से सीता हरण तथा राम का करुण विलाप।
  • राम की कबन्ध से भेंट।
4. किष्किन्धाकाण्ड - इसमें  निम्न वर्णन है-
  • पम्पासरोवर के वसन्तऋतु दर्शन से श्रीराम की व्याकुलता।
  • राम और सुग्रीव की मैत्री।
  • राम द्वारा बालि का वध, तारा का विलाप, सुग्रीव तथा अङ्गद का राज्याभिषेक आदि।
5. सुन्दरकाण्ड - इसमें निम्न वर्णन है-
  • हनुमान द्वारा समुद्र लांघ कर लंका में प्रवेश।
  • सीता खोज, अङ्गुलीयत वृत्तान्त, अक्षयकुमार वध, तथा लंका दहन।
  • राम को हनुमान द्वारा सीता की चूड़़ामणि देना तथा सीता का वृत्तान्त सुनाना।
  • अन्य काण्डों से अधिक काव्यात्मक होने से इसे सुन्दरकाण्ड कहते हैं । इस काण्ड को सुन्दर इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस काण्ड के नायक हनुमान है और इनका एक नाम सुन्दर है।
6. युद्धकाण्ड -
  • वानर-सेना का प्रस्थान, समुद्र तट पर पड़ाव डालना तथा सेतु निर्माण।
  • राम द्वारा सूर्य-पूजा। 
  • अङ्गद दूत बनकर रावण के पास जाते हैं ।
  • कुम्भकर्ण वध,  राम-रावण युद्ध वर्णन तथा रावण वध।
  • सीता की अग्निपरीक्षा, अयोध्या आगमन, राम का राज्याभिषेक और प्रजापालन।
7. उत्तरकाण्ड - 
  • इस काण्ड में अनेक इतिहास पुराणात्मक आख्यान प्राप्त होते हैं।
  • अगस्त्य ऋषि द्वारा रावण के वंश की कथा सुनाना।
  • राम द्वारा सीता का परित्याग।
  • लव-कुश जन्म, रामचरित की रचना और शम्बूक वध।
  • उर्वशी-वशिष्ठ-ययाति के आख्यान।
  • इला-पुरुरवा आख्यन एवं राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ ।
  •  लवणासुर का शत्रुघ्न द्वारा वध तथा शत्रुघ्न का राज्याभिषेक।
  • सीता का पाताल प्रवेश।
  • लव-कुश का राज्याभिषेक तथा राम का महाप्रस्थान।
  • अन्तिम सर्ग में रामायण का पाठफल कहा गया है।
  1. सात काण्ड और सर्ग संख्या -
        काण्ड का नाम                                        सर्ग संख्या
1.    बालकाण्ड                                                77 सर्ग
2.    अयोध्याकाण्ड                                          119 सर्ग
3.    अरण्यकाण्ड                                              75 सर्ग
4.    किष्किन्धाकाण्ड                                        67 सर्ग
5.    सुन्दरकाण्ड                                                68 सर्ग
6.    युद्धकाण्ड                                                    128 सर्ग
7.    उत्तरकाण्ड                                                   111 सर्ग
        कुल सर्ग                                                     645
(यद्यपि वर्तमान में जो वाल्मीकि रामायण प्राप्त होती है उसमें 645 सर्ग लगभग प्राप्त होते हैं लेकिन 500 सर्ग हैं, ऐसा वाल्मीकि लिखते  हैं-
                        चतुर्विंशसहस्राणि श्लोकानामुक्तवान् ऋषिः ।
                        तथा सर्गशतान् पञ्च षट् काण्डानि तथोत्तरम् ।।
2.    इसमें 2400 श्लोक हैं, अतः इसे चतुर्विंशति साहस्त्री संहिता भी कहते हैं।
3.    रामायण में मुख्यतः अनुष्टुप् छन्द है । गायत्री में 24 वर्ण होते हैं अतः           यह मान्यता है कि इसको आधार मानकर रामायण में 24,000 श्लोक            लिखे गये हैं । प्रत्येक 1000 श्लोक के बाद गायत्री मन्त्र के नये वर्ण से           नया श्लोक प्रारम्भ होता है।
4.    वेदों के बाद सर्वप्रथम अनुष्टुप् छन्द का प्रयोग आदि काव्य रामायण में        ही है।
5.    बुद्धचरित में अश्वघोष वाल्मीकि का नाम लेकर उन्हें प्रथम अनुष्टुप् छन्द का रचयिता स्वीकार करते हैं -
                    'वाल्मीकिरादौ च ससर्ज पद्यं' (बुद्धचरित-1.43)
6.    रामायण महाकाव्य के रूप में प्रसिद्ध है ।
7.    वाल्मीकिकृत रामायण आदिकाव्य है।
8.    राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इतिहास के दो भेद किये हैं -
            1. परिक्रिया                        2. पुराकल्प
        परिक्रियात्मक इतिहास एक नायक से सम्बद्ध है, पुराकल्पात्मक इतिहास अनेक नायकों से सम्बद्ध होता है । इस प्रकार रामायण एक नायक विषयक होने से परिक्रियात्मक इतिहास स्वीकार किया जा सकता है ।
9.    महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित होने के कारण इसे आर्षकाव्य भी कहा जाता है ।
10.    महर्षि वाल्मीकि ने सर्वप्रथम यह कथा नारद जी से सुनी ।
11.    रामायण के बालकाण्ड का प्रथम सर्ग, जिसे मूल रामायण भी कहा ता है ।
12.    ब्रह्मा की आज्ञा से वाल्मीकि ऋषि ने रामायण को रचा -
                न ते वागनृता काव्ये काचिदत्र भविष्यति ।
                                कुरु रामकथां पुण्यां श्लोकबद्धां मनोरमाम् ।।
13.    महाभारत के खिलभाग हरिवंश पुराण में रामायण महाकाव्य को लक्षित करके नाटक रचने का उल्लेख मिलता है-
                 'रामायणं महाकाव्यमुद्दिश्य नाटकं कृतम'
14.    रामायण महाकाव्य में राम धीरोदात्त क्षत्रिय नायक हैं ।
15.    रामायण के मङ्गलाचरणात्मक पद्य में वस्तुनिर्देशात्मक मङ्गलाचरण है-
                 'तपःस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम् ।
                  नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकिर्मुनिपुङ्गवम् ।।
16.    सर्गान्त में छन्द परिवर्तन की परम्परा का निर्वाह रामायण में सर्वत्र किया गया है ।
17.    रामायण में प्रायः सभी रसों का वर्णन है परन्तु करुण रस इस महाकाव्य का प्रधान रस है ।
18.    नलचम्पूकार त्रिविक्रमभट्ट ने वाल्मीकि को नमन करते हुए कहा है-
                    सदूषणापि निर्दोषा सखरापि सुकोमला ।
                                       नमस्तस्मै कृता येन रम्य रामायणी कथा ।
19. रामायण का बम्बई संस्करण (देवनागरी संस्करण) भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय संस्करण है । इसका प्रकाशन बम्बई के निर्णयसागर प्रेस से 1902 ई. में के. पी. परब के सम्पादन में हुआ । इस संस्करण पर नागेश ने अपने आश्रयदाता राम के नाम तिलक टीका लिखी । इस संस्करण पर शिरोमणि और भूषण टीकाएं भी प्राप्त होती हैं ।
20.    रामायण का दूसरा संस्करण बंगाल संस्करण है। इस संस्करण का प्रकाशन इटालियन विद्वान् जी. गोरेशियो ने 1843 ई. से 1867 ई. तक अनेक खण्डों में किया। इसी संस्करण के आधार पर रामायण का इटालियन व फ्रेंच अनुवाद हुए ।
21.    रामायण का तीसरा संस्करण काश्मीर संस्करण है।  यह 1923 ई. में डी. ए.वी. कालेज लाहौर के अनुसन्धान विभाग से प्रकाशित हुआ । इस पर कटक टीका लिखी गई है ।
22.    रामायण का दाक्षिणात्य संस्करण है । यह मद्रास के कुम्भकोणम् से 1929 ई. में प्रकाशित हुआ ।
काल - वाल्मीकि रामायण की रचना 500 ई.पू. मानी जाती है।
रामायण में आख्यान-
1. क्रौञ्चवधाख्यान                    बालकाण्ड
2. ऋष्यश्रृङ्गाख्यान                   बालकाण्ड
3. ताटकाख्यान                          बालकाण्ड
4. कार्तिकेयाख्यान                     बालकाण्ड
5. गङ्गावतरणाख्यान                बालकाण्ड
6. मरुतगण उत्पत्ति आख्यान     बालकाण्ड
7. अहिल्या उद्धार आख्यान        बालकाण्ड
8. शुनःशुेपाख्यान (हरिश्चन्दोपाख्यानम्)    बालकाण्ड
9. पुलस्त्याख्यान                      उत्तरकाण्ड
10. राक्षसवंशोत्पत्याख्यान        उत्तरकाण्ड
अन्य आख्यान - मैत्रावरुणाख्यान, अष्टावक्राख्यान, त्रिंशंक्वाख्यान, मेनका-विश्वामित्राख्यान, नृगाख्यान, ययात्याख्यान, पुरुरवाख्यान इत्यादि आख्यान उल्लेखनीय हैं ।
रामायण की उपजीव्यता - किसी काव्य की कथावस्तु के मूल स्रोत को उस काव्य का उपजीव्य कहा जाता है। रामायण के उत्तरकाण्ड में स्वयं महर्षि  वाल्मीकि रामकथा की उपजीव्यता कहते हैं -
                    "न ह्यन्योर्हति काव्यानां यशोभाग् राघवाद् ऋते ।"
रामायण पर आश्रित ग्रन्थ
रामायण ग्रन्थ -
(i) अध्यात्म रामायण            (ii) अद्भुत रामायण
(iii) अगस्त्य रामायण           (iv) आनन्द रामायण
(v) मयन्दरामायण                (vi) भुसुण्डिरामायण
(vii) कम्बरामायण (तमिल भाषा में) 
(viii) रङ्गनाथ रामायण (तेलगु भाषा में)
(ix) कृत्तिवास रामायण (बंगला भाषा में)
काव्य ग्रन्थ -
(i) रघुवंशमहाकाव्यम्                 -    कालिदास
(ii) जानकीहरणम्                      -    कुमारदास
(iii) सेतुबन्ध                             -    प्रवरसेन
(iv) रामायणमञ्जरी                  -    महाकवि क्षेमेन्द्र
(v) भट्टिकाव्यम्                       -    महाकविभट्टि
(vi) रामायणसार                        -    रघुनाथ
(vii) रामचरित                            -    कवि अभिनन्द
नाटक ग्रन्थ -
(i) अभिषेकनाटकम्                    -    भास
(ii) प्रतिमानाटकम्                    -    भास
(iii) महावीरचरितम्                    -    भवभूति
(iv) उत्तररामचरितम्                    -    भवभूति
(v) अनर्घराघवम्                          -    मुरारि
(vi) बालरामायण                          -    राजशेखर
(vii) कुन्दमाला                            -    दिङ्नाग
(viii) प्रसन्नराघवम्                     -    जयदेव
(ix) आश्चर्यचुडामणि                    -    शक्तिभद्र
(x) हनुमन्नाटकम्                       -    दामोदरमिश्र
चम्पू काव्य -
(i) रामयणचम्पू                        भोज
(ii) उत्तरचम्पू                            वेंकटाध्वरि
(iii) रामकथा                            अनन्तभट्ट
(iv) चम्पूरामायण                    लक्षणभट्ट
(v) अमोघराघव                        दिवाकर
(vi) रामचन्द्र चम्पू                    विश्वनाथ सिंह
अन्य ग्रन्थ -
(i) दशरथजातकम्                    बौद्धग्रन्थ
(ii) पउमचरिअ (पद्मचरित)        विमलसूरि
रामायण की भाषा शैली - महर्षि वाल्मीकी की शैली वैदर्भी है । प्रसाद, ओज और माधुर्य तीनों गुण उनमें सन्निविष्ट हैं । भाषा सरस, प्राञ्जल, ललित और परिष्कृत है।
छन्द - अनुष्टुप् छन्द का सर्वाधिक प्रयोग है और सर्गान्त में प्रायः इन्द्रवज्रा तथा उपजाति छन्द हैं।
(अध्ययन करने के उपरान्त इस विषय से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्नों की प्रश्नोत्तरी को हल करने हेतु क्लिक करें इन प्रश्नों में ऐसे भी प्रश्नों को सम्मिलित किया गया है जो कि यूजीसी नेट की परीक्षा में पूछे जा चुके हैं। 

महाभारत
विषयवस्तु, काल, महाभारत कालीन समाज, परवर्ती ग्रन्थों के लिए प्रेरणास्रोत, साहित्यिक महत्त्व, महाभारत में आख्यान।
           विश्व वाङ्मय में सर्वाधिक विशाल ग्रन्थ महाभारत है। यह भारतीय जीवन शैली की समग्र और यथार्थ प्रस्तुति है। महाभारत भारतीय संस्कृति और आचार परम्परा का सर्वोत्तम विश्वसनीय और आदर्श ग्रन्थ है।महाभारत में लेखक ने अपने युग के समस्त उल्लेखनीय विषयों का उल्लेख किया है- यन्न भारते तन्न भारते।, 
                    धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
                    यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्।।
वैदिक धर्म और सिद्धान्तों का व्यावहारिक रूप हमें महाभारत में उपलब्ध होता है।
विषय-वस्तु -
1. आदिपर्व - इसमें 19 उपपर्व, 233 अध्याय, 9000 श्लोक हैं। शकुन्तला आख्यान इसी पर्व में प्राप्त होता है।
2. सभापर्व - इसमें 10 उपपर्व और 81 अध्याय हैं । इसमें जरासन्ध वध, शिशुपाल वध, द्युत क्रीड़ा का वर्णन है ।
3. वनपर्व - इसमें 22 उपपर्व तथा 315 अध्याय हैं । सावित्री तथा सत्यवा की कथा इसी पर्व में आती है। इन्द्र द्वारा कवच-कुण्डल लेना तथा पाण्डवों की तीर्थ यात्रा का वर्णन है।
4. विराटपर्व - इसमें 72 अध्याय तथा 2700 श्लोक हैं। इसमें कीचक का वध तथा उत्तरा  अभिमन्यु के विवाह आदि का वर्णन है।
5. उद्योगपर्व - इसमें 10 उपपर्व, 196 अध्याय तथा 7100 श्लोक हैं। इसमें मुख्य रूप से शान्ति के लिए प्रस्ताव एवं युद्ध की पूर्व पीठिका का वर्णन है। इसमें अम्बोपाख्यान के रूप में पूर्व कथा सुनाई गयी है।
6. भीष्म पर्व - इसमें 5 उपपर्व, 122 अध्याय, 6100 श्लोक हैं। इसमें भीष्म के  सेनापतित्व में 10 दिनों तक महाभारत युद्ध का वर्णन है। श्रीमद्भगवद्गीता इसी पर्व का अंश है। इसी पर्व में भीष्म को प्राण त्यागने के लिए, उत्तरायण की प्रतीक्षा होती है।
7. द्रोण पर्व - इसमें 8 उपपर्व, 202 अध्याय तथा 10000 श्लोक हैं। युद्ध के 5 दिनों का वर्णन है, जो कि द्रोणाचार्य के सेनापतित्व में होता है। अभिमन्यु की मृत्यु पर व्यास युद्धिष्ठिर के दुख को कम करने के लिए 16 राजाओं का चरित सुनाते हैं ।
8. कर्णपर्व - युद्ध के 16वें और 17वें दिन का सेनापति कर्ण बनता है और मारा जाता है। 
9. शल्य पर्व - इसमें 2 उपपर्व, 65 अध्याय तथा 3700 श्लोक हैं। इस पर्व की मुख्य घटना दुर्योधन का गदा युद्ध तथा ऊरुभङ्ग है। इस पर्व के बाद युद्ध समाप्त हो जाता है। युद्ध के 18वें दिन का सेनापति शल्य बना था। महाभारत में कहा भी गया है-
                    द्रोणे च निहते कर्णे भीष्मे च विनिपातिते।
                    आशा बलवती राजन् शल्यो जेष्यति पाण्डवान्।।
10. सौप्तिक पर्व - इसमें 1 उपपर्व, 18 अध्याय तथा 810 श्लोक हैं। इस पर्व की मुख्य घटना कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा द्वारा द्रौपदी के पाँचों पुत्रों का मारा जाना है।
11. स्त्रीपर्व - इसमें 3 उपपर्व, 27 अध्याय तथा 820 श्लोक हैं। इसी पर्व में युधिष्ठिर स्त्री जाति को शाप देते हैं कि अब स्त्रियों के मन में रहस्य की कोई बात छिपी नहीं रहेगी।
12. शान्तिपर्व - इसमें 3 उपपर्व, 365 अध्याय तथा 14725 श्लोक हैं। यह महाभारत का सबसे बड़ा पर्व है। पराशर गीता, हंस गीता इसी पर्व के अंश हैं।
13. अनुशासन पर्व - इसमें 2 उपपर्व, 168 अध्याय तथा 10000 श्लोक हैं। भीष्म का स्वर्गारोहण इसी पर्व में है। इस पर्व के 17वें अध्याय में शिवसहस्रनामस्तोत्र तथा 149वें अध्याय में विष्णुसहस्रनामस्तोत्र है।
14. आश्वमेधिक पर्व - इसमें 92 अध्याय तथा 4250 श्लोक हैं। इसमें युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध-यज्ञ का वर्णन है। 
15. आश्रमवासिपर्व - इसमें 3 उपपर्व, 39 अध्याय तथा 110 श्लोक हैं। इस पर्व की मुख्य विषय-वस्तु धृतराष्ट्र के साथ गान्धारी, कुन्ती और विदुर का वन में आश्रम बनाकर निवास करना है।
16. मौसल पर्व - इसमें 304 श्लोक हैं । कृष्ण एक व्याध द्वारा भ्रमवश मारे जाते हैं।
17. महाप्रस्थानिक पर्व - इसमें 3 अध्याय तथा 115 श्लोक है। इसमें पाण्डवों की हिमालय यात्रा तथा युधिष्ठिर का पार्थिव शरीर से ही स्वर्ग जाने का वर्णन है।
18. स्वर्गारोहण पर्व - इसमें 5 अध्याय तथा 220 श्लोक है। इसमें युधिष्ठिर के स्वर्ग पहुंचने तथा देवदूत के साथ नरक में जाकर अपने अनुजों का करुण क्रन्दन सुनने का वृत्तान्त है। इसके अन्तिम अध्याय में महाभारत का माहात्म्य तथा उपदेश है।
महाभारत का सामान्य परिचय -
  • महाभारत के लेखक - व्यास (कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास)
  • इनके पिता का नाम - पराशर
  • इनकी माता का नाम - सत्यवती
  • जन्म स्थान - उत्तरापथ हिमालय
      वंशावली -
                           वशिष्ठ
                           शक्ति
                           पराशर और माता सत्यवती
                           व्यास
                          शुकदेव
  • वेदव्यास को यमुनाद्वीप में जन्म के कारण द्वैपायन कहते है।
  • वैदिक मन्त्रों को याज्ञिक उपयोग के लिए चार वेदों में विभक्त करने के कारण इन्हे वेदव्यास कहते है।
  • महर्षि व्यास की गणना सप्त चिरंजीवियों में होती है-
                   अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः ।
                   कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ।    
  • महाभारत जैसे विशाल ग्रन्थ की रचना व्यास ने तीन वर्षों में की थी।
  • इस ग्रन्थ में एक लाख श्लोक हैं ।
  • महाभारत एक आर्ष महाकाव्य है।
  • महाभारत में 18 पर्व हैं।
  • 18 पर्वों के अलावा अन्त में इसके परिशिष्ट के रूप में हरिवंश पर्व में कृष्ण जीवन चरित्र वर्णित है, इसे मिलाकर श्लोकों की संख्या एक लाख होती है ।
  • सबसे बड़ा पर्व - शान्तिपर्व है, इसमें 14 हजार श्लोक हैं । इस पर्व के विषय में कहा जाता है कि यह बाद में जोड़ा गया प्रतीत होता है ।
  • सबसे छोटा पर्व - महाप्रस्थानिक पर्व है, इसमें 1500 श्लोक हैं ।
  • महाभारत के पञ्चरत्न जो कि पांच ग्रन्थों में विभाजित हैं, महाभारत के ही भाग हैं - गीता, विष्णुसहस्रनाम, अनुगीता, गजेन्द्रमोक्ष, भीष्मस्तवराज।
  • महाभारत में एक लाख श्लोक हैं इसलिए इसे शतसाहस्री संहिता कहा जाता है।
  • महाभारत को भारत वर्ष का विश्वकोष कहते हैं ।
  • 445 ई. के एक गुप्तकालीन अभिलेख में महाभारत को शतसाहस्री संहिता कहा गया है।
  • इस महाकाव्य के नायक श्रीकृष्ण हैं ।
महाभारत का क्रम -
1. जय - प्रथम चरण में महाभारत का मूलरूप जय के नाम से प्रसिद्ध था। इसमें 8800 श्लोक थे । इसकी मुख्य विषयवस्तु धर्म चर्चा  थी।  व्यास ने वैशम्पायन को इसे सुनाया था।
2. भारत - द्वितीय चरण में जय का विस्तार भारत के रूप में हुआ। इसमें 24000 श्लोक हैं। इसका प्रवचन वैशम्पायन ने जनमेजय के नागयज्ञ में किया था। 
3. महाभारत - तृतीय चरण में एक लाख श्लोकों का महाभारत ग्रन्थ है। इसे सौत नामक ऋषि ने  नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों द्वारा किये जाने वाले द्वादशवार्षिक यज्ञ के समय सुनाया गया था।
महाभारत की प्रमुख टीकाएं -
        टीका                                            टीकाकार
  1. ज्ञानदीपिक                                    देवबोध
  2. मोक्षधाम                                       वैशम्पायन
  3. विषमश्लोकी                                    विमलबोध
  4. जयकौमुदी                                     आनन्दपूर्ण
  5. भारतार्थप्रकाश                                नारायणसर्वज्ञ
  6. भारत संग्रहदीपिका                          अर्जुन मिश्र
  7. भारतभावदीप                                  नीलकण्ठ चतुर्धर
  8. भारतोपाय प्रकाश                             चतुर्भुज मिश्र
महाभारत के मुख्य आख्यान -
1.    कद्रूविनतोपाख्यानम्                     आदिपर्वम्
2.    शकुन्तलोपाख्यानम्                      आदिपर्वम्
3.    ययात्युपाख्यानम्                         आदिपर्वम्
4.    शिशुपालोपाख्यानम्                      सभापर्वम्
5.    मत्स्योपाख्यानम्                         वनपर्वम्
6.    नलोपाख्यानम्                             वनपर्वम्
7.    शिव्युपाख्यानम्                           वनपर्वम्
8.    रामोपाख्यानम्                             वनपर्वम्
9.    सावित्र्युपाख्यानम्                        वनपर्वम्
10.   अम्बोपाख्यानम्                         उद्योगपर्वम्
महाभारत के आश्रित ग्रन्थ -
महाकाव्य -
1.    शिशुपालवधम्                    माघ (सभापर्व)
2.    नैषधीयचरितम्                   श्रीहर्ष (वनपर्व)
3.    किरातार्जुनीयम्                   भारवि (वनपर्व)
4.    भारतमञ्जरी                       क्षेमेन्द्र
नाटक -
1.    दूतघटोत्कचम्                   भास
2.    दूतवाक्यम्                        भास
3.    कर्णभारम्                          भास
4.    मध्यमव्यायोगम्                भास
5.    पञ्चरात्रम्                         भास
6.    ऊरुभङ्गम्                         भास
7.    अभिज्ञानशाकुन्तलम्        कालिदास (आदिपर्व)
8.    वेणीसंहारम्                       भट्टनारायण
9.    बालभारतम्                        राजशेखर
चम्पूकाव्य -
1.    नलचम्पू                            त्रिविक्रमभट्ट (वनपर्व)
2.    भारतचम्पू                         अनन्तभट्ट
3.    पाञ्चालीस्वयंवरचम्पू        नारायणभट्ट
4.    द्रौपदीपरिणयचम्पू             चन्द्रकवि
महाभारत का साहित्यिक महत्व -
  • काव्यशास्त्रीय दृष्टि से महाभारत में पाञ्चालीरीति है। 
  • यद्यपि महाभारत में अङ्गीरस शान्तरस है लेकिन भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्यादि  पर्वों में वीर रस की धारा प्रवाहित होती है।
  • महाभारत में मुख्य रूप से शब्दालङ्कारों में अनुप्रास और अर्थालङ्कारों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास अलङ्कार हैं।
  • महाभारत में अधिकांशतः अनुष्टुप् छन्द है।
  • महाभारत की भाषाशैली संवादात्मिका, सरल एवं गम्भीर है।
()
  • पुराण - पुराण की परिभाषा, महापुराण, उपपुराण, पौराणिक सृष्टि-विज्ञान, पौराणिक आख्यान।
पुराण की परिभाषा - पुराण लक्षण के सन्दर्भ में विष्णु पुराण में पुराण के पाँच लक्षण कहे गए हैं -
                        सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च ।
                        वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्चलक्षणम् ।।
1. सर्गः - मूलप्रकृति के तीन गुणों (सत्व, रज तथा तम) के विक्षोभ से जगत में विविध पदार्थों की उत्पत्ति होती है जिसे  सर्ग या सृष्टि कहते हैं।
2. प्रतिसर्ग - प्रलय के बाद सृष्टि का पुनः प्रादुर्भाव होना प्रतिसर्ग है।
3. वंश - देवताओं और ऋषियों की कुल परम्परा का वर्णन वंश कहलाता है।
4. मन्वन्तर - मनु के पुत्रों, देवताओं, इन्द्र, ऋषियों, भगवान और अंशावतारों की घटनाओं का वर्णन मन्वन्तर है।
5. वंशानुतरित - विभिन्न वंशों में उत्पन्न महर्षियों और राजाओं के चरित्र का वर्णन तथा उनकी वंश परम्परा के वर्णन को वंशानुचरित कहते है।
इस प्रकार पुराणों में सर्गादि पांच विषयों का विवेचन ही मुख्य विषय है।
          प्राचीन आख्यानों को पुराण कहते हैं- पुराणम् आख्यानं पुराणम्। प्राचीन काल में जो घटनाएं थी उन्हें पुराण कहते हैं- यस्मात् पुरा हि अनति पुराणम्। छान्दोग्योपनिषद् में इतिहास तथा पुराण को संयुक्त रूप से नारद जी ने पञ्चमवेद कहा है। व्याकरण की व्युत्पत्ति के अनुसार पुरा भवं इति पुराणम् अर्थात् पुरानी घटनायें। महर्षि वेदव्यास (कृष्ण द्वैपायन) को पुराणों का कर्ता अथवा लेखक माना जाता है- अष्टादशपुराणां कर्ता सत्यवतीसुतः। परन्तु ऐसी मान्यता है कि वेदव्यास जी बोल रहे थे और गणपति भगवान लिख रहे थे, अतः पुराणों के लेखक के रूप में गणेश जी का भी नाम लिये जाता है ।
महापुराण -
                    पुराणों की संख्या के विषय में मतभेद नहीं है, 18 पुराण हैं-
                    मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् ।
                    अनापलिङ्गकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ।।
इस श्लोक में पुराणों के नाम का संग्रहण किया गया है -
1. मद्वयम् - म से दो पुराण हैं - मत्स्यपुराण और मार्कण्डेय पुराण
2. भद्वयम् - भ से दो पुराण हैं - भविष्य पुराण और भागवत पुराण
3. ब्रत्रयम् -    ब से तीन पुराण हैं - ब्रह्माण्ड पुराण, बाह्यपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण
4. वचतुष्टयम् - व से चार पुराण हैं - वामन पुराण, वराह पुराण, विष्णु पुराण और वायु पुराण
5. अ - अ से अग्निपुराण
6. ना - ना से नारद पुराण
7. प - प से पद्मपुराण
8. लिं - लिं से लिङ्गपुराण
9. ग - ग से गुरुड़ पुराण
10. कू - कू से कूर्म पुराण
11. स्क - स्क से स्कन्द पुराण
उपपुराण - इन महापुराणों के अतिरिक्त 18 उपपुराण हैं -
1. सनत्कुमार    2. नारसिंह    3. स्कन्द    4. शिवधर्म    5. आश्चर्य
6. नारदीय        7. कापिल     8. वामन     9. औशनस    10. ब्रह्माण्ड
11. वारुण        12. कालिका    13. माहेश्वर    14. साम्ब    15. सौर
16. पराशर      17. मारीच       18. भार्गव पुराण

पुराणों का तीन गुणों के आधार पर विभाजन -
1.    सात्त्विक पुराण - विष्णु, नारद, भागवत, गरुण और वराह पुराण सात्त्विक पुराण कहे जाते हैं । इनमें विष्णु की महत्ता को प्रतिपादित किया गया है ।
2.    तामस पुराण - मत्स्य, कूर्म, लिङ्ग, अग्नि, स्कन्द पुराण तामस पुराण हैं । इनमें शिव की महत्ता को प्रतिपादित किया गया है ।
3.    राजस पुराण - ब्रह्म, ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, वामन और भविष्य पुराण राजस पुराण है। इनमें ब्रह्मा की महत्ता को प्रतिपादित किया गया है।
पौराणिक सृष्टि विज्ञान - पौराणिक सृष्टि-विज्ञान में सांख्य दर्शन द्वारा निर्दिष्ट सृष्टि विद्या विशेष रूप से दिखाई देती है । पुराणों में नवविध सृष्टि का वर्णन प्राप्त होता है, उदाहरण - पद्मपुराण के सृष्टिखण्ड के तृतीय अध्याय में 76 अध्याय से 81 अध्याय तक पद्यानुसार वर्णन प्राप्त होता है। ये मुख्य रूप से तीन पदों में विभाजित है- 1. प्राकृत सर्ग, 2. वैकृत सर्ग और 3. प्राकृत-वैकृत सर्ग। प्राकृत सर्ग की संख्या- 3 है, वैकृत सर्ग की संख्या- 5 है और प्राकृत-वैकृत सर्ग की संख्या - 1 है । इस प्रकार सर्गों की सम्मिलित संख्या 9 है।

याज्ञवल्क्य स्मृति के 25 प्रकरणों के नाम -
1. साधारणव्यवहारमातृकाप्रकरणम्
2. असाधारणव्यवहारमातृकाप्रकरणम्
3. ऋणादानप्रकरणम्
4. उपनिधिप्रकरणम्
5. साक्षिप्रकरणम्
6. लेख्यप्रकरणम्
7. दिव्यप्रकरणम्
8. दायविभागप्रकरणम्
9. सीमाविवादप्रकरणम्
10. स्वामिपालविवादप्रकरणम्
11. अस्वामिविक्रयप्रकरणम्
12. दत्ताप्रदानिकप्रकरणम्
13. क्रीतानुशयप्रकरणम्
14. अभ्युपेत्याशुश्रूषाप्रकरणम्
15. संविंद्व्यतिक्रमप्रकरणम्
16. वेतनादानप्रकरणम्
17. द्यूतसमाहृयप्रकरणम्
18. वाक्पारुष्यप्रकरणम्
19. दण्डपारुष्यप्रकरणम्
20. साहसप्रकरणम्
21. विक्रीयासंप्रदानप्रकरणम्
22. संभूयसमुत्थानप्रकरणम्
23. स्तेप्रकरणम्
24. स्त्रीसंग्रहणप्रकरणम्
25. प्रकीर्णकप्रकरणम्

1 टिप्पणी:

Blogger sandeep ने कहा…

Very useful information thank you

शुकनासोपदेश प्रश्नोत्तरी

नोटः- यह सभी प्रश्न किसी न किसी प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये हैं । प्रश्न 1 - बाणभट्टस्य गद्ये रीतिरस्ति - पञ्चाली प्रश्न 2- शुकनासोपदेश...