मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

संस्कृत के महानायक का जन्मदिन


    आज संस्कृत के महानायक श्री जगदानंद झा जी का जन्मदिन है । संस्कृत क्षेत्र से जुड़ा लगभग प्रत्येक व्यक्ति आपसे परिचित है, फिर भी कुछ संक्षिप्त जानकारी आप लोगों को देती हूं । आप विश्वविख्यात शैवागम परम्परा के विद्वान् पं. रामेश्वर झा के पौत्र हैं । आपका जन्म 30 दिसम्बर, 1973 में, ग्राम पटसा, जिला समस्तीपुर, बिहार में हुआ है । आपने अपने ज्येष्ठ भ्राता विमलेश झा से संस्कृत की प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की । आज जहां लोग विद्यालयीय शिक्षा को ही पूर्णतया आत्मसात् नहीं कर पाते हैं, वहीं आपने संस्कृत के लगभग सभी क्षेत्रों का अध्ययन किया, जिनमें व्याकरणशास्त्र के गुरु पं. रामप्रीत द्विवेदी, वाराणसी, पं. शशिधर मिश्र, वाराणसी, न्यायशास्त्र के गुरु महामहोपाध्याय प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी, वाराणसी, जगद्गुरुरामानन्दाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य, वाराणसी आदि से विद्याओं का अध्ययन किया । आपने कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा से वर्ष 1994 में नव्य व्याकरण विषय पर आचार्य की उपाधि प्राप्त की। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से ग्रन्थालय एवं सूचना विज्ञान विषय से बी.लिव की उपाधि प्राप्त की । उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ के पुस्तकालय में सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष पद पर आप 1999 से कार्य करते हुए पाण्डुलिपि विवरणिका, व्यावहारिक संस्कृत प्रशिक्षक, पौरोहित्य कर्म प्रशिक्षक, लखनऊ के पुस्तकालय आदि अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया । संस्कृत के डिजिटाइजेशन में आपका योगदान अद्भुत है । अब तक पुस्तकालय संदर्शिका, स्कूल लोकेटर तथा हिन्दी संस्कृत शब्दकोश नामक तीन ऐप बना चुके हैं । संस्कृत पुस्तकालय के कम्प्यूटरीकरण पर आपका असाधारण अधिकार है । संस्थान के पुस्तकालय के विकास में आपका योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा है । आपने 2011 से संस्कृतभाषी ब्लाग पर लेखन आरम्भ क्रिया । इस ब्लॉग की महत्ता आप इससे ही लगा सकते हैं कि इस ब्लॉग के माध्यम से भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी अध्ययन किया जाता है । इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि संस्कृत को अन्तर्जाल के माध्यम से पहुंचाने में आपका कोई मुकाबला नहीं कर सकता । 2015 में संस्कृतसर्जना त्रैमासिकी ई-पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया । अब तक 100 से अधिक राष्ट्रीय स्तर के शैक्षिक कार्यक्रमों, कवि सम्मेलनों, नाटकों सहित विविध प्रकार की कार्ययोजनाओं का संचालन सफलता पूर्वक कर चुके हैं, जिसमें 2013 में वाराणसी में आयोजित अखिल भारतीय व्यास महोत्सव एक है । इस महोत्सव का आयोजन आपके अथक परिश्रम का ही फल है । 2017 के संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संस्कृत सब्जी मंडी की अवधारणा को लेकर आप काफी चर्चित रहे।  इसीलिए मै कहती हूं कि संस्कृत के ऐसे सेवक विरले ही होते हैं । संस्कृत के क्षेत्र में जो भी रचनात्मक कार्य आप देखेंगे, वह सब लगभग इनकी ही बुद्धि की उपज है । संस्कृत के प्रत्येक क्षेत्र में आपका ज्ञान अतुलित है । आप बचपन से लेकर अब तक संस्कृत के लिए ही जीते आए हैं । खाते, पीते, उठते, बैठते प्रत्येक क्षण अहर्निश आप सिर्फ और सिर्फ संस्कृत के उदात्त उत्थान के बारे में ही सोचते रहते हैं । आपने अपना पद, पैसा, पावर, प्रतिष्ठा आदि सब कुछ संस्कृत के लिए खर्च किया है । आपका संस्कृत संस्थान से जुड़े रहना भी उस संस्थान के विकास के लिए वैसे ही आवश्यक है जैसे शरीर के विकास के लिए अन्न, और इस बात से सभी परिचित ही है । मुझे आज भी याद है 1 जनवरी 2018 का वह दिन, जब मैं और मेरी सहेली अंजली संस्थान से पुस्तक निकलवाने गए थे, उस दिन आपने हम दोनों को संस्थान का वह प्रोजेक्ट दिखाया था जिसके माध्यम से संस्थान को इतना बड़ा बजट पास हुआ । उसके पीछे आपकी मेहनत और तपस्या ही है जिसके कारण आज संस्कृत की योजनाएं और कार्य पूरे उत्तर प्रदेश में संचालित हो रहे हैं । संस्थान में सभी कर्मचारी अपनी नौकरी करने जाते हैं लेकिन आप संस्कृत के प्रति अपनी निष्ठा और कर्त्तव्य को पूर्ण करने के लिए जाते हैं । आप उस संस्थान के प्रशासनिक अधिकारी के रूप में नहीं जाने जाते है बल्कि आप एक अनन्य संस्कृत सेवक के रूप में जाने जाते है, और यह बात प्रत्येक वह छात्र जानता है जो आपसे किसी न किसी माध्यम से जुड़ा है, फिर वह चाहे फेसबुक हो, संस्कृत भाषी ब्लाग हो, यू ट्यूब चैनल हो, संस्कृतं भारतम् समूह इत्यादि क्यो न हो । आप भले ही शिक्षक के पद पर न हो लेकिन जो कार्य आपने किया है वह एक विश्वविद्यालय में पदासीन प्रोफेसर भी नहीं कर सकता । इसलिए सही अर्थों में आप एक अध्यापक है । आपने संस्कृत को सर्वसुलभ बनाने में तकनीकी का भरपूर उपयोग किया है और कर रहे हैं । संस्कृत के क्षेत्र में सदैव कुछ न कुछ रचनात्मक कार्य करने में आप रत रहते हैं ।

    मुझे संस्कृत से संबंधित कई कार्य आपके साथ करने का अवसर प्राप्त हुआ और उस बीच मैंने अनुभव किया कि संस्कृत के लिए जिस तरह आप सोचते हैं वैसे और कोई भी नहीं सोचता । मुझे आपके साथ संस्थान में भी अल्प समय के लिए कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ । आपसे मैने बहुत कुझ सीखा है । जहां लोग छोटे कार्यों में भी अपनी जेब भरने हेतु अनीति का मार्ग अपनाने में भी पीछे नहीं हटते वहीं आपको संस्कृत का छोटे से छोटा और बड़े से बड़े कार्यों में भी पागलों की तरह तब तक कार्य करते देखा है जब तक कि उस कार्य का लक्ष्य प्राप्त न हो जाए । श्री झा के शब्दों में - "मैं जिस काम को अपने हाथ में लेता हूं, उसे अपनी प्रतिष्ठा का विषय मानता हूं। अतः स्वयं को दांव पर लगाता हूँ। यही कारण है कि मुझे अक्सर यह याद ही नहीं रहता कि अवकाश किस दिन होता है। जब तक संतुष्टि के लायक परिणाम नहीं मिलता मैं अपने परिचित, स्वयं का सम्पूर्ण संसाधन झोंक देता हूं। मैं स्वयं चुनौती पूर्ण लक्ष्य का निर्धारण करता हूं और फिर उसे पूरा करने के लिए पागल की तरह लग जाता हूँ। इस कारण कई बार कई लोगों से मनभेद हो जाता है, क्योंकि मेरा प्रिय वही रह जाता है, जो मेरे लक्ष्य की पूर्ति का सहयोगी हो। लक्ष्य के इतर लोगों के लिए तजहि ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही ।"

    संस्कृत की वर्तमान स्थिति और समाचार से आप सदैव अपडेट रहते हैं । आप विद्यार्थियों की जिज्ञासा का समाधान करने में तत्पर रहते हैं । विद्यार्थियों को आपके ब्लाग से नित्य अध्यय हेतु कुछ न कुछ प्राप्त होते रहता है । आज जब शिक्षा प्राप्त करने का उद्देश्य मात्र डिग्री लेकर नौकरी पाना ही रह गया है वहीं आप शिक्षण को ज्ञान और कौशल को बढ़ावा देने में लगे रहते हैं । वर्तमान समय में भी आप संस्कृत के प्रचार प्रसार, प्राचीन ज्ञान संपदा के संरक्षण की दिशा में सदैव रत रहते हुए, नित्य नई नई युक्तियों और योजनाओं पर कार्य करते रहते हैं । संस्कृत कार्य हेतु सदैव आप हनुमान मुद्रा में ही रहते हैं । आपके  बारे में जितना कहा जाए उतना कम ही है ।

आपके जन्मदिन पर आपको अनन्त शुभकामनाएं ।




श्वेता गुप्ता

4 टिप्‍पणियां:

Vidya Vishesh ने कहा…

मेरे अग्रज श्री जगदानन्द झा को जन्मदिवस की अशेष शुभकामनाएँ ।

Jagdanand Jha ने कहा…

इसमें आपने बहुत कुछ लिख रखा है। मैं भी अपने किये कार्यों का लेखा जोखा नहीं रख पाता हूँ। मैं अपने जीवन को यदि दो भागों में विभाजित करूँ तो एक होगा, लखनऊ आगमन के पूर्व का भाग तथा इसके पहले का भाग। पूर्व भाग में मैंने संस्कृत क्षेत्र के लिए कई उपक्रम किये। इनमें विमल फाउन्डेशन की स्थापना, पुरी में रहते एक विद्यालय की स्थापना, उड़ीसा के मित्रों के साथ मिलकर पूर्ण संस्कृति तथा भक्ति आन्दोलन नामक संस्था की स्थापना, वाराणसी में श्री राम कथा प्रचार समिति की स्थापना, वाराणसी में ही निर्धन छात्र कोष की स्थापना आदि मुख्य हैं। मैंने हिन्दी कविता का लेखन भी किया करता था, जिसकी कुछ कविताएं मेरे ब्लॉग पर उपलब्ध हैं। हिन्दी कथा, डायरी भी लिखा। छात्र जीवन में अनेक स्थानों पर विस्थापित होते रहने के कारण कई रचनायें खो गयी। लखनऊ आगमन तक उपो गाथा रक्षित था। इसमें १०० गाथाएं लिखी गई थी। किमधिकम् पुनः कभी अपने बारे में लिखने की कोशिश करूंगा। संस्कृत पुस्तकालय के लिए मैंने एक नयी वर्गीकरण पद्धति की खोज की। यह पद्धति प्राच्य भारतीय ज्ञान परम्परा को विभाजित करने में अधिक उपयोगी है।

Jagdanand Jha ने कहा…

इसमें आपने बहुत कुछ लिख रखा है। मैं भी अपने किये कार्यों का लेखा जोखा नहीं रख पाता हूँ। मैं अपने जीवन को यदि दो भागों में विभाजित करूँ तो एक होगा, लखनऊ आगमन के पूर्व का भाग तथा इसके पहले का भाग। पूर्व भाग में मैंने संस्कृत क्षेत्र के लिए कई उपक्रम किये। इनमें विमल फाउन्डेशन की स्थापना, पुरी में रहते एक विद्यालय की स्थापना, उड़ीसा के मित्रों के साथ मिलकर पूर्ण संस्कृति तथा भक्ति आन्दोलन नामक संस्था की स्थापना, वाराणसी में श्री राम कथा प्रचार समिति की स्थापना, वाराणसी में ही निर्धन छात्र कोष की स्थापना आदि मुख्य हैं। मैंने हिन्दी कविता का लेखन भी किया करता था, जिसकी कुछ कविताएं मेरे ब्लॉग पर उपलब्ध हैं। हिन्दी कथा, डायरी भी लिखा। छात्र जीवन में अनेक स्थानों पर विस्थापित होते रहने के कारण कई रचनायें खो गयी। लखनऊ आगमन तक उपो गाथा रक्षित था। इसमें १०० गाथाएं लिखी गई थी। किमधिकम् पुनः कभी अपने बारे में लिखने की कोशिश करूंगा। संस्कृत पुस्तकालय के लिए मैंने एक नयी वर्गीकरण पद्धति की खोज की। यह पद्धति प्राच्य भारतीय ज्ञान परम्परा को विभाजित करने में अधिक उपयोगी है।

संस्कृत पाठशाला Sanskrit Pathashala ने कहा…

अभी बहुत कुछ शेष है । लिखने का अवकाश रहेगा।

शुकनासोपदेश प्रश्नोत्तरी

नोटः- यह सभी प्रश्न किसी न किसी प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये हैं । प्रश्न 1 - बाणभट्टस्य गद्ये रीतिरस्ति - पञ्चाली प्रश्न 2- शुकनासोपदेश...