शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

न केवलं कृष्ण


न केवलं कृष्ण सुमाञ्जलिं मम्
             गृहाण गन्धान्धितषट्पदावलीम् ।
अनेक दुष्कर्मविदूषिताङ्गुलि
                निजे करे मेऽपि करद्वयम् कुरु ॥
अर्थ - हे कृष्ण ! मेरी इस अंजली भर को मत ग्रहण करना जिसमें सुगंध की अधिकता से भौरों को उन्मत्त कर देने वाले फूल भरे हैं। मेरी इन हथेलियों को भी अपने हाथों में ले लेना जिनकी उंगलियां अनेक दोष कर्मों से दूषित हैं।

न केवलं कृष्ण पटीरलेपनम्
               गृहाण निर्वापकमङ्गतेऽङ्गके ।
कठोरलोकेषु विघर्षतापितं
              कदापि मेऽङ्गं निगृहाण चर्चया ॥
अर्थ - हे कृष्ण ! अंगों को सुशीतल करने वाले इस चंदन के लेप मात्र को ग्रहण करके बस मत कर देना, कठोर संसार में घिस घिसकर व्यथित हुए मेरे इन अंगों की भी चर्चा को कभी स्वीकार कर लेना ।

न केवलं कृष्ण सुमन्दगन्धितै:
              सुतृप्य धूपैर्मधुधूमवन्दितै: ।
तुषाग्निगर्भीकृतमर्म जीवनं
               ममापि धूम्रं परिदृश्यतामिदम् ॥
अर्थ - हे कृष्ण ! केवल मीठे और मंद सुगंध वाले धूपों से ही मत तृप्त हो जाइएगा, मर्म स्थलों में सुलगते हुए भूसी की आग से धुआं धुआं मेरे जीवन की ओर भी थोड़ी दृष्टि डाल लीजिएगा ।

भवेन्नवे ते नवनीतभोजने
              रुचिः परा गोकुलचन्द्र सुन्दर ।
अथ व्यथामन्थसुमन्थितान्तरं
              मनो ममापि स्वदतां समर्पितम् ॥
अर्थ - हे गोकुल के चंद्र सुंदर श्री कृष्ण! माखन खाने में आपकी रूचि अगर है तो है, व्यथाओं की पीड़ा की मथानी से अच्छी तरह मथे गए मेरे मन में भी आपकी रूचि हो जाए, जिसे मैंने आपको समर्पित किया है।

गृहाण हे कृष्ण नवार्थसंभृतां
             रसानुकूलाक्षरसुन्दरीं स्तुतिम् ।
तथाऽतथासुन्दरवर्णवर्णितां
            कथामुरीकुर्वथ मामिकामपि ॥
अर्थ - हे कृष्ण ! नए-नए अर्थों से भरी हुई रस के अनुकूल शब्दों अक्षरों के प्रयोग से मनोहर लगने वाली इस स््तुति को स्वीकार कीजिए । रूखे और फीके वर्णनों के कारण वितृष्णाजनक मेरी इस जीवन कथा को भी ।

दलं च पुष्पं च फलं तथोदकं
           शुभं भवेत्तेऽर्चकवृन्ददापितम् ।
अपत्रपुष्पे विफले सुनीरसे
           तदीयजीवेऽप्यवधेहि माधव ॥
अर्थ - तुम्हारे अर्चकों द्वारा समर्पित फूल, फल, पत्ते और जल तुम्हारे लिए मंगलमय और पथ्य हों, हे कृष्ण ! लेकिन तुम्हारा ध्यान उनके जीवन पर भी अवश्य जाये जिनमें पत्ते, फूल, फल या रस कुछ भी नहीं है ।

                            (डॉ. बलराम शुक्ल:)
(आदरणीय बलराम शुक्ल द्वारा रचित ये पद्य मुझे अत्यंत प्रिय हैं। यह हिन्दी अनुवाद भी आपके द्वारा किया गया है।)

सोमवार, 26 जुलाई 2021

मृच्छकटिकम् (सामान्य परिचय)

अंकों के नाम

१. अलंकारन्यास

२. द्यूतकर संवाहक

३. सन्धिच्छेद

४. मदनिका-शर्विलक

५. दुर्दिन

६. प्रवहण विपर्यय

७. आर्यक अपहरण

८. वसन्तसेनामोटन

९. व्यवहार

१०. संहार

पात्र-परिचय

पुरुष पात्र -
सूत्रधार - प्रधान नट, व्यवस्थापक
चारुदत्त - नायक, उज्जयिनी का प्रमुख नागरिक
मैत्रेय - विदूषक, चारुदत्त का मित्र ।
रोहसेन - चारुदत्त का पुत्र । 
शकार - प्रतिनायक, राजा पालक का साला।
शकारविट- शकार का सहचर ।
स्थावरक चेट - शकार का सेवक ।
संवाहक - चारुदत्त का भूतपूर्व नौकर, जुआरी और बाद में बौद्ध भिक्षु बन गया।
माथुर - प्रधान जुआरी, सभिक ।
दर्दुरक- दूसरा जुआरी ।
वर्धमानक - चारुदत्त का सेवक ।
शर्विलक – ब्राह्मण, किन्तु चोर और सच्चा मित्र ।
चेट- वसन्तसेना का सेवक ।
बन्धुल – वेश्यापुत्र, वसन्तसेना का आश्रित युवक ।
कुम्भीलक - वसन्तसेना का सेवक
विट – वसन्तसेना का सहचर ।
कर्पूरक - वसन्तसेना का भृत्य।
आर्यक- गोपाल पुत्र, बन्दी, बाद में राजा बना।
वीरक - नगर रक्षक।
चन्दनक - नगर रक्षक ।
शोधनक – न्यायालय का सफाई करने वाला।
अधिकरणिक - न्यायाधीश ।
श्रेष्ठी - न्याय निर्णय में सहायक।
कायस्थ - पेशाकार, मुकदमा लेखक।
चाण्डाल - शूली पर चढ़ाने वाला।

स्त्री पात्र -
नटी- सूत्रधार की पत्नी ।
वसन्तसेना - नायिका, गणिका ।
धूता - चारुदत्त की धर्मपत्नी ।
रदनिका - चारुदत्त की सेविका ।
चेटी - वसन्तसेना की दासी ।
छत्रधारिणी - वसन्तसेना की परिचारिका ।
वृद्धा - वसन्तसेना की माता ।
मदनिका - वसन्तसेना की प्रियदासी, शर्विलक की प्रेयसी।

मंच पर न आने वाले पात्र -
जूर्णवृद्ध - चारुदत्त का मित्र ।
पालक - उज्जैन का राजा । 
रेभिल - उज्जैन का व्यापारी, चारुदत्त का मित्र, विशिष्ट गायक ।
सिद्ध पुरुष - आर्यक की राज्य प्राप्ति की घोषणा करने वाला महात्मा ।

शुकनासोपदेश प्रश्नोत्तरी

नोटः- यह सभी प्रश्न किसी न किसी प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये हैं । प्रश्न 1 - बाणभट्टस्य गद्ये रीतिरस्ति - पञ्चाली प्रश्न 2- शुकनासोपदेश...