सामान्य परिचय -
- कुमारसंभवम् महाकाव्य कालिदास की प्रारम्भिक रचना है ।
- महाकाव्य का नामकरण कथानक पर आधारित है - कुमारस्य सम्भवः जन्म यस्मिन् तत् कुमारसम्भवम् ।
- इस महाकाव्य में में सत्रह सर्ग हैं ।
- इस महाकाव्य के नायक शिव हैं (दिव्य कोटि के नायक) ।
- प्रतिनायक तारकासुर है ।
- इस महाकाव्य का उपजीव्य है - शिवपुराण, रामायण, महाभारत
- मुख्य रस है - श्रृंगार रस
- इस महाकाव्य में कालिदास ने उपजाति छन्द का अधिक प्रयोग किया है । सर्गान्त में सर्वाधिक मालिनी छन्द का प्रयोग हुआ है ।
- इस महाकाव्य के प्रथम सर्ग में उपजाति छन्द है और सर्गान्त में मालिनी छन्द है ।
- मङ्गलाचरण -
पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः ।।
- यह वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण है । इसमें हिमालय का वर्णन किया गया है । मंगलाचरण में उत्प्रेक्षा अलंकार है तथा उपजाति छन्द है ।
- इस महाकाव्य में कालिदास ने शिव-पार्वती विवाह, कुमार कार्तिकेय के जन्म तथा उनके द्वारा तारकासुर के वध की कथा वर्णित की है ।
- कई विद्वान् प्रथम 8 सर्ग को ही कालिदास की रचना मानते है और इसीलिए काव्यशास्त्रीय आचार्य प्रथम आठ सर्गों से ही उद्धरण देते हैं । काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से प्रथम आठ सर्ग अधिक अच्छे कहे जा सकते हैं ।
- मल्लिनाथ की सञ्जीवनी टीका प्रथम आठ सर्गों तक ही है । मल्लिनाथ के पूर्ववर्ती आचार्य अरुणगिरिनाथ ने भी आठ सर्गों तक ही टीका लिखी है ।
- नारायण पण्डित जो कि विवरण टीका के लेखक हैं, कहते हैं कि - कुमारसंभवम् महाकाव्य का लक्ष्य पार्वती द्वारा शिव के चित्त का आकर्षण मात्र है ।
- सम्पूर्ण महाकाव्य पर सर्वप्रथम टीका लिखने वाले सीताराम कवि हैं, जिन्होंने संजीवनी नामक टीका लिखी।
- एको हि दोषो गुणसन्निपाते निमज्जतीन्दोः किरणेष्विवाङ्कः । (1/3)
- विषवृक्षोSपि संवर्ध्य स्वयं छेत्तुमसाम्प्रतम् । (2/55)
- प्रायेण समग्रयविधौ गुणानां पराङ्मुखी विश्वसृजः प्रवृत्तिः । (3/28)
- आत्मेश्वराणां न हि जाचु विघ्नाः । (3/40)
- नहीश्वरव्याहृत्यः कदाचिद् पुष्णन्ति लोके विपरीतमर्थम् । (3/63)
- कठिनाः खलु स्त्रियः । (4/5)
- स्वजस्य हि दुःखमग्रतो विवृत द्वारमिवोपजायते ।। (4/26)
- प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता । (5/1)
- न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्ष्यते । (5/11)
- शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् । (5/33)
- न रत्नन्विष्यति मृग्यते हि तत् । (5/45)
- क्लेशः फलेन हि पुनर्नवतां विधत्ते । (5/86)
- मनोरथानामगतिर्न विद्यते ।
- न कावृत्तिर्वचनीयमीक्ष्यते ।
- प्रायेण गृहिणी नेत्राः कन्यार्थेषु कटुम्बिनः ।
सर्ग संख्या सर्ग का नाम श्लोक संख्या
1. उमोत्पत्ति 60
2. ब्रह्मसाक्षात्कार 64
3. मदन दहन 76
4. रति विलाप 46
5. तपः फल उदय 86
6. उमा प्रदान 95
7. उमा परिणय 95
8. उमा सुरत वर्णन 89
9. कैलाश गमन 52
10. कुमार उत्पत्ति 60
11. कुमार उत्पत्ति 50
12. कुमार सेनापति वर्णन 60
13. कुमार सेनापति अभिषेक 51
14. देवसेना प्रयाण 53
15. देवसेना प्रयाण 53
(सुरासुर सैन्यसंघट्ट)
16. देवसेना प्रयाण 51
(सुरासुर सैन्य संग्रामवर्णन)
17. तारकासुर वध 55
- कुल 1096 श्लोक हैं ।
कथावस्तु -
प्रथम सर्ग -
हिमालय का भव्य वर्णन । हिमालय-मैना विवाह । पार्वती का जन्म और सौन्दर्य वर्णन । नादर द्वारा शिव-पार्वती विवाह की चर्चा । पार्वती द्वारा शिव की आराधना ।
द्वितीय सर्ग -
तारकासुर से पीड़ित देवताओं के द्वारा ब्रहाा की प्रार्थना । ब्रह्मा द्वारा उपाय बताना कि शङ्कर-पार्वती का पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकता है ।
तृतीय सर्ग -
देवता कामदेव का उपयोग करते हैं शिव के मन में क्षोभ उत्पन्न करने के लिए । कामदेव द्वारा बसन्त ऋतु फैलाना और शिव पर काम बाण चलाना । शिव कामदेव को भस्म कर देते हैं ।
चतुर्थ सर्ग -
कामदेव की पत्नी रति विलाप करती है ।
पञ्चम सर्ग -
यह सर्ग महाकाव्य का श्रेष्ठ सर्ग है । इसमें पार्वती की घोर तपस्या का वर्णन है । शिव-पार्वती संवाद ।
षष्ठ सर्ग -
विवाह को इच्छुक शिव का सन्देश लेकर सप्त ऋषिगण हिमालय के पास जाते हैं ।
सप्तम सर्ग -
शिव की दर्शनीय वर यात्रा का वर्णन । पार्वती-परिणय ।
अष्टम सर्ग -
विवाह के पश्चात् शिव-पार्वती के दाम्पत्य जीवन का वर्णन और केलि विहार वर्णन ।
नवम सर्ग -
शिव-पार्वती का विहार यात्रा करते हुए कैलास पर्वत गमन ।
दशम सर्ग -
कार्तिकेय का गर्भ में आना ।
एकादश सर्ग -
कुमार का जन्म तथा पुत्र जन्मोत्सव । बाल्यावस्था का वर्णन ।
द्वादश सर्ग -
कुमार का सेनापति बनना ।
त्रयोदश सर्ग -
कुमार का सैन्य-संचालन के कौशल का वर्णन ।
चतुर्दश सर्ग -
देवसा द्वारा आक्रमण हेतु प्रस्थान
पंचदश सर्ग -
देवासुर सेनाओं का संघर्ष ।
षोडश सर्ग -
युद्ध वर्णन
सप्तदश सर्ग -
कुमार द्वारा तारकासुर का वध ।
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