रे मन ! अब तू सो जा
थक जाता है जगते जगते।
बीती बातें कहते कहते
सुनता हूं सब सहते सहते ।
किससे कहूं मैं निजी विपदा
दिल जो तोड़ा कभी है जोड़ा ?
किसने सुना वह क्रंदन दुखड़ा
क्यों आहत हो किसी का मुखरा ।
जगते जगते थक जाता हूं
नींद नहीं आती है
दुःस्वप्न चले आते हैं
क्यों घटती है ये सब घटना ।
एक नहीं है जीवन संगी
किससे कहूं मैं निजी दुखड़ा ।
रे मन ! सो जा रात अधिक नहीं
अपना जीवन खुद का प्यारा
रे मन ! अब तू सो जा - सो जा - सो जा ।।
(श्री जगदानंद झा )
1 टिप्पणी:
🌷🌷🌷
एक टिप्पणी भेजें