शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

अक्षय तृतीया

   'अक्षय' शब्द का अर्थ है- जिसका क्षय या नाश न हो। इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे 'अक्षय तृतीया' कहते हैं। 
    भविष्यपुराण, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, स्कन्दपुराण में इस तिथि का विशेष उल्लेख है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। इस दिन सभी देवताओं व पितरों का पूजन किया जाता है। पितरों का श्राद्ध कर धर्मघट दान किए जाने का उल्लेख शास्त्रों में है। वैशाख मास भगवान विष्णु को अतिप्रिय है अतः विशेषतः विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए।
       स्कन्दपुराण के अनुसार, जो मनुष्य अक्षय तृतीया को सूर्योदय काल में प्रातः स्नान करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करके कथा सुनते हैं, वे मोक्ष के भागी होते हैं । जो उस दिन मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए दान करते हैं, उनका वह पुण्यकर्म भगवान की आज्ञा से अक्षय फल देता है।
     भविष्यपुराण के मध्यमपर्व में कहा गया है वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में गंगाजी में स्नान करने वाला सब पापों से मुक्त हो जाता है। वैशाख मास की तृतीया, स्वाती नक्षत्र और माघ की तृतीया रोहिणी युक्त हो तथा आश्विन तृतीया वृषराशि से युक्त हो तो उसमें जो भी दान दिया जाता है, वह अक्षय होता है । विशेषरूप से इनमें हविष्यान्न एवं मोदक देने से अधिक लाभ होता है तथा गुड़ और कर्पूर से युक्त जलदान करने वाले की विद्वान् पुरुष अधिक प्रंशसा करते हैं, वह मनुष्य ब्रह्मलोक में पूजित होता है। यदि बुधवार और श्रवण से युक्त तृतीया हो तो उसमें स्नान और उपवास करने से अनंत फल प्राप्त होता हैं।

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं ।
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया ॥
उद्दिश्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः ।
तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव ॥
अर्थात् : भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं, हे राजन इस तिथि पर किए गए दान व हवन का क्षय नहीं होता है; इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने इसे अक्षय तृतीया कहा है। इस तिथि पर भगवान की कृपा दृष्टि पाने एवं पितरों की गति के लिए की गई विधियां अक्षय-अविनाशी होती हैं ।

    अक्षय तृतीया के दिन केसर और हल्दी से देवी लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियों में लाभ मिलता है।

भविष्यपुराण, ब्राह्मपर्व, अध्याय 21 -
वैशाखे मासि राजेन्द्र तृतीया चन्दनस्य च ।
वारिणा तुष्यते वेधा मोदकैर्भीम एव हि । ।
दानात्तु चन्दनस्येह कञ्जजो नात्र संशयः । ।
यात्वेषा कुरुशार्दूल वैशाखे मासि वै तिथिः ।
तृतीया साऽक्षया लोके गीर्वाणैरभिनन्दिता ॥
आगतेयं महाबाहो भूरि चन्द्रं वसुव्रता ।
कलधौतं तथान्नं च घृतं चापि विशेषतः॥
यद्यद्दत्तं त्वक्षयं स्यात्तेनेयमक्षया स्मृता ॥
यत्किञ्चिद्दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु ।
तत्सर्वमक्षयं स्याद्वै तेनेयमक्षया स्मृता ॥
योऽस्यां ददाति करकन्वारिबीजसमन्वितान् ।
स याति पुरुषो वीर लोकं वै हेममालिनः ॥
इत्येषा कथिता वीर तृतीया तिथिरुत्तमा ।
यामुपोष्य नरो राजन्नृद्धिं वृद्धिं श्रियं भजेत् ॥
अर्थात् - वैशाख मास की तृतीया को चन्दनमिश्रित जल तथा मोदक के दान से ब्रह्मा तथा सभी देवता प्रसन्न होते हैं । देवताओं ने वैशाख मास की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा है । इस दिन अन्न-वस्त्र-भोजन-सुवर्ण और जल आदि का दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है । इसी तृतीया के दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय हो जाता है और दान देनेवाला सूर्यलोक को प्राप्त करता है ।इस तिथि को जो उपवास करता है वह ऋद्धि-वृद्धि और श्री से सम्पन्न हो जाता है।

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