जीवन परिचय
महाकवि कालिदास के जीवन से संबंधित अनेक किंवदन्तियाँ हैं -
१. एक किंवदन्ती के अनुसार कालिदास ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे और पशुपालन आदि का कार्य करते थे। प्रारम्भ में वे महान् मूर्ख थे। ईर्ष्या द्वेषवश कुछ पण्डितों ने छल-प्रपञ्च से उनका विवाह उस समय की सुविख्यात विदुषी शारदानन्द की कुमारी पुत्री विद्योत्तमा से करा दिया। विवाह के बाद जब विद्योत्तमा को कालिदास की मूर्खता का पता चला तो उसने उन्हें घर से बाहर कर दिया। बाद में काली की उपासना करके उन्होंने विद्या अर्जित की और विद्वान् बनकर घर लौटे। उन्होंने ''अनावृतकपाटं द्वारं देहि'' कहकर दरवाजा खटखटाया। विद्योत्तमा ने पूछा 'अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः ?' कालिदास ने अपनी वाणी का उत्कर्ष दिखलाने के लिए 'अस्ति' शब्द से प्रारम्भ होने वाले अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवातात्मा... कुमारसम्भव, 'कश्चित्' से प्रारम्भ होने वाले 'कश्चित् कान्ताविरहगुरुणा'... मेघदूत तथा 'वाक्' शब्द से प्रारम्भ होने वाले 'वागर्थाविव संपृक्तौौ.... रघुवंश की रचना की । कालिदास का विख्यात नाटक अभिज्ञानशाकुन्तल तथा अन्य ग्रन्थों की रचना कैसे हुई ? इसका किंवदन्ती में उल्लेख नहीं है। इसलिए किंवदंती का सारांश यही है कि मूर्ख कालिदास को महाकवि बनाने का श्रेय उनकी पत्नी को है।
२. जैन विद्वान् मेरुतुङ्गाचार्य कालिदास को अवन्ती के राजा विक्रमादित्य का जामाता मानते हैं।
३. एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार कालिदास मातृगुप्त नाम से विक्रमादित्य की सभा में प्रतिष्ठित थे।
उपर्युक्त किंवदन्तियों के आधार पर कालिदास के जीवनवृत्त के विषय में किसी निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन है, पर उनकी कृतियों में उल्लिखित तथ्यों के आधार पर हम कुछ अनुमान लगा सकते हैं।
कालिदास जन्मतः ब्राह्मण थे। रघुवंश के प्रथम सर्ग में उन्होंने 'क्व सूर्यप्रभवो वंशः क्व चाल्पविषया मतिः' इस कथन के द्वारा ्ता्त्ता््ता्त्ता् लगता है कि वे स्वभाव से विनम्र एवं निरभिमानी थे। उन्होंने अपने ग्रंथ रघुवंशम् में “जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ" तथा अभिज्ञानशाकुंतलम् में "या सृष्टिः स्रष्टुराधा" आदि में शिव के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की है । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कालिदास शैव उपासक थे। कालिदास की रचनाओं की सूक्तियों से पता चलता है कि उन्हें जीवन केेे हर क्षेत्र का व्यावहारिक अनुभव था। इन सूक्तियों के माध्यम से हमें जीवन में बहुत मार्गदर्शन मिलता है।
कालिदास ने वेद, वेदाङ्ग, दर्शन, पुराण, धर्मशास्त्र, संगीत, आयुर्वेद आदि विविध शास्त्रों का अध्ययन किया था। उन्होंने सम्पूर्ण भारत के पर्वतों, नदियों, वनों का जिस प्रकार सजीव वर्णन किया है उससे यह भी ज्ञात होता है कि उन्हें न केवल भूगोल विद्या का ज्ञान था, अपितु उन्होंने भ्रमण करके साक्षात् अनुभव भी प्राप्त किया था।
इस प्रकार 'लोकशास्त्राद्यवेक्षणात्' अर्जित ज्ञान का सम्बल लेकर उनकी नैसर्गिको काव्य प्रतिभा काव्य-सर्जना में प्रवृत्त हुई।
जन्म स्थान - कालिदास के जन्म स्थान के विषय में बहुत विवाद है। अनेक राज्यों में उनके जन्मस्थान के रूप में जिन स्थानों का नाम लिया जाता हैं उनमें से कुछ प्रमुख स्थानों के नाम निम्नांकित हैं -
- उज्जयिनी - महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी का वर्णन किया है, जिससे उस नगरी के प्रति उनके अनुरागातिशय का पता चलता है। कालिदास के आश्रयदाता चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने उज्जयिनी को अपनी दूसरी राजधानी बनाया था। इन सब तथ्यों के आधार पर प्रो० मिराशी आदि विद्वान् उज्जयिनी को कालिदास की कर्म-भूमि मानते हैं। सम्प्रति उज्जयिनी में प्रतिवर्ष कालिदास के नाम पर समारोह होता है।
- विदिशा – इसके समर्थक हरप्रसाद शास्त्री तथा परांजपे हैं। मेघदूत में विदिशा के प्रति कालिदास का विशेष आग्रह ही उनके मत का मूल आधार है।
- कश्मीर - कश्मीरी विद्वान् प्रो० कल्ला ने अपनी कृति “कालिदास का जन्म स्थान" में कालिदास का जन्म कश्मीर में माना है।
- बंगाल - बंगाली लोग कालिदास के नामगत 'काली' और 'दास' इन दो पदों तथा 'मेघदूत' के प्रथम श्लोक 'आषाढस्य प्रथमदिवसे' के आधार पर कालिदास को बंगाल भूमि का रत्न मानते हैं क्योंकि बंगाल की इष्ट देवी काली है और वहाँ नाम के साथ दास लगाने की प्रथा है।
- विदर्भ – इसके समर्थक डॉ० पीटर्सन आदि हैं।
- मिथिला - इसके समर्थक पं० आदित्य नाथ झा आदि विद्वान् है। एक अभिलेख में 'कालिदास का चौपड़ी' यह उल्लेख ही उनके मत का आधार है।
ऐसी दशा में कालिदास की जन्मभूमि तथा कर्मभूमि के रूप में किसी स्थान विशेष का निर्धारण करना कठिन है पर उज्जयिनी के पक्ष में दिये गये तर्कों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि महाकवि का उज्जयिनी से किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध अवश्य रहा है। अधिकांश विद्वान् भी इसी मत के पोषक हैं। मेरा भी यही मत है।
समय - ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी
आश्रयदाता - चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (इनकी सभा के नव रत्नों में एक कालिदास भी थे।) ज्योतिर्विदाभरण में कहा है -
धन्वन्तरि-क्षपणकामरसिंह-शङ्कु-वेतालभट्ट-घटकर्पर-कालिदास: ।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपते: सभायां
मित्र - लंका के राजा कुमार दास
प्रिय अलंकार - उपमा
रीति एवं गुण - वैदर्भी रीति और प्रसाद गुण
प्रिय रस - शृंगार रस
कालक्रम की दृष्टि से रचनाएं -
- ऋतुसंहार
- कुमारसंभवम्
- मालविकाग्निमित्रम्
- विक्रमोर्वशीयम् (त्रोटक)
- मेघदूतम् (खंडकाव्य)
- रघुवंशम्
- अभिज्ञानशाकुन्तलम्
- काली स्तोत्र
- गंगाष्टक
- ज्योतिर्विदाभरण
- राक्षसकाव्य
- श्रुतबोध
कालिदास की प्रशस्तियाँ -
प्रियाङ्कपालीव प्रकामहृद्या, न कालिदासादपरस्य वाणी ॥
- श्री कृष्ण
तेनेदं वर्त्म वैदर्भं कालिदासेन शोधितम् ॥
- दण्डी- अवन्ति सुन्दरीकथा
वाणीमिषाच्चन्द्रमरीचिगोत्रसिन्धोः परं पारमवाम कीर्तिः ॥ -
(सोड्ढल उदयसुन्दरी कथा)
चन्द्रांशुभिरिवोद्धृष्टा: कालिदासस्य सूक्तयः ॥ - जयन्त न्यायमज्जरी
Wouldst thou the young year blossoms and the fruits of its decline And all by which the soul is charmed chraptured. fearted, fed.
Wouldst thou the earth and heaven itself in one name Combine? I name the, O'Shakuntala And all alonce is said.
(जर्मन कवि - Goethe)
- गेटे के उपर्युक्त कथन का अनुवाद पी. वी. मिराशी ने इस प्रकार किया
यच्चान्यन्यमनसो रसायनमतः सन्तर्पणं मोहनम् ।
एकीभूतमभूतपूर्वमथवा स्वर्लोकभूलोकयो:
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