रविवार, 20 जून 2021

उत्तररामचरितम् (सामान्य परिचय)


लेखक - भवभूति
विधा - नाटक
प्रधान रस - करुण
रीति - वैदर्भी रीति करुण प्रसंगों में और वीर रस के प्रसंगों में गौडी
अङ्क - सात
उपजीव्य - 1. वाल्मीकीय रामायण उत्तरकाण्ड (सर्ग 42-97 तक) 2. पद्मपुराण (पाताल खण्ड 1-68 तक)
  • उत्तररामचरितम् विदूषक रहित नाटक है।
  • प्रथम अङ्क में चित्रवीथी की योजना है।
  • तृतीय अङ्क में छायाङ्क की योजना है। इस छायाङ्क की सबसे बड़ी विशेषता है राम के सीता विषयक वियोग जन्य दुःख को देखकर सीता के मन में राम के प्रति आक्रोश की समाप्ति ।
  • उत्तररामचरितम् के द्वितीय अंक के प्रारंभ में वासन्ती और आत्रेयी के द्वारा शुद्ध विष्कम्भक का प्रयोग किया गया है।
  • उत्तररामचरितम् के सप्तम अङ्क में गर्भ नाटक की योजना भवभूति की उदात्त मौलिकता की परिचायिका है।
  • उत्तररामचरितम् में कुल 256 श्लोक हैं ।
  • भवभूति ने उत्तररामचरितम् में 19 छन्दों का प्रयोग किया है ।
  • उत्तररामचरितम् में अनुष्टुप् के पश्चात् शिखरिणी छन्द का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है ।
  • उत्तररामचरितम् में कुल पात्रों की संख्या 30 है । इनके अतिरिक्त 6 पात्रों का उल्लेख मात्र है ।
  • ऋष्यश्रृंग विभाण्डक मुनि के पुत्र थे।
  • उत्तररामचरितम् में प्रयोगातिशय नामक प्रस्तावना है।
  • प्रमुख पात्र - पुरूष पात्र - राम (नायक), शम्बूक (प्रतिनायक) लक्षमण, वशिष्ठ, वाल्मीकि, ऋष्यश्रृङ्ग, अष्टावक्र, अगस्त्य, सुमन्त्र, दुर्मुख (गुप्तचर), मुनिबालक सौधातकि, लव, कुश, दण्डायन, चन्द्रकेतु, जनक, कञ्चुुुकी।
  • स्त्री पात्र -  सीता (नायिका), भागीरथी, गोदावरी, तमसा (नदी), मुरला (नदी), वासन्ती (वनदेवता), पृथ्वी, आत्रेयी, कौशल्या, अरुन्धती आदि ।
  • उत्तररामचरितम् का मङ्गलाचरण अनुष्टुप् छन्द में है जिसमें नमस्कारात्मक मंगलाचरण है  -
इदं कविभ्यः पूर्वेभ्यो नमोवाकं प्रशास्महे ।
विन्देम देवतां वाचममृतामात्मनः कलाम् ।।
  • मङ्गलाचरण में द्वादशपदा नान्दी है।
  • उत्तररामचरितम् पद में समास है - उत्तरं च तत् रामचरितम् उत्तररामचरितम् (कर्मधारय समास), उत्तरं रामचरितं यस्मिन् तत् उत्तररामचरितम् (बहुव्रीहि समास) ।

सात अंकों के नाम और श्लोक संख्या -

अंक सं.अङ्क नामश्लोक सं.
1.चित्र दर्शन   51
2.पञ्चवटी प्रवेश   30
3.छायाङ्क  48
4.कौशल्या जनक योग   29
5.कुमार विक्रम  35
6.कुमार प्रत्यभिज्ञान  42
7.सम्मेलन  21

उत्तररामचरितम् का कथानक (1-3 अंक)

प्रथम अंक - नान्दी के अनन्तर सूत्रधार रङ्गमञ्च पर आकर भवभूति का परिचय देता हुआ उनके द्वारा निर्मित 'उत्तररामचरितम्' को अभिनीत करने की बात कहता है। वह अपने को अयोध्यावासी कल्पित करके नट से बातचीत करता हुआ आश्चर्य के साथ ‌ पूछता है कि इस समय जबकि महाराज राम का पट्टाभिषेक अभी-अभी हुआ है ड्योढ़ी पर चारण भाटों द्वारा मङ्गल गान क्यों नहीं किया जा रहा है। नट उसे बतलाता है कि लंका युद्ध के सभी साथी- हनुमान, सुग्रीव आदि तथा विभिन्न दिशाओं से आये हुए ऋषि एवं राजा गण श्री राम द्वारा विदा कर दिये गये हैं तथा वशिष्ठ के संरक्षण में राम की माताएँ, अरुन्धती आदि जामाता ऋष्यशृंग के द्वादश वार्षिक यज्ञ में सम्मिलित होने को चले गये हैं। यही कारण है कि राजद्वार सुनसान पड़ा हुआ है। सूत्रधार के द्वारा 'जामाता' के सम्बन्ध में जिज्ञासा करने पर नट उसे समझाता है कि किस प्रकार राजा दशरथ के शान्ता नाम की एक कन्या थी वह उन्होंने निःसन्तान राजा रोमपाद को दत्तक पुत्री के रूप में दे दी थी। उस कन्या का विवाह ऋष्यशृंङ्ग के साथ हुआ था। उन्हीं ऋष्य शृङ्ग ने बारह वर्ष तक चलने वाला यह यज्ञानुष्ठान आरम्भ किया है जिसमें रघुवंश के बड़े बूढ़े लोग गये हुए हैं। सूत्रधार और नट के वार्तालाप से यह भी पता चलता है कि देवी सीता के सम्बन्ध में निन्दापरक किंवदन्ती समाज में प्रचलित है और यदि यह बात कदाचित् राम तक पहुँच गई तो बहुत बुरा होगा । इसी समय इन दोनों को ज्ञात होता है कि आज महाराज जनक के भी मिथिला चले जाने पर देवी सीता बहुत ही दुःखी हो गई हैं। उन्हें सान्त्वना देने के लिए राम राजदरबार से रङ्गमहल में गये हुए हैं। यहीं प्रस्तावना समाप्त हो जाती है ।
       रंगमञ्च पर राम सीता को सान्त्वना देते हैं। इसी समय गुरु वशिष्ठ के सन्देश वाहक के रूप में ऋषि अष्टावक्र पधारते हैं। कुशल प्रश्न के अनन्तर ऋषि बतलाते हैं कि कुल गुरु वशिष्ठ ने देवी सीता को वीर प्रसविनी होने का आशीर्वाद दिया है, भगवती अरुन्धती और देवी शान्ता ने सीता के गर्भ 'दोहद' को पूर्ण करने का राम को सन्देश दिया है तथा भगवान् वशिष्ठ ने राम को सन्देश भेजा है कि प्रत्येक परिस्थितियों में प्रजानुरञ््जन आवश्यक है । राम यह सन्देश शिरोधार्य करते हैं। अष्टावक्र विश्राम को चले जाते हैं। इसी समय लक्ष्मण आकर देवी सीता और श्री राम से चित्रकार अर्जुन द्वारा अभिलिखित चित्रवीथी देखने की प्रार्थना करते हैं। तीनों ही चित्रवीथी में राम के बाल्यावस्था से लेकर दक्षिणारण्य में जनस्थान की घटनाओं तक के विविध चित्र देखते हैं। जृम्भकास्त्रों के दर्शन, सीता राम का पाणिग्रहण संस्कार का मनोरम दृश्य, बाल घुटाये हुए विवाह के लिए दीक्षित चारों भाई, परशुराम के साथ विवाद का दृश्य, मन्थरा वृत्तान्त, वनगमन के विविध दृश्य – शृङ्गवेरपुर भागीरथी दर्शन, दक्षिणारण्य-पथिकत्व, प्रस्रवण पर्वत, गोदावरी नदी, पंचवटी, जन स्थान आदि को देखकर राम सीता प्रमुदित होते हैं। पुराने दिनों की सङ्कट के समय की स्मृति से कभी हर्ष, कभी विषाद, कभी भय और कभी उत्कण्ठा के भावों से सम्मोहित होकर दोनों ही एक विशेष प्रकार का सन्तोष अनुभव करते हैं। इन दृश्यों को देखकर सीता को पुनः इन वनों को, भागीरथी को देखने का दोहद (गर्भिणी स्त्री की इच्छा) होता है। राम तत्काल उसे पूरा करने के लिए लक्ष्मण को आदेश देते हैं कि सीता की यह इच्छा पूरी की जाये ।
       चित्र दर्शन से कठोर गर्भा सीता थक जाती हैं। राम उन्हें सहारा देकर विश्राम कराते हैं। इसी समय दुर्मुख नामक गुप्तचर आकर राम के कान में बतलाता कि है किस प्रकार सीता के सम्बन्ध में रावण के घर किञ्चत् काल तक रहने के कारण लोकापवाद फैला हुआ है। राम यह बात सुनकर मूर्च्छित हो जाते हैं। किन्तु तत्काल लोकानुरंजन के लिए सीता को भी परित्याग करने की अपनी प्रतिज्ञा स्मरण करके, सीता को परम पवित्र जानते हुए केवल प्रजाजन सन्तुष्टि के लिए सदा-सदा के लिए सीता का परित्याग करने का निश्चय कर लेते हैं तथा जो रथ सीता को वन विहार के लिए लाया गया था, उसी पर चढ़ाकर लक्ष्मण के साथ सीता को भेज देते हैं। सीता यही जानती हैं कि वे अभी केवल घूमने जा रही हैं किन्तु राजा राम का लक्ष्मण को आदेश था कि कहीं भयावह अरण्य में सीता को छोड़कर वे चले आयें। इस प्रकार आसन्न प्रसवा सीता का केवल प्रजा को सन्तुष्ट करने के लिए राम परित्याग कर देते हैं और स्वयं भी उस परित्याग जन्य दुःख से अत्यन्त पीड़ित हो जाते हैं।

द्वितीय अङ्क - द्वितीय अङ्क विविध प्रकार की सूचनाओं और घटनाओं से भरा है। आरम्भ में वाल्मीकि आश्रम से चलकर अगस्त्याश्रम को जाती हुई तापसी आयी और वन देवता वासन्ती का वार्तालाप होता है। आत्रेयी वासन्ती को बतलाती है कि इस प्रदेश में अगस्त्य जैसे ब्रह्मवेत्ता महर्षि रहते हैं। उनसे निगमान्त विद्या का अध्ययन करने के लिए वाल्मीकि के आश्रय से आ रही हूँ । वासन्ती द्वारा यह पूछने पर कि अन्य ऋषि भी पुराण ब्रह्मवादी वाल्मीकि के पास ही वेदाध्ययन को आते हैं फिर आप उन्हें छोड़कर अगस्त्य के पास क्यों जा रही हैं - आत्रेयी बतलाती है कि वाल्मीकि के आश्रम में अनेक अध्ययन प्रत्यूह उपस्थित हो गये हैं। एक तो यह कि भगवान् वाल्मीकि के पास किसी देवता विशेष के द्वारा दो विचित्र बालक पहुंचाये गये हैं जिन्होंने अभी-अभी माँ का दूध छोड़ा है। ऋषि ने उनका नाम कुश और लव रक्खा है तथा उन्हें प्रयोग और संहार के मन्त्र सहित जुम्भुकास्त्र सिद्ध हैं । महर्षि वाल्मीकि ने उनके चूड़ाक उपनयन आदि संस्कार स्वयं किये हैं तथा उन्हें वेदत्रयी अध्यापन आरम्भ कराया है। वे बढ़े तीव्र प्रतिभा सम्पन्न बालक हैं उनके साथ हमारा अध्ययन योग सम्भव नहीं है। दूसरे-एक दिन दोपहर के स्नान के लिए जब महर्षि तमसा नदी जा रहे थे तो मार्ग में उन्होंने किलोल करते हुए क्रौञ्च पक्षी के जोड़े में से एक को व्याध के द्वारा मारा जाता हुआ देखा और तत्काल शोक से द्रवित होकर उनके मुख से यह प्रथम संस्कृत वाणी उद्भूत हुई -
मा विषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौञ्च मिथुनादेकमवधी: काम मोहितम् ॥

     उसी समय ब्रह्मा ने प्रकट होकर ऋषि से कहा कि आपको शब्द ब्रह्म की सिद्ध हो चुकी है, अब आप रामचरित लिखें । ब्रह्मा की आज्ञा मान कर महर्षि ने रामायण लिखना आरम्भ कर दिया है। अतः अब ऋषि को पढ़ाने का समय ही नहीं मिलता। यही अध्ययन प्रत्यूह हैं।

       इतना कहकर आत्रेयी जाना चाहती है और अगस्त्याश्रम का मार्ग पूछती है। जब उसे यह पता लगता है कि जहाँ वह खड़ी है वहाँ तो तपोवन पंचवटी गोदावरी नदी प्रस्रवण पर्वत जनस्थान है तो वह आह भर कर जानकी का स्मरण कर विलाप करने लगती है। आत्रेयी वासन्ती को बताती है कि किस प्रकार लोकापवाद से बचने के लिए राजा राम ने वैदेही का परित्याग कर दिया है और आज तक उनका कोई पता नहीं है, निश्चित ही हिंसक जन्तुओं ने सीता को खा डाला होगा । वासन्ती के यह पूछने पर कि आर्या अरुन्धती, वशिष्ठ आदि के होते हुए भी राम ने यह दुष्कृत्य कैसे कर डाला, आत्रेयी बतलाती है कि उस समय ये सब लोग ऋष्यशृंग के यहाँ यज्ञ में गये हुए थे। इतना ही नहीं, राम ने तो अब स्वर्णमयी सीता की प्रतिकृति को सहधर्मचारिणी बनाकर अश्वमेध यज्ञ आरम्भ कर दिया है। विश्व विजय का द्योतक मेध्याश्व भी भेज दिया गया है जिसका संरक्षक सेनापति लक्ष्मण पुत्र चन्द्रकेतु है। आत्रेयी ने एक घटना की सूचना और दी कि एक दिन अपने मृतक पुत्र को राजद्वार पर पटककर ब्राह्मण ने छाती पीटकर रोना आरम्भ कर दिया। राम ने राजा के दोष के बिना प्रजा की अकाल मृत्यु नहीं हो सकती यह मानकर अपना ही दोष समझा। इसी बीच आकाशवाणी ने बताया कि शम्बूक नामक एक वृषल तपस्या कर रहा है— उसे मारकर ब्राह्मण पुत्र को जीवित किया जा सकता है। तभी से राम पुष्पक विमान पर चढ़कर सभी दिशाओं में उस शम्बूक को ढूंढ़ते फिर रहे हैं। वासन्ती बताती है कि इसी जनस्थान में शम्बूक तपस्या कर रहा है। यह जानकर कि राम इस प्रसंग में यहीं आ सकते हैं - वासन्ती प्रमुदित होती है। ये विविध आश्चर्यजनक सूचनायें देकर आत्रेयी चली जाती है।
        रंगमंच पर पुष्पक विमान पर सवार राम का प्रवेश होता है। उन्होंने जनस्थान में शम्बूक का वध कर दिया है। वह दिव्य पुरुष होकर राम की स्तुति करता हुआ अपने गुरु अगस्त्य के पास चला जाता है। इधर राम को जब यह पता चलता है कि यह पंचवटी और जनस्थान का संभाग है तो वे सीता के साथ बनवास के दिनों की याद करके विह्वल हो जाते हैं। सीता के साथ के विविध प्रसंग, घटनायें एवं वे भूमि भाग देखकर राम फूट-फूट कर रोने लगते हैं। इसी समय ऋषि अगस्त्य का सन्देश लेकर शम्बूक पुनः आता है और राम ऋषि को सम्मानित करने एवं भगवती लोपामुद्रा का स्नेह प्राप्त करने के लिए अनिच्छा पूर्वक भी पंचवटी से चले जाते हैं।

तृतीय अंक - आरम्भ में शुद्ध विष्कम्भक के माध्यम से विविध सूचनायें दी गई हैं। अधिष्ठात्री देवियों के रूप में 'तमसा' और 'मुरला' दो नदियाँ 'रंगमंच पर आती हैं। दोनों के वार्तालाप द्वारा यह ज्ञात होता है कि भगवती लोपामुद्रा ने आशंकित होकर गोदावरी के पास मुरला के द्वारा यह सन्देश भिजवाया है कि शम्बूक को मारने के बाद राम जब अयोध्या जाने लगेंगे तो मार्ग में पूर्वानुभूत पंचवटी जनस्थान आदि प्रदेशों को देखकर उन्हें सीता का स्मरण हो आयेगा और भावाभिभूत होकर हो सकता है कि वे अनेक बार मूच्छित हो जायें, उस समय सावधान रहना और अपनी शीतल तरंग वायुओं से आवश्यकता पड़ने पर राम को शीतलता प्रदान कर उन्हें सचेतन रखने का पूरा प्रयत्न करना। इस पर तमसा कहती है कि बड़े बूढ़ों की यह आशंका और उनका यह स्नेह उचित ही है किन्तु राम पर शोक द्रवित होकर कोई संकट न आये- इसकी व्यवस्था तो भगवती भागीरथी ने पहले से ही कर दी है। तमसा बताती है कि किस प्रकार जब लक्ष्मण सीता को वन प्रान्त में छोड़कर चले गये तो प्रसव वेदना से पीड़ित होकर सीता ने अपने को गङ्गा की धार में झोंक दिया था, वहीं उन्होंने दो बच्चों को जन्म दिया और कुछ दिन तक पृथ्वी एवं भागीरथी ने माता को अपने पास ही रसातल में रखा । बाद में जब बच्चे माँ का दूध छोड़ने की अवस्था में पहुंचे तो गंगा ने वे दोनों बच्चे महर्षि वाल्मीकि को दे दिये । इस समय शम्बूक के प्रसंग में राम का यहाँ आना जानकर भगवती भागीरथी भी सीता को लेकर गोदावरी के पास आई हुई हैं। उन्होंने मुझे (तमसा को) आदेश दिया है कि मैं सीता के साथ ही रहूं और सीता को आदेश दिया है कि तेरे बच्चों की बारहवीं वर्ष गांठ है, द्वादश आदित्य तुम्हारे श्वसुर वंश के पूर्व गुरु हैं अतः यह द्वादश वर्ष बच्चों के लिए अत्यधिक माङ्गलिक है । आज तुम अपने हाथ से चुने हुए पुष्पों से भगवान् सूर्य की पूजा करो । पृथ्वी पर तुम्हें मेरे प्रभाव से वन देवता भी नहीं देख सकते हैं और की तो बात क्या है। किन्तु तुम सबको ही देख सकती हो। इस वार्तालाप के बाद रंगमंच पर विरह व्यथा से पीड़ित जानकी आती हैं। इसी समय राम भी पुष्पक पर चढ़ कर अयोध्या जाते हुए वहाँ रुक जाते हैं । जैसे ही राम विमान को रुकने का आदेश देते हैं उनके इस मेघ गम्भीर शब्द को सुनकर सीता पहचान जाती हैं। तमसा बतलाती है कि किस प्रकार शम्बूक को मारने के प्रसंग में राम का यहाँ आना सम्भावित है। दोनों राम को पहचानती हैं – किन्तु राम गङ्गादेवी के प्रभाव और वरदान के कारण प्रत्यक्ष सीता नहीं देख पाते हैं। राम उन पूर्व परिचित एवं प्रिया सीता के साथ उपभुक्त स्थानों को देखकर मूर्च्छित हो जाते हैं । अत्यन्त कारुणिक वातावरण के मध्य सीता राम का स्पर्श करती हैं। राम इस पूर्व परिचित स्पर्श को पाकर पुनः होश में आते हैं और सीता को ढूँढ़ने लगते हैं- किन्तु सीता उन्हें नहीं दिखती हैं।
       इसी समय वनदेवता वासन्ती का प्रवेश होता है। वह घबड़ाती हुई कहती है कि सीता देवी ने जिसे अपने हाथों से सल्लकी के पल्लव खिला-खिलाकर बड़ा किया था वह हाथी का छोटा बच्चा अपनी बहू हथिनी के साथ जल विहार कर रहा था कि अन्य मदमत्त गजपति ने उस पर आक्रमण कर दिया। सीता यह सुनकर व्यग्र हो जाती हैं। वासन्ती को देखकर राम और सीता दोनों ही आश्चर्य में पड़ जाते हैं। जब वासन्ती राम से कहती है कि देव शीघ्रता करें उस करिकलभ को बचाने के लिए। जटायु शिखर के दक्षिण में सीता तीर्थ से होकर गोदावरी के तट पर पहुँच जायेंगे- वहीं तो है वह इन पूर्व परिचित स्थानों के नाम सुनकर और उन्हें देखकर राम का हृदय विदीर्ण होने लगता है। राम चलना ही चाहते हैं कि वासन्ती सूचना देती है कि वह करिकलभ विजयी हो गया है । सभी प्रमुदित होते हैं। सीता कामना करती हैं कि वह दीर्घायु अपनी प्रिया से अवियुक्त रहे। इसी प्रसंग में सीता को अपने पुत्रों का स्मरण हो आता है। वे सोचती हैं- यह हाथी का बच्चा तो इतना बड़ा हो गया मेरे बच्चे जाने कितने बड़े हो गये होंगे। मैं कितनी अभागिनी हूँ- जिसे न केवल आर्य पुत्र विरह ही सहना पड़ा बल्कि पुत्र विरह भी भोगना पड़ रहा है। तमसा सीता को सान्त्वना देती है। इसी समय एक मयूर दिख जाता है। वासन्ती राम को बतलाती है कि यह वह मयूर है जिसे सीता ने पाला पोसा था और जिसे वह नृत्य सिखाया करती थीं- अब यह कदम्ब वृक्ष पर अपनी वधू के साथ बैठा हुआ अनान्दित हो रहा है। वासन्ती राम को वह शिलापट्टक भी दिखाती है जहाँ बैठकर सीता हरिणों को तृण चुगाती थीं और हरिण उन्हें घेरे रहते थे। राम उसे देखकर व्याकुल हो जाते हैं, सीता भी उन स्थानों को, उन दृश्यों को देखकर और अपनी स्थिति पर विचार कर अत्यन्त दुःखी हो जाती हैं। अब राम और वासन्ती एक स्थान पर बैठ जाते हैं, वार्तालाप आरम्भ करते हुए वासन्ती राम से केवल कुमार लक्ष्मण की कुशल पूछती है, सीता की चर्चा नहीं करती ! राम अनसुनी कर देते हैं। वासन्ती पुनः राम को 'महाराज' सम्बोधन करते हुए कुमार लक्ष्मण की ही कुशल पूछती है। इस निष्प्रणय सम्बोधन को सुनकर राम समझ जाते हैं कि वासन्ती को सीता के सम्बन्ध में सब कुछ विदित हो गया है। राम द्रवित होने लगते हैं। वासन्ती राम के इस कृत्य पर उन्हें रोष भरा उपालम्भ देती है। राम कहते हैं कि यह सब मैंने 'लोकरंजन' के लिए किया है। दुःखी राम का इस वातावरण में हृदय विदीर्ण होने लगता है, वे प्रलाप करने लगते हैं और अपनी वेदना थामते हुए वासन्ती को बताते हैं कि आज देवी सीता के परित्याग को बारह वर्ष हो गये, उसका नाम भी समाप्त हो गया फिर भी यह कठोर राम जीवित है। वासन्ती राम को विविध प्रकार से सान्त्वना देती है, प्रसंग बदलती है किन्तु राम का शोकवेग कम नहीं होता है और वे पुनः मूर्च्छित हो जाते हैं। तमसा के समझाने पर पुनः सीता राम का स्पर्श करती हैं, राम पुनः चेतना प्राप्त करते हैं। सीता ही का स्पर्श जानकर उन्हें ढूंढ़ने का प्रयत्न करते हैं । किन्तु वहाँ खड़ी हुई सीता को गंगा के प्रभाव के कारण देख नहीं पाते हैं। राम का स्पर्श पाकर सीता को भी सांसारिक भाव के साथ सत्वोद्रेक होता है। कुछ देर के लिए वे भूल जाती हैं कि मैं परित्यक्ता हूँ। राम को सतत देखते रहने को वे लालायित हो जाती हैं। राम सोचते हैं कि सीता के प्रथम वियोग में मेरे बहुत सहायक थे किन्तु संप्रति इस वियोग में तो सुग्रीव, हनुमान, जाम्बवान सब का ही शौर्य व्यर्थ है। यहाँ न नल सेतु बना सकते हैं, और न लक्ष्मण के बाण कारगर सिद्ध हो सकते हैं, यह तो निरवधि वियोग है। यह सुनकर सीता और भी विषण्ण हो जाती हैं। इसके बाद राम अयोध्या जाना चाहते हैं और कहते हैं कि वहाँ हिरण्मयी सीता की प्रतिकृति देखकर ही कुछ मनोविनोद करूंगा। यह जानकर सीता का परित्याग जन्य दुःख, राम के प्रति मन्यु सब समाप्त हो जाते हैं। राम पुष्पक पर चढ़कर चले जाते हैं, वासन्ती राम की और तमसा सीता की मङ्गल कामना करती हुई चली जाती है।

शनिवार, 19 जून 2021

यूजीसी नेट कोड-25 इकाई - VII

संस्कृत साहित्य, काव्यशास्त्र एवं छंद परिचय -
(क) निम्नलिखित का सामान्य परिचय -
  1. महाकवि कालिदास का सामान्य परिचय पढ़ने हेतु यहां क्लिक करें ।
  2. महाकवि भवभूति का सामान्य परिचय पढ़ने हेतु यहां क्लिक करें ।
  3. पण्डित अम्बिकादत्तव्यास का सामान्य परिचय पढ़ने हेतु यहां क्लिक करें ।

नोट - यूजीसी नेट कोड-25, इकाई VIII पढ़ने हेतु यहां क्लिक करें ।

महाकवि भवभूति

जीवनवृत्त

       भवभूति का व्यक्तिगत परिचय अज्ञात नहीं है । उनकी तीनों ही कृतियों में विशेषकर 'महावीरचरितम्' की प्रस्तावना में विस्तार पूर्वक उनके निवास स्थान, वंश, नाम एवं परिवार के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है । इसके अनुसार भवभूति का परिचय देखते हैं -
पिता - नीलकण्ठ
पितामह - भट्ट गोपाल
माता - जतुकर्णी
जन्म स्थान - दक्षिण भारत में पद्मपुर नामक नगर के रहने वाले थे।
गुरु - ज्ञाननिधि और कुमारिलभट्ट
गोत्र - काश्यप
जाति - कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के उदुम्बुर नामक ब्रह्मवादी ब्राह्मण ।
आश्रयदाता - कन्नौज के राजा यशोवर्माा
समय - 650 ई. से 750 ई. के बीच (लगभग सातवीं शताब्दी केेे अंत में तथा आठवीं शताब्दी केेे आरंभ मेंं)
रीति - गौडी (उत्तररामचरितम् में गौडी और वैदर्भी का समन्वय है)
भवभूति का प्रिय रस - करुण
प्रिय रस - अनुष्टुप् और शिखरिणी
उपासक - शिव के उपासक हैं।

'भवभूति' का नाम - भवभूति के नाम एवं उपाधि से सम्बन्धित रचनाओं का यह वाक्य है- "श्री कण्ठपदलाञ्छन: पदवाक्य प्रमाणज्ञो भवभूतिर्नाम" अर्थात् 'श्रीकण्ठ' यह जिनके लाञ्छन या चिह्न है तथा 'भवभूति' जिनकी प्रसिद्ध उपाधि है। यहाँ 'लाञ्छन' का अर्थ चिह्न या नाम पद है। 'भवभूति' के साथ 'नाम' यह प्रसिद्धिवाची अव्यय है। आशय यह है कि श्रीकण्ठ नाम वाले कवि 'भवभूति' इस उपाधि से विभूषित थे एवं इस उपाधि से ही अधिक विख्यात थे। किन्तु अनेक विद्वान् इस अर्थ से सहमत नहीं हैं। वे 'भवभूति' यह वास्तविक नाम मानते हैं तथा 'श्रीकण्ठ' यह उनका उपनाम या उपाधि मानते हैं। इन विद्वानों का तर्क है कि 'मालतीमाधव' की प्रस्तावना में 'भवभूति नाम' के स्थान पर 'भवभूतिनामा' यह पाठ दिया हुआ है जो इस बात का द्योतक है कि भवभूति ही कवि का वास्तविक नाम था। इन विद्वानों का यह भी तर्क है कि सभी सुभाषितकारों ने, इतिहासकारों ने 'भवभूति' नाम को ही प्रधानता दी है 'श्रीकण्ठ' को नहीं । टीकाकार जगद्धर ने कवि का प्रसिद्ध नाम 'भवभूति' माना है और 'श्रीकण्ठ' का अर्थ किया है सरस्वती जिसके कण्ठ में निवास करती है। आशय यह है कि श्रीकण्ठ तो उनका विशेषण मात्र था । सम्भव है कि बचपन में माता-पिता एवं परिवारजनों ने प्रेम से नाम 'श्रीकण्ठ' या 'भट्ट 'श्रीकण्ठ' रख लिया हो और वे इस नाम से व्यवहार भी करते हों। परन्तु वास्तविक नाम भवभूति ही था। 'भवभूति' ही नाम प्रसिद्ध है, 'श्रीकण्ठ' मात्र उपनाम है।
वस्तुत: पिता के नीलकण्ठ नाम से भी श्रीकण्ठ अनुकरण साम्य है। भवभूति शिव पार्वती के भक्त थे उन्होंने पार्वती की स्तुति में यह श्लोक लिखा था -
          तपस्वी कां गतोऽवस्थामितिस्मेराननाविव ।
          गिरिजाया: स्तनौ वन्दे भवभूति सिताननौ ॥
      इस श्लोक की उपमा से प्रसन्न होकर विद्वानों ने श्रीकण्ठ को भवभूति की उपाधि से सुशोभित किया, वैसे ही जैसे कि विशिष्ट उपमाओं के कारण कालिदास को दीपशिख, माघ को 'घण्टामाघ' तथा भारवि को 'आतपत्र भारवि' की उपाधि से सुशोभित किया था ।
कभी-कभी मूल नाम गौण हो जाता है और व्यवहार में उपाधि या उपनाम ही प्रसिद्ध हो जाता है। भवभूति का श्रीकण्ठ नाम गौण हो गया और भवभूति यह उपाधि नाम साहित्य जगत में प्रसिद्ध हो गया।

भवभूति का दार्शनिक नाम - उम्बेकाचार्य/उम्बेक/उदुम्बर

उपाधि -
  1. पदवाक्यप्रमाणज्ञ (पद - व्याकरण, वाक्य - मीमांसा, प्रमाण - न्याय)
  2. वश्यवाक् (महावीरचरीतम् में भवभूति अपने आप को वश्यवाक् कहते हैं)
  3. परिणतप्रज्ञ (उत्तररामचरितम् में कहते हैं)
  4. शिखरिणीकवि
  5. क्षेमेन्द्र ने सुवृत्ततिलक में भवभूति के शिखरिणी की प्रशंसा में उसे निरर्गलतरङ्गिणी कहा है -
      भवभूते: शिखरिणी निरर्गलतरङ्गिणी ।
    रुचिरा घनसन्दर्भे या मयूरीव नृत्यति ॥ (सु. 3.33)

रचनाएं -
  1. महावीरचरितम् (नाटक)
  2. मालतीमाधवम् (प्रकरण)
  3. उत्तररामचरितम् (नाटक)
भवभूति के तीनों नाटकों में विदूषक का अभाव है।
भवभूति की कृतियों में ओजगुुुण अधिक है।


शुक्रवार, 18 जून 2021

अभिज्ञानशाकुन्तलम् प्रश्नोत्तरी

 

1. शकुन्तला के अनिष्ट निवारण के लिए महर्षि कण्व कहां गये थे?





ANSWER= (B) सोमतीर्थ

 

2. महर्षि कण्व किनके साथ शकुन्तला को पतिगृह भेजते हैं ?





ANSWER= (D) उपर्युक्त सभी

 

3. स्मरिष्यति त्वां न स बोधितोsपि सन् कथां प्रमत्तः प्रथमं कृतामिव यह पंक्ति किसने कही है ?





ANSWER= (B) दुर्वासा

 

4. न खलु धीमतां कश्चिदविषयो नाम यह कथन किसका है ?





ANSWER= (C) शार्ङ्गरव

 

5. सा तपस्विनी निर्वृता भवतु इस पंक्ति में सा पद किसके लिए आया है ?





ANSWER= (B) शकुन्तला

 

6. अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रथम तथा द्वितीय अंक में कौन सी नाट्य सन्धि है ?





ANSWER= (A) मुख

 

7. अभिज्ञानशाकुन्तलम् के तृतीय अंक में कौन सी नाट्य सन्धि है ?





ANSWER= (C) प्रतिमुख

 

8. अभिज्ञानशाकुन्तलम् के रचयिता कौन है





ANSWER= (A) कालिदास

 

9. उचितं न ते मङ्गलकाले रोदितुम्, यह किसने किसको कहा -





ANSWER= (C) उभावपि शकुन्तलाम्

 

10. सतां हि सन्देहपदेषु वस्तुषु प्रमाणमन्तःकरण प्रवृत्तयः, इस सूक्ति के वक्ता है -





ANSWER= (B) दुष्यन्त

 

11. शकुन्तला की अंगूठी कहाँ पर गिरी -





ANSWER= (A) शचीतीर्थ में

 

12. तेजोद्वयस्य युगपद् व्यसनोदयाभ्यां लोको..............इवात्मदशान्तरेषु - -





ANSWER= (A) नियम्यत

 

13. मम विरहजां न त्वं वत्से, शुचं गणयिष्यसि, यहाँ मम से तात्पर्य है -





ANSWER= (C) कण्व

 

14. शकुन्तला और दुष्यन्त के पुत्र का नाम क्या है -





ANSWER= (C) सर्वदमन (भरत)

 

15. शकुन्तला-दुष्यन्त के गन्धर्व विवाह की सूचना महर्षि कण्व को किसने दी -





ANSWER= (A) अशरीरिणी छन्दोमयी वाणी ने

 

16. अभिज्ञानशाकुन्तलम् में मारीच का शिष्य है -





ANSWER= (C) गालव

 

17. दुष्यन्त की पटरानी कौन-कौन है -





ANSWER= (D) उपर्युक्त तीनों

 

18. सुलभकोपो महर्षिः किसे कहा गया है -





ANSWER= (B) दुर्वासा

 

19. गण्डकस्योपरि पिण्डकः संवृत्तः, यह क्या है -





ANSWER= (A) मुहावरा

 

20. सर्वथा चक्रवर्तिनं पुत्रमाप्नुहि, इस उक्ति के द्वारा क्या निर्दिष्ट किया गया है -





ANSWER= (B) अभिज्ञानशाकुन्तलम् के कथानक का प्रयोजन

महाकवि कालिदास

जीवन परिचय

महाकवि कालिदास के जीवन से संबंधित अनेक किंवदन्तियाँ हैं -

१. एक किंवदन्ती के अनुसार कालिदास ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे और पशुपालन आदि का कार्य करते थे। प्रारम्भ में वे महान् मूर्ख थे। ईर्ष्या द्वेषवश कुछ पण्डितों ने छल-प्रपञ्च से उनका विवाह उस समय की सुविख्यात विदुषी शारदानन्द की कुमारी पुत्री विद्योत्तमा से करा दिया। विवाह के बाद जब विद्योत्तमा को कालिदास की मूर्खता का पता चला तो उसने उन्हें घर से बाहर कर दिया। बाद में काली की उपासना करके उन्होंने विद्या अर्जित की और विद्वान् बनकर घर लौटे। उन्होंने ''अनावृतकपाटं द्वारं देहि'' कहकर दरवाजा खटखटाया। विद्योत्तमा ने पूछा 'अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः ?' कालिदास ने अपनी वाणी का उत्कर्ष दिखलाने के लिए 'अस्ति' शब्द से प्रारम्भ होने वाले अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवातात्मा... कुमारसम्भव, 'कश्चित्' से प्रारम्भ होने वाले 'कश्चित् कान्ताविरहगुरुणा'... मेघदूत तथा 'वाक्' शब्द से प्रारम्भ होने वाले 'वागर्थाविव संपृक्तौौ.... रघुवंश की रचना की । कालिदास का विख्यात नाटक अभिज्ञानशाकुन्तल तथा अन्य ग्रन्थों की रचना कैसे हुई ? इसका किंवदन्ती में उल्लेख नहीं है। इसलिए किंवदंती का  सारांश यही है कि मूर्ख कालिदास को महाकवि बनाने का श्रेय उनकी पत्नी को है।

२. जैन विद्वान् मेरुतुङ्गाचार्य कालिदास को अवन्ती के राजा विक्रमादित्य का जामाता मानते हैं।

३. एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार कालिदास मातृगुप्त नाम से विक्रमादित्य की सभा में प्रतिष्ठित थे।

उपर्युक्त किंवदन्तियों के आधार पर कालिदास के जीवनवृत्त के विषय में किसी निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन है, पर उनकी कृतियों में उल्लिखित तथ्यों के आधार पर हम कुछ अनुमान लगा सकते हैं।

        कालिदास जन्मतः ब्राह्मण थे। रघुवंश के प्रथम सर्ग में उन्होंने 'क्व सूर्यप्रभवो वंशः क्व चाल्पविषया मतिः' इस कथन के द्वारा ्ता्त्ता््ता्त्ता् लगता है कि वे स्वभाव से विनम्र एवं निरभिमानी थे। उन्होंने अपने ग्रंथ रघुवंशम् में “जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ" तथा अभिज्ञानशाकुंतलम् में "या सृष्टिः स्रष्टुराधा" आदि में शिव के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की है । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि  कालिदास शैव उपासक थे। कालिदास की रचनाओं की सूक्तियों से पता चलता है कि उन्हें जीवन केेे हर क्षेत्र का व्यावहारिक अनुभव था। इन सूक्तियों  के माध्यम से हमें जीवन में बहुत मार्गदर्शन मिलता है।

      कालिदास ने वेद, वेदाङ्ग, दर्शन, पुराण, धर्मशास्त्र, संगीत, आयुर्वेद आदि विविध शास्त्रों का अध्ययन किया था। उन्होंने सम्पूर्ण भारत के पर्वतों, नदियों, वनों का जिस प्रकार सजीव वर्णन किया है उससे यह भी ज्ञात होता है कि उन्हें न केवल भूगोल विद्या का ज्ञान था, अपितु उन्होंने भ्रमण करके साक्षात् अनुभव भी प्राप्त किया था।

इस प्रकार 'लोकशास्त्राद्यवेक्षणात्' अर्जित ज्ञान का सम्बल लेकर उनकी नैसर्गिको काव्य प्रतिभा काव्य-सर्जना में प्रवृत्त हुई।

जन्म स्थान - कालिदास के जन्म स्थान के विषय में बहुत विवाद है। अनेक राज्यों में उनके जन्मस्थान के रूप में जिन स्थानों का नाम लिया जाता हैं उनमें से कुछ प्रमुख स्थानों के नाम निम्नांकित हैं -

  • उज्जयिनी - महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी का वर्णन किया है, जिससे उस नगरी के प्रति उनके अनुरागातिशय का पता चलता है। कालिदास के आश्रयदाता चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने उज्जयिनी को अपनी दूसरी राजधानी बनाया था। इन सब तथ्यों के आधार पर प्रो० मिराशी आदि विद्वान् उज्जयिनी को कालिदास की कर्म-भूमि मानते हैं। सम्प्रति उज्जयिनी में प्रतिवर्ष कालिदास के नाम पर समारोह होता है।
  • विदिशा – इसके समर्थक हरप्रसाद शास्त्री तथा परांजपे हैं। मेघदूत में विदिशा के प्रति कालिदास का विशेष आग्रह ही उनके मत का मूल आधार है।
  • कश्मीर - कश्मीरी विद्वान् प्रो० कल्ला ने अपनी कृति “कालिदास का जन्म स्थान" में कालिदास का जन्म कश्मीर में माना है।
  • बंगाल - बंगाली लोग कालिदास के नामगत 'काली' और 'दास' इन दो पदों तथा 'मेघदूत' के प्रथम श्लोक 'आषाढस्य प्रथमदिवसे' के आधार पर कालिदास को बंगाल भूमि का रत्न मानते हैं क्योंकि बंगाल की इष्ट देवी काली है और वहाँ नाम के साथ दास लगाने की प्रथा है।
  • विदर्भ – इसके समर्थक डॉ० पीटर्सन आदि हैं।
  • मिथिला - इसके समर्थक पं० आदित्य नाथ झा आदि विद्वान् है। एक अभिलेख में 'कालिदास का चौपड़ी' यह उल्लेख ही उनके मत का आधार है।

      ऐसी दशा में कालिदास की जन्मभूमि तथा कर्मभूमि के रूप में किसी स्थान विशेष का निर्धारण करना कठिन है पर उज्जयिनी के पक्ष में दिये गये तर्कों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि महाकवि का उज्जयिनी से किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध अवश्य रहा है। अधिकांश विद्वान् भी इसी मत के पोषक हैं। मेरा भी यही मत है।

समय - ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी

आश्रयदाता - चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (इनकी सभा के नव रत्नों में एक कालिदास भी थे।) ज्योतिर्विदाभरण में कहा है -

धन्वन्तरि-क्षपणकामरसिंह-शङ्कु-
वेतालभट्ट-घटकर्पर-कालिदास: ।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपते: सभायां
रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ॥

मित्र - लंका के राजा कुमार दास

प्रिय अलंकार - उपमा

रीति एवं गुण -  वैदर्भी रीति और प्रसाद गुण

प्रिय रस - शृंगार रस

कालक्रम की दृष्टि से रचनाएं -

  1. ऋतुसंहार
  2. कुमारसंभवम्
  3. मालविकाग्निमित्रम्
  4. विक्रमोर्वशीयम् (त्रोटक)
  5. मेघदूतम् (खंडकाव्य)
  6. रघुवंशम्
  7. अभिज्ञानशाकुन्तलम्
अन्य कृतियां -

  1. काली स्तोत्र
  2. गंगाष्टक
  3. ज्योतिर्विदाभरण
  4. राक्षसकाव्य
  5. श्रुतबोध
कालिदास की उपाधियां  - दीपशिखा कालिदास, रघुकार, उपमासम्राट, कविताकामिनीविलास, कविकुलगुरु।

कालिदास की प्रशस्तियाँ -

कविकुलगुरु: कालिदासो विलास: - जयदेव / प्रसन्नराघवम्

अस्पृष्टदोषा नलिनीव दृष्टा, हारावलीव ग्रथिता गुणौघै: ।
प्रियाङ्कपालीव प्रकामहृद्या, न कालिदासादपरस्य वाणी ॥
                                                 - श्री कृष्ण

लिप्ता मधुद्रवेणासन् यस्य निर्विषया गिरः ।
तेनेदं वर्त्म वैदर्भं कालिदासेन शोधितम् ॥
 - दण्डी- अवन्ति सुन्दरीकथा

ख्यातः कृतीसोऽपि च कालिदासः, शुद्धा सुधा स्वादुमती च यस्य
वाणीमिषाच्चन्द्रमरीचिगोत्रसिन्धोः परं पारमवाम कीर्तिः ॥  -
(सोड्ढल उदयसुन्दरी कथा)

अमृतेनेव संसिक्ताश्चन्दनेनैव चर्चिताः ।
चन्द्रांशुभिरिवोद्धृष्टा: कालिदासस्य सूक्तयः ॥ - जयन्त न्यायमज्जरी

Wouldst thou the young year blossoms and the fruits of its decline And all by which the soul is charmed chraptured. fearted, fed.

Wouldst thou the earth and heaven itself in one name Combine? I name the, O'Shakuntala And all alonce is said.

(जर्मन कवि  - Goethe)

  • गेटे के उपर्युक्त कथन का अनुवाद पी. वी. मिराशी ने इस प्रकार किया
वासन्तं कुसुमं फलञ्च युगपद्, ग्रीष्मस्य सर्वं च यद् 
यच्चान्यन्यमनसो रसायनमतः सन्तर्पणं मोहनम् ।
एकीभूतमभूतपूर्वमथवा स्वर्लोकभूलोकयो:
ऐश्वर्यं यदि वाञ्छसि प्रियसखे ! शाकुन्तलं सेप्यताम् ॥

अस्मिन्निति विचित्रकविपरम्परावाहिनि-ससार-
कालिदासप्रभृतयो द्वित्रा: पञ्चषा वा कवय इति गष्यन्ते ।
- आचार्य आनन्दवर्धन

नोट - अभिज्ञानशाकुन्तलम् से संबंधित प्रश्नोत्तरी के लिए यहां क्लिक करें ।

शुक्रवार, 4 जून 2021

Geography

 रेल परिवहन

  • स्वतंत्र भारत के प्रथम रेलवे मंत्री जॉन मथाई थे ।
  • भारत की प्रथम महिला रेलवे ड्राइवर - सरोजा यादव (2011)
  • भारत में 16 अप्रैल 1853 को पहली रेल गाड़ी मुंबई से थाने के बीच चली जिनके बीच की दूरी 21 मील अथवा 34 किलोमीटर थी। (यह मालगाड़ी थी)
  • भारत में प्रथम यात्री गाड़ी 15 अगस्त 1854 को हावड़ा से हुगली के मध्य चलाई गई जिसकी दूरी 24 मील की थी।
  • भारत में कुल रेलवे पटरियों की लंबाई 127000 किलोमीटर के लगभग है।
  • फेयरी क्वीन- विश्व की सबसे पुराना चालू इंजन है। 
  • बड़ी लाइन (ब्रॉड गेज) पटरियों के बीच की दूरी 1.676 मीटर होती है बड़ी लाइन की कुल लंबाई 1 लाख 1500 किलोमीटर है।
  • मीटर गेज रेल पटरियों के बीच की दूरी 1 मीटर होती है इसकी कुल लंबाई या कुल दूरी 9290 किलोमीटर है।
  • छोटी लाइन या नैरोगेज इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी 0.76 मीटर या 0.610 मीटर होती है। इसकी कुल लंबाई 2841 किलोमीटर है।
  • एशिया का सबसे पुराना रेल वर्कशॉप जमालपुर बिहार में 1862 में बनाया गया।
  • दिल्ली में पहली मेट्रो 24 दिसंबर 2002 को तीस हजारी से शाहदरा के बीच चलाई गई थी।
  • भारत की प्रथम अंतर्जलीय मेट्रो कोलकाता में हुगली नदी के बीच निर्माणाधीन है । इसका 74% हिस्सा भारतीय रेलवे तथा 26% हिस्सा आवास एवं शहरी मंत्रालय के पास है।
  • देश की प्रथम जल मेट्रो परियोजना कोच्चि में प्रारंभ की गई है, 23 जुलाई 2016 में।
  • देश में सबसे अधिक दूरी तय करने वाली रेलगाड़ी विवेक एक्सप्रेस है जो डिब्रूगढ़ असम से कन्याकुमारी तमिलनाडु तक जाती है इस दौरान वह 4273 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
  •  भारतीय रेलवे के पास कुल 18 जोन हैं। कोलकाता मेट्रो को भारतीय रेलवे ने अपना 17वां जोन बनाया है तथा दक्षिण तटीय रेलवे विशाखापट्टनम को 2019 में 18वां जोन बनाया है।
  • मेधा- भारत की पहली पूर्णता स्वदेश निर्मित लोकल ट्रेन है इसे इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) चेन्नई में बनाया गया।
  • स्वतंत्र भारत का प्रथम विद्युत इंजन कारखाना चितरंजन (आसनसोल) 1950 में बनाया गया।
  • विश्व की सबसे बड़ी रेल फैक्ट्री चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री है । सेमी हाई स्पीड रेल गाड़ी बंदे भारत एक्सप्रेस का निर्माण भी इसी ने किया था।
  • विश्व की पहली ग्रीन मेट्रो दिल्ली मेट्रो 28 जुलाई 2017 को, इसको हरित प्रमाण पत्र दिया गया।
  • मेट्रो मैन के नाम से जाना जाता है - श्रीधरन को

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2011 में कार्बन क्रेडिट पाने वाली विश्व की प्रथम मेट्रो--दिल्ली मेट्रो।

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा आईएसओ 140011 प्रमाणन प्राप्त करने वाली पहली मेट्रो न्यूयॉर्क मेट्रो है तथा दूसरी रेल मेट्रो दिल्ली मेट्रो।

  • भारत का प्रथम रेल परिवहन विश्वविद्यालय वडोदरा गुजरात में स्थापित किया गया । सितंबर 2018 में भारत के अतिरिक्त रूस और चीन में भी रेल विश्वविद्यालय स्थापित हैं।

  • भारत का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है घूम स्टेशन दार्जिलिंग हिमालय में।

  • विश्व का सबसे बड़ा रेल मार्ग - ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग (10214 किलोमीटर)

  • देश का पहला ऑल वुमन रेलवे स्टेशन गांधी नगर राजस्थान जयपुर है । 19 फरवरी 2018 को जयपुर का गांधीनगर रेलवे स्टेशन केवल महिलाओं द्वारा संचालित होने वाला देश का पहला रेलवे स्टेशन बन गया।

  • भारत का सबसे बड़ा रेलवे सड़क पुल 25 दिसंबर 2018 में बोगीनील (असम) ब्रह्मपुत्र नदी पर बना है, जिसकी दूरी 4.94 कि.मी. है।

  • सबसे हाई स्पीड का रेल परिचालन 1964 में जापान ने किया।

  • किसानों हेतु किसान रेल सेवा की शुरुआत कहां से कहां तक और कब की गई -  7 अगस्त 2020, देवलाली (नासिक) से दानापुर (बिहार)

  • वर्तमान समय में भारतीय रेलवे को कितने जोन में बांटा गया है- 18 जोन (18वां जोन - दक्षिण तटीय जोन, विशाखापत्तनम)

ज्ञानोदय एक्सप्रेस-- 18 नवंबर 2014 को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के पूर्वोत्तर राज्यों के भ्रमण हेतु संचालित की गई ।

कोंकण रेलवे - कोंकण रेलवे की स्थापना 1998 में हुई। यह रेलवे के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। महाराष्ट्र गोवा और कर्नाटक तीन राज्य इस कोंकण रेलवे के अंतर्गत आते हैं । इसकी लंबाई 760 किलोमीटर है। रोहा (महाराष्ट्र) से शुरू होकर मंगलुरू (कर्नाटक) तक कोंकण रेलवे का हिस्सा माना जाता है। इस मार्ग पर 146 नदियां, 2000 पुल और 91 सुरंग पड़ते हैं।

विश्व का सबसे ऊंचा रेल पुल - भारत में विश्व का सबसे ऊंचा रेल पुल चिनाब नदी पर रियासी जिले में बक्कल और कौड़ी के बीच बन रहा है। इसकी ऊंचाई नदी के ऊपर 359 मीटर होगी जो कि पेरिस के एफिल टावर 324 मीटर से 35 मीटर अधिक होगी। वर्तमान में विश्व का सबसे ऊंचा रेल पुल चीन के गुईझोई प्रांत में वू नदी पर निर्मित नोजेहे रेल पुल है जिसकी ऊंचाई 310 मीटर है।

वंदे भारत एक्सप्रेस (T-18) - वंदे भारत एक्सप्रेस 15 फरवरी 2019 को भारत में पहली सेमी हाई स्पीड का संचालन हुआ, वाराणसी से नई दिल्ली के बीच।  इसकी अधिकतम गति 180 किलोमीटर प्रति घंटा है और औसत गति 130 किलोमीटर प्रति घंटा है। यह भारत की प्रथम इंजन रहित ट्रेन है जो मेक इन इंडिया के अंतर्गत बनाई गई है।

कोराडिया आईलिंट-- जर्मनी में हाइड्रोजन ईंधन से चलने वाली विश्व की पहली ट्रेन जिसे फ्रांसीसी कंपनी अल्स्टोम द्वारा विकसित किया गया।

यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची में शामिल रेलवे -

1. दार्जिलिंग - हिमालयन रेलवे - 1992

2. छत्रपति शिवाजी टर्मिनल  - मुंबई

3. कालका शिमला

4. नीलगिरी माउंटेन रेलवे

सड़क और परिवहन

  • 1988 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के वक्त राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम एनएच एक्ट बना, इसी के बाद एनएचएआई --राष्ट्रीय राजमार्ग महाप्राधिकरण का निर्माण हुआ। यह पीडब्ल्यूडी विभाग के अंतर्गत आता है।
  • 1998 में एनएचडीपी_ नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्रोग्राम , अटल बिहारी वाजपेई जी के समय पर बना। इसी के अंतर्गत पूर्वी पश्चिमी गलियारा, उत्तर दक्षिण गलियारा और स्वर्णिम चतुर्भुज का निर्माण किया गया। इसके अंतर्गत लगभग 51000 किलोमीटर नेशनल हाईवे का निर्माण हुआ।
  • 25 दिसंबर 2000 को प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की शुरुआत हुई। इसके अंतर्गत 500 आबादी वाले गांवों को बारहमासी सड़कों से जोड़ना था।
  • नागपुर योजना 1943 के अनुसार सड़क को 4 वर्गों में विभाजित किया गया नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, डिस्ट्रिक्ट रोड और विलेज रोड।
  • भारत में सड़कों का प्रतिशत लगभग 2% नेशनल हाईवे, 4 प्रतिशत स्टेट हाईवे, 14 प्रतिशत डिस्टिक रोड, 80% विलेज रोड।
नेशनल हाईवे - 

  • वर्तमान में नेशनल हाईवे की कुल लंबाई लगभग 132500 किलोमीटर है।
  • नेशनल हाईवे सर्वाधिक महाराष्ट्र में लगभग 18000 किलोमीटर।  दूसरे नंबर में उत्तर प्रदेश लगभग 12000 किलोमीटर।
  • कुल सड़क परिवहन में 40% परिवहन नेशनल हाईवे के द्वारा होता है।
  • नेशनल हाईवे -- वन लेन 22%, टू लेन 54%, मल्टीलिन 24% है।
  • राजस्थान के मरुस्थल से होकर गुजरने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच 15 है।

  • भारत में सर्वाधिक लंबा नेशनल हाईवे एनएच 44 है । दूसरे नंबर में एनएच 6 है।
  • NH-44, 11 राज्यों में से होकर निकलती है । श्रीनगर से कन्याकुमारी  तक 3745 किलोमीटर उत्तर दक्षिण गलियारा का सर्वाधिक योगदान है।

  • अभी हाल ही में एक नया नेशनल हाईवे 703 ए ए या श्री गुरु नानक देव जी मार्ग 29 किलोमीटर, 17 अक्टूबर 2019 को राष्ट्र को समर्पित किया गया- कपूरथला से गोइंदवाल तक ।
  • भारत से पूर्वोत्तर राज्यों को नेशनल हाईवे - 31 जोड़ता है ।(ट्रिक- एकतीर (३१) से शेष भारत पुर्वोत्तर भारत से जुड़ता है)

  • भारत का सबसे छोटा नेशनल हाईवे एनएच 47a वेलिंगटन द्वीप, वेंबनाड झील केरल 6 किलोमीटर केवल।

  • उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक लंबा नेशनल हाईवे नेशनल एन एच- टू है, जिसकी लंबाई उत्तर प्रदेश में 752 किलोमीटर है। इसी नेशनल हाईवे पर जीटी रोड या शेरशाह सुरी रोड बनी हुई थी।दिल्ली से कोलकाता । जीटी रोड शुरुआत में कोलकाता से दिल्ली होते हुए लाहौर तक था । अब अमृतसर से कोलकाता तक है । इसके अंतर्गत NH - वन तथा NH-2 आते हैं। दिल्ली लाहौर बस सेवा इन्हीं हाईवे से होकर होती थी । इस बस सेवा का नाम था सदा-ए-सरहद।

  • नेशनल एक्सप्रेसवे दो (NE-2) कुंडली से पलवल 135 किलोमीटर, छह लेन का देश का प्रथम शत-प्रतिशत सोलर पावर से चालित एक्सप्रेसवे है। इसका उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री ् जी ने मई 2018 में किया।

  • भारत के पूर्वी तट में nh5 तथा पश्चिमी तट में nh-17 का अधिकांश भाग है।।
  • नेशनल हाईवे 3 -आगरा से मुंबई,
    नेशनल हाईवे 4 -थाने से चेन्नई
    (ट्रिक - (आम 3) (थेया चार)।। आ-आगरा, म- मुंबई, थेया-थाणे, चार-चेन्नई।)
  • देश का प्रथम 14 लेन वाला एक्सप्रेसवे है-  दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे।
  • NH-48 की कुल लंबाई 224 किलोमीटर है यह भूटान से पश्चिम बंगाल को जोड़ती है इसे सार्क रोड भी कहते हैं।
  • स्टेट हाईवे-- महाराष्ट्र--तमिलनाडु
  • कच्ची सड़क-- ओडिशा
  • भारत में परिवहन का प्रतिशत - सड़क-83%, रेल -9%, वायु-6% और जल-2% ।
  • कुल सड़क में माल परिवहन 60 प्रतिशत तथा यात्री परिवहन 88% के लगभग होता है।
  • विश्व में सर्वाधिक सड़क यूएसए के पास है ।  दूसरे नंबर में भारत, तीसरे नंबर में चाइना ।
  • भारत का औसत सड़क घनत्व 143 किलोमीटर प्रति 100 किलोमीटर वर्ग है।
  • भारत में सर्वाधिक औसत सड़क घनत्व केरल के पास है 526 किलोमीटर प्रति 100 किलोमीटर वर्ग तथा न्यूनतम लद्दाख और जम्मू कश्मीर में।
  • एशियाई राजमार्ग नेटवर्क के अंतर्गत भारत में कुल 11432 किलोमीटर लंबी सड़कें हैं।
  • भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच 44(3745 किमी) की सर्वाधिक लंबाई तमिलनाडु राज्य में 627 किलोमीटर तथा उत्तर प्रदेश में इसकी लंबाई 190 किलोमीटर।
  • विश्व का सबसे ऊंचा सड़क मार्ग ने श्रीनगर 5325 मीटर ऊंचा है सन् 2006 में यहां की सड़क को राष्ट्रीय राजमार्ग  NH--1d घोषित किया गया।
  • स्वर्णिम चतुर्भुज गलियारा चार महानगरों को जोड़ती है 5846 किलोमीटर।
  • पूरब पश्चिम गलियारा सिलचर असम से पोरबंदर 3300 किलोमीटर तक इसके अंतर्गत 12 राज्य आते हैं।
  • उत्तर दक्षिण गलियारा और पूरब पश्चिम गलियारा झांसी में चौराहा बनाते हैं या झांसी में आपस में मिलते हैं। उत्तर दक्षिण गलियारा श्रीनगर से कन्याकुमारी तक 4000 किलोमीटर कबर करता है इसके अंतर्गत 13 राज्य आते हैं।
  • chenani-nashri देश की सबसे लंबी सड़क सुरंग जम्मू श्रीनगर में। यह सुरंग 9.2 किलोमीटर लंबी है।
     2 अप्रैल 2017 को मोदी जी ने इसका उद्घाटन किया। नेशनल हाईवे 44 का हिस्सा है।
  • भूपेन हजारिका सेतु देश का सबसे लंबा नदी सेतु है इसे ढोला सादिया सेतू भी कहते हैं । यह लोहित नदी असम में बना हुआ है । 26 मई 2017 को मोदी जी ने इसका उद्घाटन किया । इसकी लंबाई लगभग 9.2 किलोमीटर है।  यह असम को पूर्वी अरुणाचल प्रदेश से जोड़ता है।
  • हरित राजमार्ग नीति 2015 के अनुसार सड़क के चारों और नेशनल हाईवे के चारों ओर हरे पेड़ पौधे लगाना।
  • सेतु भारत परियोजना 2016 में शुरू हुई इसके अंतर्गत सभी नेशनल हाईवे को रेलवे क्रॉसिंग मुक्त बनाना था।
  • भारतमाला परियोजना 2017-18 जो कि 2022 तक कंप्लीट होगी।
  • पूर्वोत्तर सड़क संजाल संपर्क परियोजना 2017 मेघालय से मिजोरम तक प्रथम चरण में 403 किलोमीटर सड़क की मंजूरी। (ट्रिक--हरी सेतु माला पूरा संजाल 2015--16--17 --17) उपरोक्त चार के लिए।
  • सीमा सड़क संगठन (बी आर ओ ) की स्थापना 1960 में हुई यह संगठन रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आता है। इस समय 19 राज्यों में अपनी सेवाएं दे रहा है।

जल परिवहन, बंदरगाह तथा तटीय राज्य

  • राजीव गांधी के शासनकाल में सर्वप्रथम प्रथम नदी कार्य योजना - गंगा एक्शन प्लान 1985 में शुरू हुई। फिर 1986 में अंतः स्थलीय जलमार्ग प्राधिकरण की स्थापना हुई । 1986 में ही भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण की स्थापना हुई जिसका मुख्यालय नोएडा में है।
  • 1986 में ही प्रथम राष्ट्रीय जलमार्ग की स्थापना हुई। हल्दिया से इलाहाबाद। 1620 किमी लंबा
  • 1987 में केंद्रीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण की स्थापना हुई जिसका मुख्यालय कोलकाता में हैं।
  • केंद्रीय जल परिवहन निगम का मुख्यालय कोलकाता में है ।
  • राष्ट्रीय अंतरदेशीय  नौवहन संस्थान-- पटना में है।
  • राष्ट्रीय जल क्रीड़ा संस्थान- गोवा
  • मुख्य राष्ट्रीय जलमार्ग या क्रियाशील राष्ट्रीय जलमार्ग छह हैं तथा कुल राष्ट्रीय जलमार्गों की संख्या 111  है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग की लंबाई का घटता क्रम- (ट्रिक-1-4-2-5-3-6) सबसे अधिक लंबाई  प्रथम राष्ट्रीय जलमार्ग की है और सबसे छोटी लंबाई राष्ट्रीय जलमार्ग 6 की है क्रियाशील जलमार्गों में ।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग 1 - हल्दिया (पश्चिम बंगाल) से इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश तक) है। इस मार्ग में पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश 3 राज्य पड़ते हैं। इसकी लंबाई 1620 किलोमीटर है। गंगा नदी इसका में बेस है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग दो-- यह असम में सदिया से धुबरी तक के बीच जलमार्ग बनाता है इसकी मेन नदी ब्रह्मपुत्र नदी है। इसकी लंबाई 891 किलोमीटर है। इस जल मार्ग पर 2019 नवंबर में कंटेनर कार्गो परिचालन प्रारंभ किया गया है। एमवी माहेश्वरी पोत के माध्यम से परिचालन।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग 3 - इसकी कुल लंबाई 205 किलोमीटर है। और उसका भाग केरल में है। कोट्टापुरम से अंबाला मुगल तक। इसका विकास अधिकतम नहरों में किया गया है। यह जलमार्ग 24 घंटे नौकायन के लिए प्रसिद्ध है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग 4- इसकी कुल लंबाई 1095 किलोमीटर है। भद्राचलम (तेलंगाना) से पुदुचेरी तक। इस जल मार्ग में 4 राज्य आते हैं तेलंगाना, आंध्र प्रदेश तमिलनाडु और पुडुचेरी। जिस में सर्वाधिक हिस्सा आंध्र प्रदेश का होता। गोदावरी नदी (171 किलोमीटर), कृष्णा नदी (157 किलोमीटर) और बंर्किंघम नहर (767 किलोमीटर) इस जलमार्ग को बनाते हैं। इसमें से बंर्किंघम नहर सर्वाधिक हिस्सा बनाता है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग 5- इसकी कुल लंबाई 623 किलोमीटर है। इसमें दो राज्य पश्चिम बंगाल और उड़ीसा आते हैं । ब्रह्माणी नदी तंत्र, मताई नदी और महानदी इसका मुख्य मार्ग बनाते हैं। जीयोनखली (पश्चिम बंगाल) से पारादीप (उड़ीसा) तक।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग 6- इसकी कुल लंबाई 121 किलोमीटर है इसका भी पूरा हिस्सा असम में ही है। असम के लखीमपुर से भांगा तक। इसका  मुख्य हिस्सा बराक नदी बनाती है ।

बंदरगाह
     भारत में 13 बड़े बंदरगाह और 200 से अधिक छोटे और मध्यम बंदरगाह स्थित है। बड़े बंदरगाहों को संघ सूची में रखा गया है जबकि मध्यम और छोटे बंदरगाहों को समवर्ती सूची में रखा गया है। पश्चिम तटीय राज्य- गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल ।
पूर्वी तटीय राज्य- पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु । भारत में कुल मुख्य रूप से 9तटीय राज्य हैं।
तटीय राज्यों की लंबाई का घटता क्रम- गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा। सर्वाधिक लंबाई गुजरात की है।
प्रायद्वीपीय भारत में सर्वाधिक लंबाई वाला तटीय राज्य आंध्र प्रदेश है।

कांडला बंदरगाह ( गुजरात)- यह एक ज्वारीय बंदरगाह है यहां पर भारत सरकार ने प्रथम मुक्त व्यापार क्षेत्र SEZ स्थापित किया था । अक्टूबर 2017 में इसका नाम बदलकर दीनदयाल बंदरगाह कर दिया गया।
मुंबई बंदरगाह- मुंबई महानगर सालसेट द्वीप पर स्थित है।
मुंबई बंदरगाह देश का सबसे बड़ा बंदरगाह है यह प्राकृतिक बंदरगाह है।
न्हावा शेवा या जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह नई मुंबई- मुंबई बंदरगाह पर दबाव कम करने हेतु नई मुंबई में इसे आधुनिक शैली से विकसित किया गया है । यह पूर्णतया यंत्र चालित बंदरगाह है । 1888-89 में इसे देश का 12वां बड़ा बंदरगाह घोषित किया गया है । यह भारत का विशालतम कंटेनर पत्तन है ।
कोच्चि बंदरगाह- यह भी प्राकृतिक बंदरगाह है। कोच्चि को बेंबिनाद ख्याल या अरब सागर की रानी, पूरब का वेनिस कहते हैं। यह केरल के मालाबार तट के वेलिंगटन द्वीप पर स्थित है।
तमिलनाडु राज्य में सर्वाधिक 3 बड़े बंदरगाह हैं। चेन्नई बंदरगाह जो कि दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है लेकिन पहला सबसे बड़ा कृत्रिम बंदरगाह है।
एन्नौर बंदरगाह- यह चेन्नई के उत्तर में स्थित है। यह देश का सबसे बड़ा कंप्यूटराइज्ड बंदरगाह है और देश का प्रथम पब्लिक कंपनी मिनी रत्न बंदरगाह है। इसका नाम कामराज बंदरगाह कर दिया गया है।
  • तूतीकोरिन बंदरगाह जिसका नाम चिदंबरनर पोर्ट कर दिया गया है।
  • विशाखापट्टनम बंदरगाह सबसे गहरा बंदरगाह है।
  • पारादीप बंदरगाह इसका पोताश्रय सबसे गहरा है।
  • कोलकाता बंदरगाह हुगली नदी पर बना कृत्रिम बंदरगाह है। एकमात्र नदी पर बना मुख्य बंदरगाह।
  • अंडमान निकोबार द्वीप में पोर्ट ब्लेयर बंदरगाह को केंद्र सरकार ने 2010 में देश के 13 वें बड़े बंदरगाह में सम्मिलित किया।
  • सागरमाला परियोजना 2015 में शुरू की गई - इसका मुख्य उद्देश्य तटीय राज्यों के बंदरगाहों के क्षेत्र के आसपास के क्षेत्रों को विकसित करना। इस परियोजना के अंतर्गत 12 स्मार्ट सिटी आती हैं।
वायु परिवहन
  • वायु परिवहन का प्रारंभ 1911 में इलाहाबाद से नैनी के बीच हुआ।
  • भारत का वायु परिवहन में 9वां  स्थान है।
  • एयर इंडिया की स्थापना टाटा ने 1932 में की।
  • इंडियन नेशनल एयरवेज कंपनी की स्थापना 1933 में हुई।
  • वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण 1953 में हुआ।
  • अंतर्राष्ट्रीय घरेलू सेवा शुरू हुई 1953 में।
  • इंडियन एयरलाइंस की स्थापना - 1953 में हुई।
  • भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण का गठन 1995 में हुआ ।
  • भारत में 25 अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं।
  • उड़ान योजना - 27 अप्रैल, 2017 (पी.एम. ने कहा - उड़े देश का आम नागरिक)
  • विंग्स - 12 जुलाई 2017: सब उड़े सब जुड़े ( इसके अंतर्गत 50 हवाई अड्डों का पुनरुद्धार करना)
भारत के प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों के नाम और स्थान - 
1. लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा     - वाराणसी
2. देवी अहिल्या बाई होलकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा - इंदौर
3. इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा              - नई दिल्ली
4. वीर सावरकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा।       - पोर्ट ब्लेयर
5. छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा       - मुंबई
6. नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा  - कोलकाता
7. बाबासाहेब अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा    - नागपुर
8. वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा     - अहमदाबाद
9. गोपीनाथ बारडोली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा   - गुवाहाटी
10. चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा   - लखनऊ
11. श्री गुरु रामदास अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा    - अमृतसर
12. शेख अल आलम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा  - श्रीनगर
13. राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा     - हैदराबाद
14. अन्ना अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा              - चेन्नई
15. कालीकट अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा         - कोझीकोड
16. Dabolim अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा       - गोवा
17. जाॅली ग्रान्ट एयरपोर्ट या अटल बिहारी बाजपेई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा - देहरादून
18. स्वामी विवेकानंद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा - रायपुर
19. राजा भोज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा।        - भोपाल
औद्योगिक क्षेत्र
  • मुख्य औद्योगिक प्रदेश हैं - 8
  • सामान्य औद्योगिक प्रदेश हैं - 12
  • भारत में सर्वप्रथम किस कारखाने की शुरुआत की गई - चीनी मिल
  • भारत का पहला उद्योग - 1854 - सूती वस्त्र उद्योग, मुंबई।
  • भारत का दूसरा उद्योग - 1874 - लौह इस्पात कारखाना, कुल्टी (पश्चिम बंगाल)
  • भारत का तीसरा उद्योग - 1876 - ऊनी वस्त्र उद्योग, कानपुर।
  • भारत का चौथा उद्योग - 1879 - कागज कारखाना, लखनऊ।
  • भारतीय की प्रथम चीनी मिल - 1903 में मढ़ौरा (बिहार) में स्थापित की गई।
  • भारत का प्रथम सीमेंट उद्योग 1904 में चेन्नई में स्थापित किया गया।
  • देश का प्रथम सुपर फास्फेट संयंत्र - 1906 में रानीपेट (तमिलनाडु) में स्थापित किया गया।
  • भारत का प्रथम बड़ा लौह इस्पात कारखाना - 1907 में जमशेदपुर (झारखंड) मैं साबित किया गया।
  • भारत का प्रथम कृत्रिम रेशा संयंत्र - 1945 में  त्रावणकोर (केरल) मैं स्थापित किया गया।
  • भारत का प्रथम भारी इंजन संयंत्र - 1958 में ंरांची में स्थापित किया गया।

लौह इस्पात उद्योग
  • लौह इस्पात उद्योग को आधुनिक उद्योगों का मेरुदंड कहते हैं।
  • लोहे के अयस्क - हेमेटाइट, मैग्नेटाइट और सिडेराइट।
  • अनुपात - लौह अयस्क (4) : कोक (2) : चूना पत्थर (1)
  • भारत कच्चे लोहे का सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत इस्पात उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा देश है। पहले स्थान पर चीन है।
  • TISCO - 1907 में पहला एकीकृत इस्पात कारखाना (TISCO) जमशेदपुर (झारखंड) में स्वर्णरेखा और खरकर नदी के किनारे स्थापित किया गया । TISCO को लौह अयस्क नोआमुंडी और बादाम पहाड़ से प्राप्त होता है। इसे जोंडाखान (उड़ीसा) से कोयला प्राप्त होता है । यहीं पर झरिया (झारखंड) कोयले की खानें हैं। (ट्रिक - खरा सोना, बादाम खाने से मुंडी लोहे जैसी मजबूत, कोयला झरा जोड़ लो)
  • IISCO (INDIAN IRON STEEL COMPANY) -  1918 में यह बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) में बराक नदी और दामोदर नदी के किनारे स्थापित किया गया । (ट्रिक - इस्को दाम बराबर दो)
  • विश्वेश्वरैया आईरन एंड स्टील वर्क्स (VISW) - या 1923 में भद्रावती कर्नाटक में भद्रानदी के किनारे स्थित है। यह तीसरा बड़ा कारखाना है । इसे लौह अयस्क बाबाबुदान की पहाड़ियां और केमानगुंडी से प्राप्त होता है । यहीं पर स्थित जोग जलप्रपात से विद्युत भी प्राप्त होता है।
  • आजादी के पहले भारत में लौह इस्पात के 3 बड़े कारखाने बन चुके थे।
  • आजादी के बाद बनने वाले लौह इस्पात उद्योग -
  • भिलाई इस्पात संयंत्र (HSL) - इसकी स्थापना 1955 में भिलाई, छत्तीसगढ़ में हुई। यह सोवियत संघ रूस के सहयोग से बना। इसे लौह अयस्क डल्लीराजहरा पहाड़ी से प्राप्त होता है। तेंदुला बांध से विद्युत प्राप्त होता है। कोरबा और करगाली से ताप विद्युत प्राप्त होता है । यहां का अधिकांश 70% इस्पात हिंदुस्तान शिपयार्ड विशाखापत्तनम् खरीद लेता है। (ट्रिक - रूसी भली कोको डली लो)
  • राउरकेला इस्पात संयंत्र (HSL) - इसकी स्थापना 1959 में राउरकेला (उड़ीसा) में हुई । यहां शंख नदी और कोयल नदी केेेे संगम पर  है और मंदिरा बांध के किनारे स्थित है । यह जर्मनी के सहयोग से बना। इसे लौह अयस्क सुंदरगढ़ और क्योंझर से प्राप्त्त्त होता है। (ट्रिक - केला में जर्म, सुंदर क्यों लोहा, शंख और कोयल नदी)
  • दुर्गापुर इस्पात संयंत्र  (HSL) - इसकी स्थापना 1959 में पश्चिम बंगाल में हुई यह यू.के. के सहयोोग से बना। इसको छोटा नागपुर पठार से लौौह अयस्क प्राप्त होता है । झरिया से कोयला प्राप्त करताा है। जल दामोदर नदी से प्राप्त करता है। (ट्रिक - दुर्गाा लो नाग उड़ा, अंग्रेज के पेट में रस्सी बांधो)
  • बोकारो स्टील लिमिटेड - इसकी स्थापना 1964 में झारखंड में हुई। यह दामोदर नदी के किनारेे हैं। यह रूस के सहयोग से बना। (ट्रिक - बेकार है दामोदर की रूसी)
  • विशाखापत्तनम इस्पात संयंत्र ( विजाग इस्पात संयंत्र) - इसकी स्थापना 1992 में हुई यह पहला पत्तन आधारित इस्पात संयंत्र है। यह भारत का पहला तटवर्ती लौह कारखाना है। इसे लौह अयस्क बैलाडिला की खान से प्राप्त होता है। यह कोयला आस्ट्रेलिया से मंगाता है। (ट्रिक - बैल विजग गया)
  • SAIL (Steel authority of India) - यह 24 जनवरी 1973 में दो हजार करोड़ की पूंजी के साथ बना।
चट्टानें -
        पृथ्वी की सतह के कठोर भाग को चट्टान कहते हैं। जो पृथ्वी की बाहरी परत की संरचना की मूलभूत इकाई है ।
चट्टान के प्रकार - उत्पत्ति के आधार पर -
1. आग्नेय चट्टान  -
  • यह मैग्मा या लावा के जमने से बनती है । जैसे - ग्रेनाइट, बेसाल्ट, पेगमाटाइट, डायोराइट, ग्रेबो, ऑब्सीडियन, एण्डेसाइट, प्युमाइस आदि।
  • इसे प्रारम्भिक चट्टान भी कहते हैं । दुनिया में 95 प्रतिशत यही चट्टान पाई जाती है ।
  • आग्नेय चट्टान मुख्य दो रंग के होते हैं - काला - बेसाल्ट और ग्रे रंग - ग्रेनाइट
  • आग्नेय चट्टान स्थूल, परतरहित, कठोर, संघनन एवं जीवाश्म रहित होती है । आर्थिक रूप से यह बहुत ही संपन्न चट्टान है ।
  • बेसाल्ट में लोहे की मात्रा सर्वाधिक होती है । इस चट्टान के क्षरण से काली मिट्टी का निर्माण होता है ।
  • इसमें चुंबकीय लोहा, निकिल, तांबा, सीसा, जस्ता, क्रोमाइट, मैगनीज, सोना तथा प्लेटिनम पाए जाते हैं ।
  • पैगमेटाइट कोडरमा - झारखंड में पाए जाने वाला अभ्रक इन्हीं शैलों से मिलता है ।
  • आग्नेय चट्टानी पिंड - मैग्मा के ठंडा होकर ठोस रूप धारण करने से विभिन्न प्रकार के आग्नेय चट्टानी में पिंड बनते है । इनका नामकरण इनके आकार, रूप, स्थिति तथा आस-पास पाई जाने वाली चट्टानों के आधार पर किया जाता है ।
2. अवसादी चट्टान - 
3. कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टान -

भारत के प्रमुख दर्रे -
क. राज्य जम्मू-कश्मीर 
1. काराकोरम दर्रा - यह दर्रा जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख में है । यह भारत का सबसे ऊँचा दर्रा है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 5664 मी. है । 
2. जोजिला दर्रा - यह दर्रा जम्मू-कश्मीर राज्य की जास्कर श्रेणी में स्थित है । इससे श्रीनगर से लेह और कारगिल मार्ग गुजरता है ।
3. बुर्जिला दर्रा - यह श्रीनगर को गिलगित से जोड़ता है ।
4. पीरपंजाल दर्रा - यह दर्रा जम्मू-कश्मीर राज्य के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है । इस दर्रे से कुलगाँव से कोठी जाने का मार्ग है ।
5. बनिहाल दर्रा - जम्मू-कश्मीर राज्य के दक्षिण पश्चिम में पीर पंजाल श्रेणियों में स्थित इस दर्रे में जम्मू से श्रीनगर जाने का मार्ग गुजरता है । जवाहर सुरंग भी इसी में स्थित है ।

ख . हिमाचल प्रदेश 
1. बारालाचा दर्रा - यह हिमाचल प्रदेश के जास्कर श्रेणी में स्थित है । यह मंडी और लेह को जोड़ता है। इसकी समुद्र तल से ऊँचाई 4843 मी. है ।
2. शिपकीला दर्रा - यह भी जास्कर श्रेणी में स्थित है । यह शिमला को तिब्बत से जोड़ता है । इसकी समुद्र तल से ऊँचाई 4300 मी. है ।
3. रोहतांग दर्रा - हिमाचल प्रदेश के पीर पंजाल श्रेणियों में स्थित है । यह मनाली और लेह को आपस में जोड़ता है । इसकी समुद्रतल से ऊँचाई 4620 मी. है ।

ग. उत्तराखण्ड
1. लिपुलेख दर्रा -
2. माणा दर्रा -
3. नीति दर्रा -

घ. सिक्किम
1. नाथू ला दर्रा -
2. जेलेप ला दर्रा -

ङ. अरुणाचल प्रदेश
1. बोमडिला दर्रा -
2. यांग्याप दर्रा -
3. दीफू दर्रा

च. मणिपुर
1. तुजू दर्रा -

छ. केरल
1. पालघाट दर्रा -
2. शेनकोट्टाट दर्रा -

ज. महाराष्ट्र
1. थाल घाट दर्रा -
2. भोर घाट दर्रा - 

टाइगर रिजर्व

भारत का सबसे पहला टाइगर रिजर्व - कार्बेट टाइगर रिजर्व (जिम कार्बेट-1936)
विश्व में सबसे ज्यादा बाघों की आबादी वाला देश - भारत (2018 की रिपोर्ट के अनुसार 2962 बाघ हैं)
भारत में कुल कितने टाइगर रिजर्व हैं - 53
भारत कार्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी सबसे ज्यादा है ।
भारत का सबसे नवीनतम टाइगर रिजर्व जिसे 2022 में बनाया गया - गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान, छत्तीसगढ़
भारत के मध्य प्रदेश राज्य में सबसे ज्यादा टाइगर रिजर्व हैं । सबसे ज्यादा बाघ मध्य प्रदेश में हैं और दूसरे नंबर पर कर्नाटक है ।

1. काजीरंगा टाइगर रिजर्व    -    असम
2. बुक्सा टाइगर रिजर्व         -    पश्चिम बंगाल
3. अन्नामलाई टाइगर रिजर्व  - तमिलनाडु (2008-9 में घोषित किया गया)
4. रामगढ़ विषधारी  टीइगर रिजर्व           - राजस्थान (बूदी)
5. ओरंग टाइगर रिजर्व                - असम
6. मानस टाइगर रिजर्व               - असम
7. पीलीभीत टाइगर रिजर्व          - उत्तर प्रदेश
8. दुधवा राष्ट्रीय उद्यान            - उत्तर प्रदेश (उ.प्र. का एकमात्र टाइगर रिजर्व, जिसे 1989-90 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया ।)
9. नमदफा टाइगर रिजर्व           - अरुणाचल प्रदेश
10. अचानकमार टाइगर रिजर्व    - छत्तीसगढ़ (2009 में टाइगर रिजर्व घोषित)
11. जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व     - उत्तराखण्ड
12. सुन्दरवन टाइगर रिजर्व        - पश्चिम बंगाल
13. नागार्जुनसागर श्रीशैलम टाइगर रिजर्व     - आंध्र प्रदेश
14. डंपा टाइगर रिजर्व             - मिजोरम
15. परंबुकुलम टाइगर रिजर्व    - केरल
16. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व        - मध्य प्रदेश
17. संजय दुबरी राष्ट्रीय उद्यान    - मध्य-प्रदेश (2008-9 में टाइगर रिजर्व में जोड़ा गया)
18. पलामू टाइगर रिजर्व            - झारखंड
19. नागरहोल टाइगर रिजर्व        - कर्नाटक (एशियाई हाथियों के लिए प्रसिद्ध)
20. ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व    - महाराष्ट्र


भारत के राष्ट्रीय उद्यान
  • भारत का पहला नेशनल पार्क - हैली नेशनल पार्क (उत्तराखंड) ।
  • भारत का सबसे बड़ा नेशनल पार्क - हेमिस नेशनल पार्क (जम्मू-कश्मीर) ।
  • सबसे ज्यादा नेशनल पार्क - मध्य प्रदेश में । (कुल 12 नेशनल पार्क)
  • देश का सबसे छोटा राष्ट्रीय पार्क  - साउथ बटन आइसलैंड नेशनल पार्क (अंडमान निकोबार द्वीप समूह)
  • दुनिया का पहला तैरता हुआ नेशनल पार्क - केबुल लामजाओ नेशनल पार्क (मणिपुर में स्थित है ।)
  • भारत का पहला समुद्री नेशनल पार्क - गुजरात में खोला गया ।
  • जिम कार्बेट नेशनल पार्क का पुराना नाम - हैली नेशनल पार्क
1. ब्लैक बक राष्ट्रीय उद्यान    -    गुजरात
2. गिर नेशनल पार्क            - गुजरात
3. दुधवा राष्ट्रीय उद्यान    -    उत्तर प्रदेश
4. सलीम अली नेशनल पार्क - जम्मू कश्मीर
5. हेमिस नेशनल पार्क - जम्मू-कश्मीर
6. दचिगाम नेशनल पार्क - श्रीनगर
7. मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान - राजस्थान
8. रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान - राजस्थान
9. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान - राजस्थान
10. पिन वैली नेशनल पार्क - हिमाचल प्रदेश
11. सिम्बल्बारा नेशनल पार्क - हिमाचल प्रदेश
12. ग्रेट हिमालय नेशनल पार्क - हिमाचल प्रदेश
13. सिम्लिपाल नेशनल पार्क - उड़ीसा
14. वाल्मीकि नेशनल पार्क - बिहार
15. बेतला नेशनल पार्क    - झारखंड
16. सुन्दरवन नेशनल पार्क - पश्चिम बंगाल
17. सिंगलीला नेशनल पार्क - पश्चिम बंगाल
18. बुक्सा नेशनल पार्क - पश्चिम बंगाल
19. राजा जी नेशनल पार्क - उत्तराखंड
20. फूलों की घाटी नेशनल पार्क - उत्तराखंड
21. गोविन्द पशु विहार नेशनल पार्क - उत्तराखंड
22. नंदादेवी नेशनल पार्क - उत्तराखंड
23. जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान    -    उत्तराखंड
24. बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान - मध्य प्रदेश
25. कान्हा राष्ट्रीय उद्यान - मध्य प्रदेश
26. पन्ना राष्ट्रीय उद्यान - मध्य प्रदेश
27. बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान - कर्नाटक
28. कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान - सिक्किम




भारत के प्रमुख बाँध
  • भारत का सबसे लंबा बाँध - हीराकुंड बाँध (महानदी पर)
  • विश्व का सबसे ऊंचा गुरुत्वीय बाँध - भाखड़ा नांग बाँध (सतलज नदी पर)
  • भाखड़ा-नांगल बाँध - हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की संयुक्त परियोजना है ।
  • सरदार सरोवर परियोजना से लाभान्वित राज्य - मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र तथा राजस्थान
1. इंदिरा सागर बांध          -    मध्य प्रदेश (नर्मदा नदी पर)
2. बाण सागर बाँध            -    मध्य प्रेदश (सोननदी पर)
3. गाँधी सागर बाँध            -   मध्य प्रदेश (चम्बल नदी पर)
4. सरदार सरोवर बाँध     -     गुजरात (नर्मदा नदी पर)
5. मिनिमाता बाँध            -    छत्तीसगढ़ (हसदेव नदी पर)
6. टिहरी बाँध                -    उत्तराखंड (भागीरथी नदी पर)
7. हीराकुंड बाँध            -    उड़ीसा (महानदी पर)
8. उकाई बाँध                -    गुजरात (ताप्ती नदी)
9. पोंग बाँध                  -    हिमाचल प्रदेश (व्यास नदी पर)
10. रिहंद बाँध                -    उत्तर प्रदेश (रिहंद नदी) यह गोविंद वल्लभ पंत परियोजना के नाम से भी जानी जाती है ।
11. रानी लक्ष्मीबाई बाँध    -    उत्तर प्रदेश (बेतवा नदी)
12. नागार्जुन सागर बाँध   -    आंध्र प्रदेश (कृष्णा नदी पर)
13. श्रीशैलम बाँध             -    आंध्र प्रदेश (कृष्णा नदी)
14. तुंगभद्रा बाँध              -    कर्नाटक (तुंगभद्रा नदी)
15. अल्माटी बाँध            - कर्नाटक (कृष्णा नदी पर, इसे लाल बहादुर शास्त्री बाँध के नाम से भी जाना जाता है ।)
16. सुपा बाँध                    -    कर्नाटक (काली नदी पर)
17. इडुक्की बाँध              -    केरल (पेरियार नदी)
18. टिहरी बाँध                -    उत्तराखण्ड (भागीरथी नदी) भारत का सबसे ऊंचा बाँध)
19. भाटसा बाँध               -    महाराष्ट्र
20. मेट्टूर बाँध                -    तमिलनाडु



शुकनासोपदेश प्रश्नोत्तरी

नोटः- यह सभी प्रश्न किसी न किसी प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये हैं । प्रश्न 1 - बाणभट्टस्य गद्ये रीतिरस्ति - पञ्चाली प्रश्न 2- शुकनासोपदेश...