गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

पञ्चतन्त्र

पञ्चतन्त्र का कथानक - पञ्चतन्त्र पाँच तन्त्रों में निबद्ध ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ का संक्षिप्त कथानक इस प्रकार है -

कथामुख - शास्त्रज्ञान से शून्य, विवेकहीन एवं दुर्व्यसनों से युक्त अपने मूर्ख पुत्रों से दुःखी महिलारोप्य के राजा अमरशक्ति की कथा है । राजा अपने पुत्रों को विष्णुशर्मा को सौंप देते हैं । विष्णुशर्मा प्रतिज्ञा लेते हैं कि वे राजा के तीनों मूर्खपुत्रों को छः महीने में राजनीति एवं नीतिशास्त्र में पारङ्गत बना देंगे । यही इसका कथामुख है । इसके बाद विष्णुशर्मा आगे की कथाओं के माध्यम से उन राजपुत्रों को उपदेश देते हैं ।

1. मित्रभेद - इस तन्त्र में 1 मुख्यकथा तथा 22 उपकथाएंँ हैं । मुख्य कथा में पिङ्गलक नामक शेर तथा संजीवक नामक बैल घनिष्ट मित्र थे । करटक एवं दमनक नामक सियारों ने उनमें फूट पैदा कर दी और सिंह द्वारा बैल की हत्या करवा दी । अपने रक्तरंजित पंजों को देख कर सिंह को पश्चाताप होता है, तब दमनक श्रृगाल अनेक युक्तियों से सिंह को सान्त्वना देता है और प्रधानमन्त्री पद पर बना रहता है । मित्रों के बीच फूट डालना ही इस तन्त्र का मुख्य उद्देश्य है ।

2. मित्रसम्प्राप्ति - इस तन्त्र में 1 मुख्य कथा तथा 7 उपकथाएँ हैं । मुख्य कथा इस प्रकार है - चित्रग्रीव नामक कबूतरों का राजा शिकारी द्वारा फेंके गये जाल में अन्य कबूतरों को जाने से मना करता है लेकिन वे नहीं मानते हैं और सब चले जातेे हैं तो चित्रग्रीव भी उनकी जान बचाने के लिए स्वयं भी उसमें बैठ जाता है और अपने दल सहित शिकारी के जाल में फंस जाता है । चित्रग्रीव पूरे समूह के साथ जाल लेकर उड़ जाता है और अपने मित्र हिरण्यक नामक चूहे से सबका बन्धन कटवाता है । लघुपतनक नामक कौआ की चूहे एवं उसके पुराने मित्र मन्थरक नामक कछुए के साथ मित्रता होती है । हिरण्यक चूहा उसे अपना पहला घर छोड़ने का कारण बताता है । चित्राङ्ग नामक मृग, चूहे का चौथा मित्र बन जाता है । एक दिन वह मृग जाल में फंस जाता है और अपने मित्रों की सहायता से मुक्त कराया जाता है । अन्त में मित्र का माहात्म्य बतलाकर तन्त्र समाप्त होता है ।

3. काक-उलूकीयम् - इस तन्त्र में 1 मुख्य कथा एवं 17 उपकथाएंँ हैं । इसमें विग्रह (युद्ध) तथा सन्धि का वर्णन है । इसमें मुख्यकथा के अन्तर्गत कौवों के राजा मेघवर्ण एवं उल्लुओं के राजा अरिमर्दन की कथा है । रात्रि के समय में उलूकराज चोंच मार मार कर कौवों को मार डालता था । इससे त्रस्त होकर स्थिरजीवी नामक कौवे का मन्त्री एक उपाय अपने राजा को बताता है । वह स्थिरजीवी नामक कौआ बुद्धिपूर्वक उलूकराज से मित्रता करता है । वह कौआ उलूकराज के बगल में ही अपना घोंसला बनाता है और बाद में उसमें आग लगाकर उल्लू शत्रुओं का नाश कर देता है । इसके बाद मेघवर्ण नामक कौवों का राजा अपने मन्त्री को पुरस्कार देकर निश्चिन्त होकर रहने लगता है।

4. लब्धप्रणाश - इसमें एक मुख्य कथा एवं ग्यारह उपकथाएँ हैं । इसमें मुख्य कथा के रूप में कराल मुख नामक मगर एवं रक्तमुख नामक वानर की कथा है । बन्दर प्रतिदिन मगर को जामुन देता था । मगर उन जामुनों को स्वयं भी खाता और घर ले जाकर अपनी पत्नी को भी खिलाता । मगर की पत्नी सोचती है कि जिसके जामुन इतने मीठे हैं उसका दिल कितना स्वादिष्ट होगा और यही सोच कर मगर की पत्नी बन्दर का कलेजा खाना चाहती है । मगर बन्दर से जब उसका दिल लेने की बात करता है तो मगर के साथ जा रहा बन्दर बीच रास्ते से यह कहकर लौट आता है कि मेरा दिल तो पेड़ पर छूट गया है । इस प्रकार बन्दर की जान बच जाती है और मगर उसका मुँह देखता रह जाता है । अन्त में पुरुषार्थजन्य लक्ष्मी का माहात्म्य बताकर तन्त्र समाप्त हो जाता है ।

5. अपरीक्षितकारक - इस तन्त्र के अन्तर्गत 1 मुख्य कथा तथा 14 उपकथाएँ हैं । इसमें मुख्य रूप से भली भांति विचारपूर्वक सुपरीक्षित कार्य करने की नीति पर बल दिया गया है । मुख्य कथा इस प्रकार है - एक ब्राह्माणी और एक नेवले की घनिष्ठ मित्रता होती है । नेवला ब्राह्मणी के बच्चे की सर्प से रक्षा करता है । लेकिन ब्राह्मणी ने उस नेवले की यह समझकर हत्या कर देती है कि नेवले ने उसके बच्चे को मार डाला है । बाद में ब्राह्मणी अपने किये पर पछताती है । अतः यह कथन सत्य ही है कि हमें प्रत्येक कार्य को करने से पहले विचार कर लेना चाहिए सही और गलत का ।

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