प्रथम ऐतिहासिक उपन्यास के प्रणेता अम्बिकादत्तव्यास है । अंबिकादत्त व्यास ने अपनी हिंदी की प्रसिद्ध पुस्तक विहारीविहार के अंत में अपना संक्षिप्त जीवन वृतांत लिखा है। व्यास जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी सं. 1915 (1858 ई.) में राजस्थान राज्य केेेेे जयपुर जिले के ग्राम रावत जी का धूला, मोहल्ला- सिलावटी में हुआ था । व्यास जी के पितामह का नाम पंडित राजाराम था। इनके पितामह प्रसिद्ध ज्योतिषी थे, जो जयपुर से आकर काशी में रहने लगे थे । इनकेे पिता दुर्गादत्त थे जो कभी जयपुर मेंं रहते थे कभी बनारस में । व्यास जी केे चाचा का नाम देवीदत्त था ।
इनके पिताजी विद्वान् और कवि थे, अतः उन्होंने बचपन से ही व्यास जी के संस्कार ऐसे डालें कि इन्हें अमरकोश, शब्द-धातु रुपावली और व्यावहारिक पदार्थों के संस्कृत नाम मौखिक रूप से कंठस्थ हो गये। व्यास जी कुशाग्र बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे । व्यास जी ने 10 वर्ष की अवस्था से ही काव्य रचना आरंभ कर दी थी। लगभग 12 वर्ष की अवस्था में व्यास जी ने धर्म सभा की परीक्षा में पुरस्कार प्राप्त किया था । व्यास जी के पिताजी प्रसिद्ध कवि थे इसलिए अन्य कवियों से इनका भी संपर्क बना रहता था, इसी क्रम में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी से इनकी बहुत अच्छी मित्रता हो गई। भारतेंदु जी ने ही इनका उत्साह वर्धन भी किया । 11 वर्ष की अवस्था में माता का और 17 वर्ष की अवस्था में पिता का देहांत होने पर पारिवारिक दायित्व इन पर आ पड़ा।
व्यास जी ने सं. 1937 में साहित्याचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की । व्यास जी हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और बंगला भाषा के ज्ञाता थे। व्यास जी सितार हारमोनियम जलतरंग और मृदंग बजाने का अभ्यास भी करते थे । सांख्य, योग, वेदांत और आयुर्वेद में इनकी अच्छी गति थी । एक घड़ी (24 मिनट) में 100 श्लोक की रचना करने से सं. 1938 में काशी ब्रह्मामृतवर्षिणी सभा ने इन्हें घटिकाशतक की उपाधि प्रदान की । 100 प्रश्नोंं को एक साथ ही सुनकरसू उन सभी प््र प्रश्नों का उत्तर उसी क्रम में देने की अद्भुत क्षमता होनेे से इन्हें शतावधान की उपाधि दी गई थी । वक्ता और साहित्यस्रष्टा के साथ ही चित्रकारिता, अश्वारोहण संगीत और शतरंज में भी व्यास जी विशेष रूचि रखते थे ।
सं. 1940 में मधुबनी संस्कृति स्कूल के अध्यक्ष होकर बिहार गए, वहां मैथिली भाषा का अध्ययन किया। बिहार में संस्कृत-सञ्जीवनी-समाज की स्थापना की । संं. 1943 में यह मुजफ्फरपुर जिला स्कूल के हेड पंडित होकर गए । सं. 1957 (1900 ई.) में अपने पीछे एक 9 वर्षीय पुत्र, एक कन्या और अपनी पत्नी को असहाय छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो गए।
कुल रचनाएं - लगभग 78
संस्कृत रचनाएं- व्यास जी द्वारा रचित संस्कृत के छोटे बड़े 25 ग्रंथों की सूची इस प्रकार है-
शिवराजविजय (उपन्यास), सामवतनाटकम्,
गणेशशतकम्, सांख्यसागरसुधा, पातञ्जलप्रतिविम्बम्,
रेखागणितम् (श्लोकवद्ध), कथाकुसुमम्, संस्कृताभ्यासपुस्तकम्, प्राकृतगूढशब्दकोषः, प्राकृतप्रवेशिका, अनुष्टुब्लक्षणोद्धारः, द्रव्यस्तोत्रम्, गुप्ताशद्धिप्रदर्शनम्, रत्नपुराणम्, समस्यापूर्तिसर्वस्वम्, आर्यभाषासूत्रधारः,रत्नाष्टकम्, दुःखद्रुमकुठारः, बालव्याकरणम्, कुण्डलीदर्पणम्, इतिहाससंक्षेपः, सहस्रनामरामायणम्, गद्यकाव्यमीमांसा, पुष्पोपहारः, अवतारकारिका
हिंदी रचनाएं- हिंदी की प्रथम रचना प्रस्तारदीपक थी। विहारीविहार (कुंडलिनी छंद) में।
पत्रिका - पीयूष प्रवाह का संपादन ।
उपाधियाँ-
1. सुकवि (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, काशी कवितावर्धिनी सभा)
2. घटिकाशतक (ब्रह्मामृतवर्षिणी सभा)
3. शतावधान
4. भारतरत्न (काशी की 'महासभा')
5. अभिनवबाण/आधुनिकबाण
6. भारतभूषण
7. महाकवि
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