पारस्थितिकी (Ecology) - जैविक घटकों का अजैविक घटकों के बीच अंतर्संबंधों का अध्ययन पारिस्थितिकी कहलाता है । यह शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है। यह शब्द हैकल (1869) नेे दिया है । अर्नीज नेस ने वर्ष 1973 में सर्वप्रथम पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग किया था।
- पारिस्थितिकी की सबसे छोटी इकाई पारितंत्र (Ecosystem) है।
- पारिस्थितिकी की सबसे बड़ी इकाई जैवमंडल (Biosphere) है।
जैव विविधता (Biodiversity)- किसी पारिस्थितिक तंत्र में विद्यमान सजीव प्राणियों (पौधों एवं जन्तुओं) की विविधता को जैव विविधता कहा जाता है।
- जैव विविधता में परिवर्तन भूमध्य रेखा की तरफ बढ़ती है।
- सर्वाधिक जैव विविधता उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
- जैव विविधता के निर्माण के लिए अत्यधिक तापमान और अत्यधिक वर्षा आवश्यक है।
पारितंत्र (Ecosystem) - वर्ष 1935 में A.G. टांसले द्वारा सर्वप्रथम पारिस्थितिकी तंत्र की संकल्पना प्रस्ताविित की गई। जैविक व अजैविक घटकों के अंतर संबंधों से निर्मित संरचनात्मक सक्रिय व क्रियात्मक इकाई पारितंत्र है। यह एक खुला तंत्र है अर्थात् इसमें पदार्थ का व ऊर्जा का निवेश एवं बहिर्गमन सतत रूप से होता रहता है। पारितंत्र में जैविक अनुक्रमण (Biological succession) होताा है। पारितंत्र की उत्पादकता ऊर्जा की उपलब्धता पर निर्भर करता है। पारितंत्र की प्रमुख ऊर्जा का अंतिम स्रोत सौर ऊर्जा है। पारितंत्र का विकास क्रमिक रूप से होता है।
- दो या दो से अधिक पारितंत्र जब मिलते हैं तो एक जीवोम या बायोम का निर्माण होता है।
- समुद्र विश्व का सबसे बड़ा पारिस्थितिक तंत्र है।
पारितंत्र के प्रकार (Types of Ecosystem ) -
1. प्राकृतिक पारितंत्र (Natural Ecosystem) - नदियां, घास के मैदान, जंगल, रेगिस्तान, झीलें आदि।
2. कृत्रिम पारितंत्र (Artificial Ecosystem) - मछली घर, उद्यान, फसलें, नहरें, बांध आदि।
पारितंत्र के घटक (Component of Ecosystem) -
1. जैविक घटक (Biotic Component) - इसमें सभी सजीव आते हैं । जैविक घटक मुख्य रूप से तीन प्रकार का है -
a. उत्पादक (Producers) - भोजन बनाने की क्षमता केवल स्वपोषी अर्थात् हरे पौधों में ही होती है, इनको उत्पादक कहते है। पौधे सूर्य के प्रकाश से प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा भोज्य पदार्थों का निर्माण करते हैं।
b. उपभोक्ता (Consumers) - इन्हें परपोषी कहते हैं । यह मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं -
i. प्राथमिक उपभोक्ता (primary consumers) - जो सीधे उत्पादक से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, उसे प्राथमिक उपभोक्ता कहते हैं। इसके अंतर्गत शाकाहारी जंतु आते हैं।
ii. द्वितीयक उपभोक्ता (secondary consumers) - इसके अंतर्गत वे जन्तु आते हैं जो अपना भोजन शाकाहारी जन्तुओं (प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता) से प्राप्त करते हैं। जैसे- साँप, छिपकली, मेंढक, गिरगिट, मैना आदि।
iii. तृतीयक उपभोक्ता (tertiary consumers) - इसमें द्वितीय श्रेणी के जन्तुओं को खाने वाले जन्तु आते हैं, इसीलिए इन्हें मांसाहारी जंतु भी कहा जाता है। जैसे- शेर, चीता, बाज, गिद्ध, बिल्ली आदि।
c. अपघटक (Decomposers) - ये सूक्ष्मजीव हैं, जैसे मृतजीवी कवक व जीवाणु आदि । उत्पादक (मृत पौधों) एवं उपभोक्ताओं के मृत शरीर को सरल यौगिकों में अपघटित कर देते हैं। ये मृत जैव अवशेषों का अपमार्जन करते हैं अतः इन्हें अपमार्जक भी कहते हैं। मृतोपजीवी (Detritivorous), परपोषी जीव (Heterotrophs) होते हैं।
2. अजैविक घटक (Abiotic Component)- इसमें सभी निर्जीव आते हैं । सभी कार्बनिक और अकार्बनिक घटक इसके अंतर्गत आते हैं। जैसे - हवा, जल, मिट्टी, तापमान, सूर्य का प्रकाश, पृथ्वी, वर्षा आदि।
कीटभक्षी पादप (Insectivorous) - उत्पादक के साथ द्वितीयक उपभोक्ता भी माना जाता है। कीटभक्षीपादप नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए कीटों का भक्षण करते हैं। उदाहरण - Pitcher Plants (घटपर्णी), Bladderwort (यूट्रिकूलेरिया), Drosera/ड्रोसेरा, Daonia/डायोनिया
पारिस्थितिकी निकेत (Ecological Niche) - यह शब्द ग्रिनेल्स ने दिया है। एक प्रजाति को जीवित रहने के लिए जिन जैविक, भौतिक या रासायनिक कारकों की जरूरत होती है, उन्हें सम्मिलित रूप से निकेत कहते हैं। प्रत्येक प्रजाति का एक विशिष्ट निकेत होता है तथा कोई भी दो प्रजाति एक ही निकेत में नहीं रह सकती ।
संक्रमण क्षेत्र (Ecotone) - Ecotone ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां पर दो ecosystem की भौगोलिक सीमाएं आपस में मिलती हैं। दो पारितंत्र का कॉमन क्षेत्र। संक्रमण क्षेत्र में उच्च जैवविविधता (High Biodiversity) के साथ साथ गतिविधियां भी अधिक होगी।
खाद्य श्रृंखला (Food chain) - प्राथमिक उत्पादक (हरे पौधे), उपभोक्ता व अपघटक मिलकर खाद्य श्रृंखला बनाते हैं और ये भोज्य पदार्थ के लिए एक दूसरे का भक्षण करते हैं। खाद्य श्रंखला में ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा में (Unidirectional) होता है ।
एक साधारण समुद्री आहार श्रृंखला का सही क्रम - डायटम (स्वपोषी), क्रस्टेशियाई (शाकाहारी उपभोक्ता), सेरिंग (मांसाहारी उपभोक्ता)
खाद्य जाल (Food Web) - अनेक खाद्य श्रृंखलाओं के पारस्परिक संबंध को खाद्य जाल कहते हैं। खाद्य जाल संपूर्ण समुदाय के सभी जीवों में संबंध स्थापित करता है। खाद्य जाल में पोषक पदार्थ व ऊर्जा के स्थानांतरण की सभी संभावनाओं को दर्शाया जाता है ।
पारिस्थितिक पिरैमिड्स (Ecological Pyramids) - पारिस्थितिक पिरामिड का विचार चार्ल्स एल्टन ने दिया था। इसे Eltonion Pyramids भी कहा जाता है। किसी भी पारिस्थितिक तंत्र के प्राथमिक उत्पादकों एवं विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या, जीव भार तथा संचित ऊर्जा में परस्पर एक प्रकार का संबंध होता है, इन संबंधों को जब चित्र रूप मेंं दिखाया जाता है तो इन्हें पारिस्थितिक पिरामिड््स कहतेे हैं।
पारिस्थितिक पिरामिड्स के प्रकार -
1. जीव संख्या का पिरैमिड (pyramid of number)- जिस पिरैमिड द्वारा पारिस्थितिक तन्त्र के प्राथमिक उत्पादकों तथा विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या के सम्बन्ध के बारे में बोध होता है, उसे जीव संख्या का पिरैमिड कहते हैं।
- जीव संख्या का पिरैमिड का आधार हमेशा प्राथमिक उपभोक्ताओं की संख्या बताता है
- जीव संख्या के पिरैमिड्स सीधे और उल्टे दोनों तरह के होते हैं।
2. जीव भार का पिरैमिड (pyramid of biomass) - जिस पिरैमिड द्वारा पारिस्थितिक तन्त्र के प्राथमिक उत्पादकों तथा विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं के भार के सम्बन्ध का बोध होता है, उसे जीव भार का पिरैमिड कहते हैं।
- जीव भार के पिरामिड्स सीधे और उल्टे दोनों तरह के होते हैं।
3. ऊर्जा का पिरैमिड (pyramid of energy)- जो पिरैमिड किसी पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न पोषण तलों के जीवधारियों द्वारा प्रयोग में लाई गई ऊर्जा के संपूर्ण परिमाण का बोध कराता है, उसे संचित ऊर्जा का पिरैमिड कहते हैं।
- ऊर्जा का पिरामिड्स सदैव सीधा होता है।
ऊर्जा दशांंश का नियम (10% Energy Law) - यह नियम लिण्डेमान (1942) ने दिया। एक जीव में दूसरेेेेे जीव से ऊर्जा स्थानांतरण होता है तो केवल 10% ऊर्जा ही उपभोक्ता में स्थानांतरित होती है, बाकी 90% ऊर्जा जैविक क्रियाओं में प्रयोग हो जाती है, उसी को ऊर्जा दशांश नियम कहा जाता है।
प्रकाश संश्लेषण -
पौधों में जल, सूर्य का प्रकाश, क्लोरोफिल तथा कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति में पौधों द्वारा भोजन निर्माण की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं । इस प्रक्रिया में पौधों की पत्तियों में उपस्थित क्लोरोफिल सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा अवशोषित करके जल और कार्बन डाइऑक्साइड की सहायता से ग्लूकोज के रूप में अपना भोजन बनाते हैं ।
6CO2+12H2O क्लोरोफिल सूर्यप्रकाश C6H12O6 + 6O2+CH2O
- प्रकाश संश्लेषण की क्रिया, ऑक्सीडेशन तथा रिडक्शन अभिक्रिया है । इसमें जल का ऑक्सीडेशन ऑक्सीजन के बनने में तथा कार्बन डाइऑक्साइड का रिडक्शन ग्लूकोज के निर्माण में होता है।
- सकल प्राथमिक उत्पादकता - प्राथमिक उत्पादकों द्वारा निश्चित क्षेत्रफल व समय में बनाए गए कार्बनिक पदार्थों की कुल मात्रा को सकल प्राथमिक उत्पादकता (GPP) कहते हैं, इसे जैव भार या कैलोरी प्रति वर्ग मीटर के रूप में प्रदर्शित करते हैं।
- शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता (NPP) - प्राथमिक उत्पादक प्रकाश संश्लेषण में बने कार्बनिक पदार्थों का कुछ भाग श्वसन की क्रिया के उपरांत जला देते हैं। उत्पादक श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड निकालते हैं और जो इंधन के रूप में शेष भाग बचता है वही शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता कही जाती है। स्थालीय वनस्पतियों में 30-70% NPP होताा है।
क्लोरोफिल क्या है ?- क्लोरोफिल एक प्रोटीनयुक्त जटिल रासायनिक Compound है। यह वर्णक पत्तों के हरे रंग का कारण है। इसे फोटोसिन्थेटिक पिगमेंट (Photosynthetic Pigment) भी कहते हैं।
- इसका गठन कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा मैग्निसियम तत्वों से होता है। क्लोरोफिल ए तथा क्लोरोफिल-बी दो प्रकार का होता है। यह सभी स्वपोषी हरे पौधों में पाया जाता है।
- पौधों की जिन cell में क्लोरोफिल पाया जाता है वही Photosynthesis process में भाग लेता है ।
- इसके चार घटक हैं - Chlorophyll A, Chlorophyll B, कैरोटीन तथा जैथोफिल ।
- इसमें Chlorophyll A एवं B हरे रंग का होता है और ऊर्जा Transfer करता है, यह प्रकाश संश्लेषण का centre होता है। क्लोरोफिल सूर्य के प्रकाश में उपस्थित लाल रंग को सबसे अधिक अवशोषित करता है ।
प्रकाश संश्लेषण क्रिया की दो अवस्थाएं होती हैं -1. Photochemical reaction (प्रकाश रासायनिक क्रिया) - यह Reaction क्लोरोफिल के ग्रेना (Grana) भाग में संपन्न होती है । इसे हिल क्रिया (hill reaction) भी कहते हैं। जल के Decomposition के लिए energy, light से मिलती है । इस प्रक्रिया के अंत में energy के रूप में ATP निकलता है जो रासायनिक प्रकाश हीन प्रतिक्रिया संचालित करने में मदद करता है ।
2. Dark chemical reaction (रासायनिक प्रकाशहीन क्रिया)- यह Reaction क्लोरोफिल के स्ट्रोमा में होता है । इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का Reduction होकर स्टार्च व शर्करा बनता है।