सोमवार, 10 मई 2021

Biology


पीयूष, पिट्यूटरी या मास्टर ग्रंथि -
                      यह भ्रूण के एक्टोडर्म से विकसित होती है। यह सबसे छोटी अंत: स्रावी ग्रंथि है जो मस्तिक के हाइपोथैलेमस के पास होती है और हाइपोथैलेमस इसे नियंत्रित करता है। इस ग्रंथि से वृद्धि हार्मोन (सोमैटोट्राफिक हार्मोन STH) या GH (growth hormone)  स्रावित किए जाते हैं। यह ग्रंथि अन्य अंतः स्रावी ग्रंथियों के स्रावण का नियंत्रण करती है इसीलिए इसे मास्टर ग्लैंड भी कहते हैं। हां ! यह परावटु (पैराथाइराइड) ग्रंथि का नियंत्रण नहीं कर पाती है। पैरा थायराइड ग्रंथि स्वतंत्र होकर कार्य करती है। इस ग्रंथि का आकार पुरुष में 0.5 ग्राम से 0.6 ग्राम होता है जबकि महिलाओं में यह कुछ बड़ी होती है 0.6 ग्राम से 0.7 ग्राम होती है।
वृद्धि हार्मोन (GH or STH)  की कमी से होने वाले रोग-- बौनापन या मिजेट्स। यह बाल्यावस्था में होता है। साइमंड रोग या एक्रोमिक्रिया या पीयुष मिक्सीडीमा, यह रोग वयस्क अवस्था में होता है।
वृद्धि हार्मोन (GH or STH) की अधिकता से होने वाले रोग- बाल्यावस्था में महाकायता (जिगांटिज्म) रोग। वयस्क अवस्था में अग्रातिकायता  (एक्रोमिगैली) रोग।

गोनेडोट्रॉपिक हार्मोन या जनद हार्मोन-  यह हार्मोन नर में वृषण तथा मादा में अंडाशय को प्रेरित करते हैं यह दो प्रकार के होते हैं।
1-पुटिका प्रेरक हार्मोन (FSH)-  नर में शुक्र जनन को प्रेरित करता है तथा मादा में एस्ट्रोजन हार्मोन के स्रावण को प्रेरित करता है। स्त्रियों में रजोनिवृत्ति के बाद एस्ट्रोजन का स्रावण बंद हो जाता है।
2- ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन(LH)-  ये नर में टेस्टीस्टीरोन के स्रावण को प्रेरित करता है। तथा मादा में यह हार्मोन अंडोत्सर्ग व कार्पस लुटियम के विकास हेतु आवश्यक है। इस हार्मोन की प्रेरणा से कार्पस लुटियम, प्रोजेस्ट्रोन का स्रावण करता है।
        FSH तथा LH दोनोें ग्लाइकोप्रोटीन के बने होते हैं। ये यौवन अवस्था शुरू होने के कारण और आधार होते हैं। इनका स्रावण आनुवंशिक जैव घड़ी द्वारा नियंत्रित होता है। जैसे monthly cycle.। यह थायराइड प्रेरक हार्मोन TSH तथा एड्रिनल ग्रंथि के कार्टैक्स को प्रेरित करने वाला हार्मोन ACTH secret Karta hai.

3- प्रोलेक्टिन हार्मोन- यह हार्मोन प्रोटीन से बने होते हैं। प्रसव के बाद दूध संश्लेषण को उद्दीपित करते हैं। कबूतर में ग्रुप ग्रंथियों को प्रेरित करते हैं। पक्षियों में घोंसला निर्माण को प्रेरित करते हैं । पैतृक संरक्षण को प्रेरित करते हैं।

4- वेसोप्रेसिन हार्मोन ADH-- यह हार्मोन संग्रह नलिका सेजल की पुनः अवशोषण को प्रेरित करता है । इस हार्मोन की कमी से जल का अवशोषण कम हो जाता है तथा मूत्र का आयतन बढ़ जाता है । इसे मूत्रलता कहते हैं। इस रोग को डायबिटीज इनसीपीडस कहते हैं । इससे रोगी के शरीर में निर्जलीकरण हो जाता है । रोगी को प्यास अधिक लगती है। अल्कोहल, चाय, काफी यह ADH का निरोधन करते हैं जिससे मूत्र का आयतन बढ़ जाता है। इस हार्मोन का नियंत्रण परासरण नियमन केंद्र द्वारा होता है जो हाइपोथैलेमस में स्थित होता है।

5- आक्सीटोसिन या पिटोसिन- प्रसव के समय प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन की सांद्रता को घटाता है। क्योंकी इसकी अधिक सांद्रता गर्भाशय की आरक्षित पेशियों के संकुचन का विरोध करती हैं । लेकिन आक्सीटोसिन इसे कम करके पेशियों में संकुचन लाता है, इससे प्रसव पीड़ा उत्पन्न होती है।  ऑक्सीटोसिन हार्मोन दुग्ध निष्कासन का कार्य करता है। ऑक्सीटोसिन हार्मोन को आलिंगन हार्मोन या लव हार्मोन कहते हैं।

थायराइड ग्रंथि -
         यह भ्रूण के एंडोडर्म से उत्पन्न होती है। और गले के पास H आकार तथा गुलाबी रंग की होती है। इसका भार 25 से 30 ग्राम होता है । यह स्त्रियों में अधिक बड़ी होती है । थायराइड ग्रंथि में अनेक गोलाकार पुटिकाएं होती हैं, जो ईकाई का कार्य करते हैं । इन्हें एसीनी कहते हैं। थायराइड ग्रंथि में 65% आयोडीन होता है तथा अमीनो अम्ल से बनी होती है। यह सबसे बड़ी अंतः स्रावी ग्रंथि होती है। यह उपापचय दर को बढ़ाता है इस कारण इसे केलारोजेनिक हार्मोन भी कहते हैं। मछलियों में यह हार्मोन जलीय संतुलन में सहायक होता है।
यह हार्मोन टैडपोल लार्वा के कायांतरण के लिए आवश्यक है। यह हार्मोन तंत्रिका तंत्र की सामान्य वृद्धि व सामान्य क्रिया के लिए आवश्यक है। यह हार्मोन लैंगिक परिपक्वता के लिए आवश्यक है।
इस हार्मोन की कमी से या अल्प स्रावण से बाल्यावस्था में क्रीटीनिज्म रोग होता है। वयस्क अवस्था में मिक्सौडेमा रोग होता है। सामान्य घेंघा रोग होता है। हाशीमोटो रोग होता है। हासीमोटो रोग को थायराइड की आत्महत्या का रूप भी कहा जाता है।

थायराइड की अतिक्रियाशीलता से होने वाले रोग व उनके लक्षण- उपापचय दर में वृद्धि, शरीर के ताप में वृद्धि, रक्तदाब में वृद्धि, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाना, अधिक पसीना आना, एक्सोप्थेलमिक रोग--नेत्र गोलक काफी उभरे होते हैं। ग्रेव का रोग--ग्रंथि में लगातार वृद्धि होती जाती है। प्लूमर का रोग- इस रोग में ग्रंथि में कई गांठे बन जाती हैं।

पैराथाइराइड ग्रंथि -
          यह थायराइड ग्रंथि के पृष्ठ पर धंसी रहती है । यह 2 जोड़ी होती हैं। रेनॉर्ड ने इस ग्रंथि की खोज की ।
1- पैराथार्मोन PTH- यह कैल्शियम आयन और फास्फेट आयनो का नियमन करता है। पक्षियों में कवच विहीन अंडे इसी की कमी से बनते हैं। हड्डी व दांतों का विकास भली-भांति ना होना इसी की कमी से होता है। इसकी अधिकता से सीरम में कैल्शियम आयन का स्तर बढ़ जाता है और किडनी में पथरी का निर्माण होता है। कैलशियम आयन ज्यादा निकलने से ओस्टियोपोरोसिस रोग हो जाता है।
नोट- थायराइड ग्रंथि की पेरीपुटिकाओं या सी कोशिकाओं से थायरोकेल्सीटोनिन हार्मोन बनता है जो रक्त में कैल्शियम आयन की मात्रा को घटाता है। इसे पैरा थायराइड ग्रंथि का विपरीत हार्मोन कहा जाता है।

एड्रिनल ग्रंथि या अधिवृक्क ग्रंथि -
         यह वृक्क या किडनी के ऊपर टोपी के समान होती है। इसलिए इसे सुप्रारिनल ग्रंथि भी कहते हैं। इस ग्रंथि की उत्पत्ति भ्रूण के कार्टैक्स भाग के मिसोडर्म द्वारा होती है। यह क्रोध भय और खतरे के समय सक्रिय होने वाली ग्रंथि है। इस हार्मोन को डरो उड़ो उड़ो हार्मोन भी कहते हैं।  3F हार्मोन भी कहते हैं।
मिनरेलोकार्टीकाइड्स हार्मोन-
1-यह हार्मोन सोडियम आयन पोटेशियम आयन क्लोरीन आयन व जल की मात्रा का नियमन करता है।
2- इस हार्मोन की कमी से एडीसन रोग होता है इसमें रक्त में सोडियम आयन की कमी हो जाती है, जिससे शरीर में कई जगह कांसे के रंग के चकत्ते बन जाते हैं।
3- इसी हार्मोन की कमी से कान्स रोग होता है जिसमें सोडियम आयन और पोटेशियम आयन का संतुलन बिगड़ जाता है। पेशियों में अकड़न आ जाती है जिससे मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है।

एड्रिनल कार्टेक्स से बना दूसरा हार्मोन ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स है। इसका उपयोग गठिया में किया जाता है क्योंकि यह कोलेजन तंतुओं के निर्माण को रोकता है। इस हार्मोन की कमी से हाइपोग्लाइसीमिया हो जाता है जिसमें रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। इस हार्मोन की अधिकता से कुर्शिंग रोग हो जाता है। इस हार्मोन की अधिकता से एड्रिनल विरिलिस्म या हीररूसुटीज्म या एड्रीनो जेनाइटल्स सिंड्रोम तैयार होता है। इसके कारण महिलाओं में पुरुषों के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
एड्रीनल मेड्यूल्ला- इसका निर्माण न्यूरल एक्टोडर्म द्वारा होता है अतः इसके हार्मोन को न्यूरो हारमोंस भी कहते हैं। एड्रिनल हार्मोन तनाव व आपात परिस्थितियों में सहयोग प्रदान करते हैं इसलिए इस ग्रंथि के हार्मोनों को जीवन रक्षक हार्मोन से भी कहते हैं । एड्रिनल की कमी से व्यक्ति में डिप्रेशन उत्पन्न होता है । एड्रिनल मेड्यूला के अति स्रावण से रोगी को हाइपरटेंशन हो जाता है जिसके कारण हृदय गति रुकने के कारण मौत भी हो सकती है। इसके अधिक निकलने से फिक्रोमोसीटोमा रोग हो जाता है ।

अग्नाशय या पैंक्रियास -
             यह शरीर की सबसे बड़ी दूसरी ग्रंथि है। यह सबसे बड़ी मिश्रित ग्रंथि है। इसकी लंबाई 18 से 20 सेंटीमीटर होती है। इस ग्रंथि का उद्भव आहार नाल के समान एंडोडर्म द्वारा होता है । इसकी इकाई एसीनाई कहलाती है। इसमें लैंगरहैंस के दीप समूह पाए जाते हैं जिसकी खोज लैंगरहैंस ने की थी। लैंगरहैंस दीप समूह में तीन कोशिकाएं पाई जाती हैं -
                                  अल्फा-25%
                                  बीटा-65%
                                  गामा या डेल्टा-10%
  • अल्फा कोशिकाओं से ग्लूकेगान हार्मोन स्रावित होता है।
  • बीटा कोशिकाओं से इंसुलिन हार्मोन स्रावित होता है।
  • गामा या डेल्टा कोशिकाओं से सोमेटोस्टेटिन हार्मोन स्रावित होता है।
इंसुलिन दो पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाओं से बनी होती है। अल्फा पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला में 21 अमीनो अम्ल और बीटा पर 30 अमीनो अम्ल पाए जाते हैं। दोनों श्रृंखलाएं डाईसल्फाइड बंधों द्वारा जुड़ी होती हैं। इंसुलिन और की संरचना का अध्ययन सर्वप्रथम सेंगर ने गाय में किया। सर्वप्रथम मानव इंसुलिन का संश्लेषण तान (Tsan) द्वारा किया गया। इंसुलिन की खोज का श्रेय बैटिंग व बेस्ट को दिया जाता है। इंसुलिन का प्रमुख कार्य ग्लूकोज का उपापचय का नियमन करना होता है। यकृत में इसकी उपस्थिति में ग्लूकोस का संश्लेषण ग्लाइकोजन (जंतु मंड) में होता है। इस प्रक्रिया को ग्लाइकोजेनेसिस कहते हैं। वसा ऊतकों में वसा का संश्लेषण या लाइपोजिनेसिस को प्रेरित करता है। इंसुलिन के कम स्रावण से डायबिटीज मेलिटस नामक रोग हो जाता है। इसके निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं -
हाइपरग्लाइसीमिया-- रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा का बढ़ना हाइपरग्लाइसीमिया कहलाता है। 160-180mg/100ml या इससे अधिक।

ग्लाइकोसुरिया- जब रुधिर में रक्त ग्लूकोज की मात्रा 300 से 500 मिलीग्राम प्रति 100 मिली हो जाती है तो इसे ग्लाइकोसुरिया कहते हैं। इसमें मूत्र से ग्लूकोज की मात्रा काफी निकलने लगती है।

पोलीयूरिया- बार-बार मूत्र का आना।
इंसुलिन के अधिक स्रावण से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा तो घटती है लेकिन निम्न प्रभाव भी उत्पन्न होते हैं -
हाइपोग्लाइसीमिया- इसमें रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा घट जाती है। इसके कारण इंसुलिन आघात होता है, जिसमें मृत्यु तक हो सकती है ।

ग्लूकेगान हार्मोन- यह हार्मोन यकृत में ग्लाइकोजन को ग्लूकोस के रूप में रूपांतरित करता है इस प्रक्रिया को ग्लाइकोजेनोलाइसिस कहते हैं। इस हार्मोन से ग्लूकोनियोजेनेसिस की प्रक्रिया होती है इसमें ग्लूकोज, अमीनो अम्ल व वसा से बनता है।

गामा कोशिकाओं से निकलने वाला सोमेटोस्टेटिन हार्मोन- इस हार्मोन के कारण भोजन पाचन अवशोषण व स्वांगीकरण की अवधि बढ़ाई जाती है। इसके कारण एक बार के भोजन की उपयोगिता अधिक समय तक बनी रह सकती है। इसे वृद्धि हार्मोन सन्दमक भी कहते हैं।

पीनियल काय ग्रंथि -
           यह मस्तिष्क के पृष्ठ भाग पर पाई जाती है। इससे मिलाटोनिन हार्मोन का स्रावण होता है। मिलाटोनिन हार्मोन नींद के लिए उत्तरदाई है। यह हार्मोन अधिकतर रात में स्रावित होता है।

वृषण - इसमें लेडिंग कोशिकाएं या अंतराली कोशिकाएं पाई जाती हैं। इन्हीं कोशिकाओं से नर लिंग हार्मोन स्रावित होते हैं। इन्हें एंड्रोजेंस कहते हैं। 
(नोट- एस्ट्रोजन प्रकार का सेक्स हार्मोन महिलाओं में पाया जाता है)
टेस्टोस्टीरोन हार्मोन एक प्रमुख एंड्रोजन है। इसके स्रावण को पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्रावित एल एच हार्मोन द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
              
अंडाशय -
       ऐस्ट्रोजन हार्मोन- यह हार्मोन ग्रेफियन पुटिका थीका इंटरना द्वारा होता है। इसे नारीत्व हार्मोन कहते हैं।  यह हार्मोन मंथली साइकिल शुरू करता है, 11 से 13 वर्ष की आयु में। मादा के सभी जननांगों का विकास यही हार्मोन करता है। रजोनिवृत्ति के बाद यह हार्मोन खत्म हो जाता है।

प्रोजेस्टरोन हार्मोन- इसे कार्पस लुटियम द्वारा स्रावित किया जाता है। अंडाशय में अंडोत्सर्ग होने के बाद ग्रेफियन पुटक की पुटक कोशिकाओं द्वारा कार्पस लुटियम का निर्माण होता है। यदि निषेचन नहीं हो पाता है तो कार्पस लुटियम रिड्यूस होकर अक्रिय रचना कार्पस एल्बिकंस में परिवर्तित हो जाता है। निषेचन हो जाने के बाद कार्पस लुटियम गर्भ काल तक सक्रिय रहता है । प्रोजेस्टीरोन हार्मोन गर्भधारण व गर्भावस्था के लिए आवश्यक हार्मोन है अतः इसे गर्भावस्था हार्मोन भी कहते हैं।

रिलैक्सिन हार्मोन- प्रसव के समय कार्पस लुटियम द्वारा इसे स्रावित किया जाता है। जिससे श्रोणि मेखला की प्यूबिक सिंफिसिस शिथिल हो जाता है। और परिणाम स्वरूप शिशु जन्म आसानी से हो जाता है।

  • किडनी से रेनिन हार्मोन स्रावित होता है यह एक प्रोटीन पाचक एंजाइम की तरह कार्य करता है। इससे परानिस्यंदन की दर को बढ़ावा मिलता है । इसके कारण सोडियम आयन व जल का पुनः अवशोषण बढ़ता है।
  • त्वचा पराबैगनी किरणों के प्रभाव से इरगोस्ट्राल एवं कोलेस्ट्रॉल से सक्रिय विटामिन डी का निर्माण करती है। यह विटामिन त्वचा में निर्मित होकर रुधिर में डाल दिया जाते हैं। अतः इन्हें हार्मोंस के समान माना जाता है।
  • आहार नाल की स्लेष्मा से गैस्ट्रिन हार्मोन का श्रावण होता है जो हाइड्रोक्लोरिक अम्ल व पेप्सीनोजन के स्रावण को प्रेरित करता है।
  • सीक्रीटिन हार्मोन ग्रहणी से स्रावित होती है, यह अमाशय से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के स्रावण का विरोध करता है तथा आंत्र में क्रमांनुकुंचन की गतियों को कम करती है।
(नोट- गर्भनिरोधक गोलियों में एस्ट्रोजन का प्रयोग किया जाता है।)

फेरोमोन-- यह बहिस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित होते हैं। यह सीधे वातावरण में मुक्त किए जाते हैं। यह एक जंतु द्वारा स्रावित होकर दूसरे जंतु पर प्रभाव डालते हैं। यह जाति विशिष्ट होते हैं।

  • अंतः स्रावी तंत्र (एंडोक्राइन सिस्टम) द फादर ऑफ इंडोक्राइनोलॉजी- थॉमस एडिसन।

  • अंतः स्रावी ग्रंथियों से स्रावित होने वाले पदार्थ को हार्मोन कहते हैं यह मिश्रित ग्रंथियों से भी निकलता है।
  • ग्रंथियां तीन प्रकार की होती हैं बहि स्रावी एक्सोक्राइन, अंतः स्रावी या एंडोक्राइन, मिश्रित ग्रंथि या मिक्स ग्लैंड।
  • बहि स्रावी या एक्सोक्राइन ग्रंथियां-- इनसे स्रावित पदार्थ अधिकतर एंजाइम होते हैं तथा इनका स्रावण नलिकाओं द्वारा होता है। जैसे- यकृत, जठर ग्रंथि, स्वेद ग्रंथि, लार ग्रंथि आदि।
  • शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत ग्रंथि होती है या शरीर की सबसे बड़ी बहिस्रावी ग्रंथि यकृत ग्रंथि होती है। फिर दूसरे नंबर में अग्नाशय (पैंक्रियाज) होती है। 
  • हार्मोन जल में विलय होते हैं इनका संचय नहीं होता है।
  • मानव शरीर का कितना प्रतिशत भाग प्रोटीन से बना होता है - 15 से 17%
  • किस प्रोटीन के कारण गाय के दूध का रंग हल्का पीला होता है - कैरोटिन के कारण

मानव नेत्र -
  • दृष्टि तंत्रिका कपाल की कौन सी तंत्रिका होती है--दूसरी
  • नेत्र की गति में कितनी पेशियां भाग लेती हैं-- छह
  • नेत्रदान में नेत्र का कौन सा भाग दान किया जाता है- कॉर्निया
  • नेत्र के किनारे पीले मोम जैसे तैलीय पदार्थ का स्रावण कौन सी ग्रंथि करती है- माईबोमियन ग्रंथियां
  • आंसू किन ग्रंथियों से स्रावित होते हैं- लैकक्राइमल ग्रंथियां
  • मनुष्य की आंख में पाया जाने वाला अवशेषी अंग है-- निमेशक पटल या निमीलक छंद
  • दृष्टि वैषम्य (astigmatism) रोग नेत्र के किस भाग की असमानता के कारण उत्पन्न होता है--कॉर्निया
  • नेत्र का कौन सा भाग कैमरे के डायफ्रेम की भांति कार्य करता है--आइरिस
  • मोतिया बिंदु या कांट्रैक्ट में आंख का कौन सा भाग प्रभावित होता है-- नेत्र लेंस 
  • नेत्र गोलक कैसा होता है-- उभय उत्तल या बाईकन्वैक्स
  • रेटिना पर वस्तु की उल्टी प्रतिबिंब में क्यों बनती है-- वस्तु से आई किरणों को कार्निया तथा एक्वस ह्यूमर द्वारा अपवर्तन के कारण
  • बिल्ली गाय भैंस चीता शेर आदि रात्रि चर जानवरों की आंखें रात में क्यों चमकती है--टैपीकम स्तर के कारण
  • प्रेस बायोपिया (जरादूरदृष्टिता) या वृद्धावस्था का नेत्रदोष में क्या होता है --लेंस अथवा सिलियरी पेशियों की लचक कम हो जाती है। इसे दूर करने के लिए बाइफोकल लेंस का उपयोग करते हैं या संशोधक चश्में का प्रयोग ।
  • रेटिना के शलाका (rod)कोशिकाओं में कौन सा दृष्टि पर्पिल पिगमेंट पाया जाता है-- रोडॉप्सिन
  • दूरदर्शिता दोष या हाइपरमेट्रोपिया में नेत्र गोलक में क्या परिवर्तन होता है-- नेत्र गोलक का व्यास कम(संकुचित) हो जाता है जिससे फोकस दूरी अधिक हो जाती है ।
  • दूरदर्शिता दोष में प्रतिबिंब रेटिना के पीछे अर्थात् रेटीना से दूर बनता है इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है।
  • निकट दृष्टि दोष या मायोपिया को दूर करने के लिए अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है। इसमें नेत्र गोलक का व्यास बढ़ जाता है जिससे फोकस दूरी कम हो जाती है तथा प्रतिबिंब रेटिना के पहले या रेटिना के आगे बनता है।
  • कान्टेक्ट लेंस किसके बने होते हैं- ल्यूसाइट। यह एक पारदर्शी थर्मोप्लास्टिक है जिसका रासायनिक नाम पाली मेथिली मेथाकिलेट है (PMMA) है।
  • किसी उत्तल लेंस का फोकस अंतर लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग के लिए कम होता है।
  • द्विफोकसी या बाईफोकल लेंस के ऊपरी तथा निचले भाग क्रमशः होते हैं - अवतल लेंस और उत्तल लेंस के
  • 3-D फिल्मों को देखने के लिए प्रयुक्त चश्मा में पोलेराइड का उपयोग किया जाता है। इसकी अक्ष ऊर्ध्वाधर से 45 डिग्री के कोण पर झुके रहते हैं।
  • आपरेशन के वक्त मानव आंखों की पुतली जिस एल्केलाइड की अति तनु विलयन से फैलाई जाती है वह है एट्रॉपिन
  • प्रकाश सीधी रेखा में चलता प्रतीत होता है क्योंकि इसका तरंगदैर्ध्य बहुत कम होता है
  • धूप के चश्मे का निर्माण रमन इफेक्ट के सिद्धांत पर किया गया है।
  • रेटिना पर जो चित्र बनता है वह वास्तविक और उल्टा होता है तथा वस्तु से छोटा होता है। रेटिना कैमरे की नेगेटिव की भांति कार्य करती है।
  • रेटिना अपवृद्धि है--अग्र मस्तिष्कपश्च की।
  • मानव आंख सर्वाधिक सुग्राही है पीले रंग और हरे रंग के लिए।
  • पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य को सीधे देखने से आंख में बहुत नुकसान होता है। रेटिना का जलना सूर्य की किरणों के निम्न घटकों में से एक के कारण होता है--पराबैगनी किरणों के कारण।
  • धूप के चश्मे की पावर होती है जीरो डायऑप्टर
  • मानव आंख दृश्य प्रकाश के जिस तरंगदैर्ध्य के लिए सर्वाधिक सुग्राही होती है - 5500 एंगस्ट्राम, हरे रंग और फिर पीले रंग के लिए।
  • आंख में संकेंद्रण होता है लेंस की उत्तलता में परिवर्तन द्वारा।
  • मनुष्य की आंख में प्रकाश तरंगे किस स्थान पर स्नायु उद्वेगों में परिवर्तित होती हैं- अक्षपट( दृष्टिपटल या रेटिना)।
  • प्रकाश का रंग उसके तरंगदैर्ध्य से निर्धारित होता है।

हार्मोन
  • अनुवांशिक जैविक घड़ी कहां स्थित होती है --हाइपोथैलेमस में।
  • स्तनधारियों में दुग्ध स्राव को उत्तेजित करता है- ऑक्सीटॉसिन एवं प्रोलैक्टिन हार्मोन।
  • क्रिप्टोर्किड रोग में क्या होता है-- नर जनन तंत्र नष्ट हो जाता है।
  • मेटाबॉलिज्म नियंत्रक हार्मोन थायरोक्सिन को कहते हैं।
  • किस हार्मोन के अधिक स्त्राव से कुशिंग रोग हो जाता है- एड्रिनल ।
  • ऊतक द्रव्य में बनने वाला काइलिंस है-- स्थानीय हार्मोन।
  • ऊतको को कम मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्धता कहलाता है हाइपोक्सिया
  • किस ग्रंथि को 4s या 3F ग्रंथि की संज्ञा प्रदान की गई- एड्रिनल
  • वृषण के किस भाग में शुक्राणु का परिपक्वन होता है-- एपीडीडाइमिस
  • कौन सी ग्रंथि मूत्रमार्ग को क्षारीय और चिकना बनाती है--बल्ब्यूरेथ्रल या कॉउपर की ग्रंथियां।
  • शुक्राणु निर्माण के लगभग कितने दिन बाद तक जीवित रहते हैं --30 दिन।
  • माहवारी चक्र का नियंत्रण कौन सी ग्रंथि करती है- अग्र पिट्यूटरी ग्रंथि से स्रावित एफ एस एच और एल एच हार्मोन।
  • गर्भाधान की जांच में स्त्री के मूत्र में किस पदार्थ की मात्रा का संज्ञान किया जाता है--कोरिओनल गोनैडोट्रापिन।
  • कृत्रिम गर्भाधान में निषेचित अंडाणु को गर्भ में स्थापना के दौरान किस हार्मोन का नियमन महत्वपूर्ण होता है-- प्रोजेस्टेरोन
  • सहेली क्या है--गर्भ निरोधक दवा।
  • मोंटगुमरी ग्रंथियां कहां पाई जाती हैं--स्तन में
  • स्तन में दूध का निर्माण किन कोशिकाओं से होता है-- एल्बुलाई कोशिकाओं से।
  • गर्भ फुफ्फुस की उपमा किसे प्रदान की जाती है --प्लेसेंटा को।

जंतुओं का औसत जीवनकाल -
  1. सर्वाधिक औसत जीवनकाल कछुआ का होता है 153 वर्ष
  2. तोता का औसत जीवनकाल डेढ़ सौ वर्ष होता है।
  3. बिल्ली का औसत जीवनकाल 40 वर्ष ।
  4. शेर का औसत जीवनकाल 30 वर्ष ।
  5. चीता का औसत जीवनकाल 26 वर्ष ।
  6. घरेलू मक्खी का औसत जीवनकाल  76 दिन 
प्राणियों का गर्भकाल -
  1. सर्वाधिक गर्भकाल सैलामेंडर का होता है 1140 दिन।
  2. हाथी का गर्भकाल 624 दिन होता है।
  3. गधा और व्हेल का गर्भकाल 365 दिन होता है।
  4. भेड़ व बकरी का 151 दिन
  5. गाय का 270 दिन और भैंस का 300 दिन।
  6. मनुष्य का 265-280 दिन
  7. चूहा का गर्भकाल 21 दिन ।
  8. गिलहरी का 30- 40 दिन ।
  • शरीर के सर्वाधिक अंगों का निर्माण मीसोडर्म द्वारा होता है।
  • भ्रूण के मीसोडर्म स्तर से बनते हैं- प्लीहा, दांत की डेंटीन, आरबीसी डब्ल्यूबीसी, कशेरुक दंड, करोटि, पेशियां, वृक्क, एड्रेनल कोरटेक्स, जनद, आदि।
  • भ्रूण के एक्टोडर्म से त्वचा की एपिडर्मिस, नाखून, खुर, दांत का इनेमल, पक्षियों के पंख, सरीसृपों के शल्क, नेत्र में कार्निया, लेंस, अग्र पीयूष ग्रंथि ।
  • भ्रूण के एंडोडर्म से बनते हैं-- आहार नाल का भीतरी स्तर, यकृत, अग्नाशय, फेफड़े थायराइड, पैरा थायराइड ग्रंथियां, थायमस व मूत्राशय ।
  • कीटों के अंडे होते हैं- अतिपीतकी व केंद्रपीतकी। विदलन होता है सतही अंशभंजी।
  • सरीसृप व पक्षी वर्ग के अंडे होते हैं- अतिपीतकी, अति गोलार्द्ध पीती। विदलन होता है बिबांभ अंशभंजी।
  • उभयचरों के अंडे होते हैं-- मध्य पीतकी, मध्य गोलार्द्ध पीती। विदलन होता है-- पूर्णभंजी समान।

  • मानव शरीर में 639 पेशियां होती हैं।
  • शरीर की सबसे बड़ी पेशी है- ग्लूटीएस मैक्सिमम या नितंब पेशी।
  • सबसे छोटी पेशी है - स्टेपेडियस
  • सबसे लंबी पेशी है- सार्टोरियस
  • एक घन मिमी रक्त में 500000 आरबीसी होती हैं तथा मादा में 4.5 लाख होती हैं। जबकि श्वेत रक्त कणिकाएं यानी डब्ल्यूबीसी 1 घन मिमी रक्त में 5000 से 10000 होती हैं।
  • आरबीसी का जीवनकाल 120 दिन होता है। जबकि डब्ल्यूबीसी का जीवनकाल 3 से 4 दिन होता है।
  • सौ मिली रुधिर में 14 से 15 ग्राम हीमोग्लोबिन की औसत मात्रा होती है।
  • रुधिर का स्कंदन काल 3 से 6 मिनट होता है।
  • सबसे बड़ी धमनी है उदरीय महाधमनी, सबसे बड़ी सिरा है पश्चमहाशीरा।।
  • कपाली तंत्रिकाओं की संख्या 12 जोड़ी है, मेरु (spinal) तंत्रिकाओं की संख्या 31 जोड़ी है‌।
  • सबसे लंबी तंत्रिका है सायटिक।
  • एक हृदय चक्र का संपूर्ण काल (टोटल टाइम इन ए कार्डियक साइकिल)- 0.8 सेकेंड।
  • शुक्र जनन में लगने वाला समय 74 दिन।
  • 1 मिली वीर्य में सामान्यतया 100 मिलियन शुक्राणु होते हैं। मनुष्य के वीर्य का पीएच होता है 7.4 (हल्का क्षारीय)।
  • शरीर का सामान्य ताप होता है 98.6 डिग्री फारेनहाइट या 37 डिग्री सेंटीग्रेड
उत्सर्जित अंग और जंतुओं का संघ -
प्लाज्मालेमा - प्रोटोजोआ
शरीर की सतह- पोरिफेरा और सीलेंट्रेटा
ज्वाला कोशिकाएं- प्लेटीहेलमाइंथेस ( फीताकृमि)
रेनेट कोशिकाएं- एस्केलमेंथीज( एस्केरिस)
नेफ्रीडिया- एनीलीडा ( केंचुआ)
केबर का अंग - मोलस्का ( यूनियो) 
मैल्पीघियन नलिकिएं- आर्थोपोडा (तिलचट्टे में)
काक्सल ग्रंथि- आर्थोपोडा (मकड़ियों में)
        आर्थोपोडा संघ के कीट वर्ग में 3 जोड़ी संयुक्त पैर होते हैं। तथा एरकिडना वर्ग में 4 जोड़ी पैर होते हैं जैसे मकड़ियों में। आर्थोपोडा संघ में सर्वाधिक जीव पाए जाते हैं। कीट वर्ग के सदस्य पृथ्वी के सबसे योग्य जीव हैं।

  • हमारा हृदय या कार्डेट्स का हृदय आहार नाल के अधर तल पर  होता है।
  • केंद्रीय तंत्रिका नाल मध्य पृष्ठ तल पर पायी जाती है तथा खोखली होती है।
Types of Hearts -
  • नलिकाकार हृदय काकरोच में पाया जाता है जिसमें 13 चेंबर होते हैं।
  • रिवर्सिबल ह्रदय यह हर्डमनिया में पाया जाता है।
  • द्विकोष्ठीय हृदय-- मत्स्य वर्ग में ।
  • त्रिकोष्ठीय हृदय - (दो आलिंद व एक निलय)-- उभयचर में।
  • अपूर्ण चार कोष्ठीय हृदय- (दो आलिंद व डेढ़ निलय) इसलिए इसे साढ़े तीन कोष्ठीय हृदय भी कहते हैं-- सरीसृपों में।
  • चार कोष्ठीय हृदय- (दो आलिंद व दो निलय)- मगरमच्छ घड़ियाल सरीसृप हैं लेकिन इनमें चार कोष्ठीय हृदय पाए जाते हैं। पक्षी वर्ग और स्तनीय वर्ग में भी ऐसा हृदय पाया जाता है।
  • सबसे बड़ा हृदय हाथी का होता है।
  • पेशी जनित हृदय या मायोजेनिक हार्ट - कार्डेटा संघ के जंतुओं के साथ मौलस्का संघ के जंतुओं का भी होता है।
  • न्यूरोजेनिक हार्ट या तंत्रिका जनित हृदय-- आर्थोपोडा संघ के जंतुओं में होता है।
जीवित जीवाश्म -
लिमुलस या किंग क्रेब- आर्थोपोडा का सदस्य है।
निओपिलीना- मोलस्का संघ का सदस्य है।
नाटिलस - मोलस्का संघ का सदस्य है।
लेटिमेरिया- सबसे पुरानी जीवित मछली।
स्फीनोडान या टारओटोआ-- सरीसृप का सदस्य है।
एकिडना वो प्लेटीपेटस निम्न स्तनी वर्ग के सदस्य हैं। ये दोनों स्तनी व सरीसृप वर्ल्ड के बीच की योजक कड़ी भी हैं।

वसा में घुलनशील विटामिन -
  • विटामिन ए या beta-carotene विटामिन, या रेटिनाल या एजीरोप्थाल या एंटीजीरोप्थैलमिक विटामिन- प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला विटामिन
  • विटामिन ए को डिहाईड्रो रेटिनाल कहते हैं। इनकी कमी से जीरोप्थेलमिया रोग रतौंधी रोग,  किरटोमेलेकिया रोग हो जाता है। पके आम में विटामिन ए अधिक मात्रा में पाया जाता है।
  • विटामिन डी या कैल्सीफेराल या सनशाइन - यह सात विटामिनों का मिश्रण है d1 d2 d3 d4....d7 । इनमें प्रमुख विटामिन d2 और d3। d2 को इरगोकैल्सीफेराल कहते हैं। तथा d3 को कॉलेकैल्सिफेरॉल कहते हैं। विटामिन d3 त्वचा के नीचे एपिडर्मिस में सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बनती है। इसे हार्मोन की भी संज्ञा दी जाती है। विटामिन डी की कमी से बच्चों में सूखा रोग रिकेट्स हो जाता है तथा वयस्कों में ओस्टियोमलेसिया और टिटेनी रोग हो जाता है।
  • विटामिन ई या टोकोफिराल या, सुंदरता का विटामिन या बंध्यतारोधी विटामिन - गेंहू के अंकुर में विटामिन ई। इसकी कमी से वंध्यता रोग हो जाता, जनन संबंधी समस्यायें।
  • विटामिन K या नैफ्थोक्विनोन या फाइलोक्विनोन - इसकी कमी से रक्त में थक्का जमना या स्कंदन देर से होता है या कम होता है।
जीवाणु से होने वाले रोग -
याद करने की ट्रिक -
का
निया
कु
टाय
नस
डि
प्ले
है
गो
टीबी
सिर्फ

का- काली खांसी या कुकर खांसी
निया- निमोनिया
कु- कुष्ठ रोग या लेप्रोसी
टाय- टायफाइड या मियादी बुखार
नस- टिटनेस या धनुस्तंभ
डि- डिफ्थीरिया या रोहिणी
प्ले- प्लेग
है- हैजा या कालरा
गो- गोनोरिया
टीबी- क्षय रोगी, टीबी, या तपेदिक
सिर्फ- सिफलिस


विटामिन -
  • इसकी खोज होपकिंस ने की तथा फुंक ने नाम दिया।
  • किस पोषक तत्व की अधिकता के कारण रक्तचाप में वृद्धि होती है - वसा
  • कौन सा विटामिन रक्त का थक्का जमाने में सहायक होती है - विटामिन - K
  • एक कार्यशील महिला को प्रतिदिन कितने ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है - 45 ग्राम/प्रतिदिन
  • किस विटामिन की कमी से बालों के गिरने की समस्या होती है - B7
  • किस विटामिन की कमी से जनन शक्ति में कमी आती है - विटामिन-E
  • किस विटामिन का शरीर में भंडारण नहीं होता है - विटामिन-C
  • एक सामान्य मनुष्य को प्रतिदिन कितने ग्राम कार्बोहाइड्रेट की आवश्यकता होती है - 225 -335 ग्राम/प्रतिदिन
  • किस भोज्य पदार्थ में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है - सोयाबीन
  • प्रोटीन बनाने के लिए कितने अमीनो अम्ल की आवश्यकता होती है - 20
  • किस विटामिन की कमी से लकवा की समस्या हो सकती है - B7
  • मनुष्य के बाल और नाखून में कौन सा प्रोटीन होता है - किरेटिन
  • विटामिन दो प्रकार के होते हैं एक वसा में घुलनशील और एक जल में घुलनशील।
  • वसा में घुलनशील विटामिन है A D E K...
  • जल में घुलनशील विटामिन है B C
  • विटामिन बी कई विटामिनों का मिश्रण है अभी तक लगभग कुल 15 विटामिंस, विटामिन बी समूह की खोजी जा चुकी है।
  • विटामिन B1- या थायमीन या एन्यूरिन या एंटीन्यूरिटिस या तंत्रिकाशोध रोधी विटामिन- इसकी कमी से बेरी बेरी रोग हो जाता है इस रोग में भूख की कमी, पेशियों के निष्क्रियता, सिर दर्द, पैरालिसिस आदि हो जाता है बेरी बेरी रोग को पोली न्यूराइटिस भी कहते हैं।
  • विटामिन b2 या विटामिन जी या वृद्धि कारक विटामिन या लैक्टोफ्लेविन- इसकी कमी से किलोसिस रोग हो जाता है इसमें ओंठ फटने लगते हैं इसे एंगुलर स्टोमेटाइटिस कहते हैं।
  • विटामिन b3 या पैंटोथैनिक एसिड या लीवर फिल्ट्रेट फैक्टर या एंटीडर्मटिस फैक्टर - इससे तीन D रोग होते हैं। डर्मेटाइटिस, डायरिया, डिमेंशन।
  • विटामिन b5 या नियासीन या विटामिन पी पी  - इसकी कमी से जीभ व त्वचा पर पपड़िया पड़ जाती हैं इसे पेलेग्रा रोग कहते हैं।
  • विटामिन बी 6 पाइराडाक्सिन या एडिरमिन- खून की कमी है एनीमिया रोग हो जाता है।
  • विटामिन b7 या बायोटीन या विटामिन H- एनोरेक्सिया, पेशीय दर्द रोग हो जाता है।
  • फोलिक अम्ल-  यह विटामिन ट्यूमर और कैंसर से लड़ने में सहायक होता है।
  • विटामिन b12 या साईनोकोबालामिन- यह विटामिन आरबीसी के निर्माण में सहायक होता है इसकी कमी से पर्नीसीएस एनीमिया रोग हो जाता है।
  • विटामिन सी एस्कोरबिक एसिड- इसकी कमी से स्कर्वी रोग हो जाता है विटामिन सी सर्वाधिक आंवला में पाया जाता है।
  • प्रयोगशाला में सर्वप्रथम कृत्रिम रूप से विटामिन सी का ही निर्माण किया गया। रिचस्टीन ने विटामिन सी प्रयोगशाला में बनाई।
सबसे बड़ा -
  • सबसे बड़ी कोशिका तंत्रिका कोशिका
  • सबसे बड़ी लसीका ग्रंथि प्लीहा ( स्प्लीन)
  • सबसे बड़ा संघ आर्थोपोडा
  • भारत का सबसे विषैला सांप किंग कोबरा
  • भारत का सबसे बड़ा चिड़ियाघर अलीपुर कोलकाता
  • भारत का सबसे बड़ा मछली घर तारापुर मुंबई
  • भारत का सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य घना पक्षी विहार भरतपुर राजस्थान
  • सबसे बड़ी आरबीसी- कोन्गो घर या एम्फीयूमा
  • सबसे बड़ा जीवित सरीसृप समुद्री कछुए
  • सबसे बड़ा सांप अजगर
  • सबसे बड़ी छिपकली वेरेनस। उड़ने वाली छिपकली ड्रैको। एकमात्र जहरीली छिपकली हेलोडर्मा
  • सबसे बड़ा पक्षी और सबसे बड़ा अंडा शुतुरमुर्ग।
  • सबसे बड़ा कभी गोरिल्ला।
  • सबसे बड़ा हेलमीन्थ प्लेनेरिया
  • सबसे बड़ा मांसाहारी अलास्का का कोडियक भालू।
  • सबसे बड़ा समुद्री पक्षी अल्बेट्रॉस
  • सबसे बड़ा मॉलस्का दैत्य स्क्वाड
  • सबसे बड़ा वायरस पॉक्स वायरस
  • सबसे बड़ा मेंढक राणा गोलीयंथ
  • सबसे बड़ा अंग त्वचा
  • सबसे बड़ी तंत्रिका वेगस
  • सबसे बड़ी सीधा इनफीरियर महाशिरा
  • सबसे बड़ी मछली रिनोडोन टिपस

सबसे छोटा -
  • सबसे छोटा पक्षी क्यूबा का हमिंग बर्ड। हमिंग बर्ड में अग्रगामी और पश्चगामी दोनों उड़ाने पाई जाती हैं।
  • सबसे छोटा स्तनधारी छछूंदर
  • सबसे छोटी अस्थि स्टेपीज मध्य कर्ण में स्थित होती है।
  • सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाजमा‌
  • सबसे छोटा प्राइमेट लेमूर।।
  • सबसे छोटी आरबीसी कस्तूरी हिरण
  • सबसे छोटी समुद्री मछली गोबी।
  • सबसे छोटी अलवणजलिय मछली पेंडेका
  • सबसे छोटी पेशी स्टेपेडियस
  • सबसे छोटा वायरस मवेशियों के पांव एवं मुख में पाए जाने वाला वायरस
  • सबसे छोटा संघ पोरिफेरा
  • सबसे छोटा वर्ग उभयचर
  • जरायुज (विवीपैरस) का मतलब होता है बच्चा देने वाले। और अंडयुज़ (ओवीपैरस) का मतलब होता अंडा देने वाले.....बच्चा देने वाली छिपकली या जरायुज छिपकली-- फ्राईनोसोमा और केमेंलियोन।
  • बच्चा देने वाला सांप या जरायुज सांप-- रसल वाइपर या समुद्री सांप।
  • जरायुज मछली-- कुत्ता मछली या स्कोलियोडान।
  • जरायुज आर्थोपोडा बिच्छू
  • जरायुज उभयचर सैलामेंडर
  • अंड जरायुज स्तनधारी कंगारू और पोषण।
प्रोटोजोआ से होने वाली बीमारी -

रोग                    वाहक              रोगजनक

काला आजार           सैंड फ्लाई                     लिशमानिया
अफ्रीकीनिद्रारोग       सीसीफ्लाई                    ट्रिपेनोसोमा
ल्यूकोरिया।              संभोग द्वारा                   ट्राईकोमोनास
पायरिया                  चुंबन द्वारा                    ट्राईकोमोनास और
                                                               एंटमीबा जिंजिवालिस

मलेरिया                   मादा एनाफिलीज मच्छर    प्लाजमोडियम

हल्का तृतीयक मलेरिया
या साधारण मलेरिया   प्लाज्मोडियम वाईवैक्स
द्वारा
ओवेल मलेरिया        प्लाज्मोडियम ओवेल द्वारा
चतुर्थक मलेरिया       प्लाज्मोडियम मलैरी द्वारा
घातक तृतीयक मलेरिया प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम द्वारा

रोगजनक हैल्मिंथीस या एस्कैल्मेंथीस( कृमि) -
हाथी पांव रोग या फाइलेरिया- इसे वाउचेरिया ब्रैंकोफ्टाई नामक गोल कृमि द्वारा होता है इसका वाहक क्यूलेक्स मच्छर है।
  • लीवर फ्लूक कृमि का द्वितीयक पोषी घोंघा या मछली है।
  • फीता कृमि का द्वितीयक पोषी सुअर हैं। फीता कृमि  का नाम है टीनिया सोलियम।
  • पिन वर्म या चुन्ना, एंटेरोबियोस के कारण होता है।
  • बाला या नारू रोग गिनी वर्म के कारण होता है।

By Rahul Gupta

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शुकनासोपदेश प्रश्नोत्तरी

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